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Maharana Pratap Jayanti 2021: आज है महान योद्धा महाराणा प्रताप की जयंती, जानिए उनके जीवन की कुछ खास बातें

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नई दिल्लीः आज देशभर में महाराणा प्रताप की जयंती मनाई जा रही है। महाराणा प्रताप का जन्म 16वीं शताब्दी में राजस्थान में हुआ था। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार उनका जन्म 9 मई, 1540 को कुंभलगढ़ में हुआ था। इस दिन ज्येष्ठ मास की तृतीया तिथि थी, इसलिए हिंदी पंचांग के अनुसार महाराणा प्रताप जयंती 13 जून को मनाई जा रही है। महाराणा प्रताप को भारतीय इतिहास के सबसे महान योद्धाओं के रूप में जाना जाता है। उन्हें 'मेवाड़ी राणा' की संज्ञा दी गई, जो मुगल साम्राज्य के विस्तार के खिलाफ थे। हल्दीघाटी की उनकी लड़ाई को आज भी याद किया जाता है।

युद्ध में अकबर को दी मात

कम सेना होने के बावजूद महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर बराबर की टक्कर दी थी। बता दें कि महाराणा प्रताप के पास केवल 20 हजार सैनिक थे और अकबर के पास करीबन 85 हजार सैनिकों की सेना थी। इसके बावजूद इस युद्ध को अकबर जीत नहीं पाया था। मेवाड़ को जीतने के लिए अकबर ने कई प्रयास किए। अजमेर को अपना केंद्र बनाकर अकबर ने प्रताप के विरुद्ध सैनिक अभियान शुरू कर दिया। महाराणा प्रताप ने कई वर्षों तक मुगलों के सम्राट अकबर की सेना के साथ संघर्ष किया।

हल्दी घाटी युद्ध के बाद जंगल में लेनी पड़ी शरण

महाराणा प्रताप का हल्दी घाटी के युद्ध के बाद का समय पहाड़ों और जंगलों में ही व्यतीत हुआ। अपनी गुरिल्ला युद्ध नीति द्वारा उन्होंने अकबर को कई बार मात दी। महाराणा प्रताप चित्तौड़ छोड़कर जंगलों में रहने लगे। महारानी, सुकुमार राजकुमारी और कुमार घास की रोटियों और जंगल के पोखरों के जल पर ही किसी प्रकार जीवन व्यतीत करने को बाध्य हुए। मुगल चाहते थे कि महाराणा प्रताप किसी भी तरह अकबर की अधीनता स्वीकार कर 'दीन-ए-इलाही' धर्म अपना लें। इसके लिए उन्होंने महाराणा प्रताप तक कई प्रलोभन संदेश भी भिजवाए, लेकिन महाराणा प्रताप अपने निश्चय पर अडिग रहे।

कई ऐसे छोटे राजा भी थे जो महाराणा प्रताप को अपने राज्य में रहने की गुजारिश कर रहे थे, लेकिन महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा, वे महलों को छोड़ जंगलों में निवास करेंगे।

अपनी इसी प्रतिज्ञा को पूरा करते हुए चित्तौड़ को छोड़कर महाराणा ने अपने समस्त दुर्गों का शत्रु से पुन: उद्धार कर लिया। उदयपुर को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया। अपनी आत्मशक्ति के बल पर महाराणा ने चित्तौड़गढ़ व मांडलगढ़ के अलावा संपूर्ण मेवाड़ पर अपना राज्य पुनः स्थापित कर लिया।

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इसके बाद मुगलों ने कई बार महाराणा प्रताप को चुनौती दी लेकिन मुगलों को मुंह की खानी पड़ी। आखिरकार, युद्ध के दौरान लगी चोटों की वजह से महाराणा प्रताप की मृत्यु 29 जनवरी 1597 को चावंड में हुई।