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सामने आया 43 साल पहले हुए मुरादाबाद दंगे का सच, मुस्लिम लीग के दो नेता थे जिम्मेदार

yogi-adityanath लखनऊः 43 साल पहले मुरादाबाद जिले में ईद की नमाज के बाद भड़के दंगे का सच मंगलवार को सामने आ गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज मानसून सत्र के दूसरे दिन विधानसभा में दंगों की गठित एक सदस्यीय न्यायिक जांच की रिपोर्ट सार्वजनिक की। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बताया कि रिपोर्ट में कहा गया कि दंगों में पुलिस, हिंदू और आम मुसलमानों का कोई हाथ नहीं था। इसमें संघ और बीजेपी नहीं थी, ये पूर्व नियोजित दंगा था। इसके लिए मुस्लिम लीग और कुछ संगठन जिम्मेदार थे। उन्होंने यह भी बताया कि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मुस्लिम लीग के दो नेताओं की दंगा कराने की राजनीतिक महत्वाकांक्षा थी। दंगे मुस्लिम समुदाय में नेताओं को लेकर चल रहे झगड़े के कारण भड़के थे। रिपोर्ट के मुताबिक, ईदगाह और अन्य जगहों पर गड़बड़ी फैलाने के लिए कोई भी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी या हिंदू जिम्मेदार नहीं था।

15 मुख्यमंत्री बने, लेकिन कोई भी सदन के पटल पर नहीं रख सका दंगों की रिपोर्ट

हैरानी की बात ये है कि 1980 से 2017 के बीच किसी भी पार्टी की सरकार इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। योगी सरकार ने अब यह रिपोर्ट सदन में रखी है। जिसके बाद दंगों का पूरा सच सामने आ गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने दंगों की जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था. इस आयोग की रिपोर्ट 40 साल बाद दो महीने पहले कैबिनेट में पेश की गई थी। कैबिनेट से मंजूरी के बाद अब रिपोर्ट विधानमंडल में पेश की गई। करीब 40 साल पहले सरकार को रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद भी पिछली सरकारों ने रिपोर्ट को कैबिनेट और सदन में पेश नहीं होने दिया था। 1980 से अब तक राज्य में 15 मुख्यमंत्री हो चुके हैं, लेकिन कोई भी इस रिपोर्ट को सदन में रखने की हिम्मत नहीं जुटा सका। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आखिरकार आज सदन में यह रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी।

दंगों में 83 लोग मारे गए, 112 हुए घायल

13 अगस्त 1980 को मुरादाबाद में ईद की नमाज के दौरान पथराव और बवाल हुआ था। इसके बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़कने से 83 लोग मारे गए और 112 लोग घायल हो गए। दरअसल, दो समुदायों के बीच हिंसा भड़कने के बाद पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी, जिसमें लोगों की मौत हो गई। इसके बाद करीब एक महीने तक मुरादाबाद में कर्फ्यू लगा रहा।

तत्कालीन सीएम वीपी सिंह ने किया था आयोग का गठन

वर्ष 1980 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने दंगों की जाँच के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एमपी सक्सेना की अध्यक्षता में एक न्यायिक आयोग का गठन किया। मामले की जांच के लिए गठित आयोग ने 20 नवंबर 1983 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। सूत्रों के मुताबिक, जांच में पता चला कि मुस्लिम लीग के डॉ. शमीम अहमद खान और उनके समर्थकों ने अपने समर्थकों के साथ वाल्मिकी समाज, सिख समाज और पंजाबी समाज के लोगों को फंसाने के लिए घटना को अंजाम दिया था। ये भी पढ़ें..UP Assembly Monsoon Session: अखिलेश यादव ने बेरोजगारी व जनसंख्या के मुद्दे पर योगी...
आयोग ने डॉ. शमीम अहमद खान को दोषी पाया था
आयोग ने मुस्लिम लीग के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष शमीम अहमद खान, उनके कुछ समर्थकों और दो अन्य मुस्लिम नेताओं को दंगे भड़काने का दोषी पाया। अपनी जांच रिपोर्ट में उन्होंने कहा कि हिंसा भड़काने में बीजेपी या आरएसएस जैसे हिंदू संगठनों की भूमिका का कोई सबूत नहीं है। आयोग ने पीएसी, पुलिस और जिला प्रशासन को भी आरोपों से मुक्त कर दिया था। आयोग ने जांच में पाया कि ज्यादातर मौतें पुलिस फायरिंग से नहीं बल्कि भगदड़ से हुईं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि राजनीतिक दलों को मुसलमानों को वोट बैंक के तौर पर नहीं देखना चाहिए। सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने में दोषी पाए जाने वाले किसी भी संगठन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)