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सामाजिक और मानविकी के अध्ययन में देशज ज्ञान की जरूरत

भारत की सभ्यतामूलक जीवन-दृष्टि कई तरह से सर्व-समावेशी थी परंतु दो सदियों के औपनिवेशिक शासन के दौर में इसे व्यवस्थित रूप से हाशिए पर भेजने की मुहिम छेड़ी गयी और उसकी जगह लोक-मानस और ज्ञान-विज्ञान का यूरोप से लाया गया...