The story of emergency: लोकतंत्र सेनानियों से भर दी गईं जेलें, खिलाफ लिखने पर हुई तोड़फोड़

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The story of emergency, हमीरपुरः आपातकाल को 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं लेकिन उस समय हुई क्रुरता पर जब भी चर्चा होती है वो सब मंजर एक के बाद एक आंखों के सामने ऐसे घूमने लगते हैं जैसे की कल ही कि तो बात हो। कैसे देश में लोकतंत्र को खत्म करके आपातकाल लगा दिया गया था। बिना वजह ही नेताओं की पिटाई की जाती थी। इंदिरा गांधी के खिलाफ आक्रामक खबरें छापने पर पुलिस ने स्थानीय प्रिंटिंग प्रेस में भी तोड़फोड़ की थी।

आपातकाल को पांच दशक बीत चुके हैं, जिसकी याद आज भी कई लोकतंत्र सेनानियों को सिहरन पैदा कर देती है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सत्ता से हटाने के लिए भारत में पूरा विपक्ष एकजुट होकर सड़कों पर उतर आया था। सरकार विरोधी आक्रोश के चलते इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की आधी रात के बाद पूरे भारत में आपातकाल लागू कर दिया था।

सुबह होते ही देशभर में गैर कांग्रेसी दलों के छोटे-बड़े नेताओं की गिरफ्तारी शुरू हो गई थी। यूपी के हमीरपुर जिले में आपातकाल के दौरान बड़ा बवाल हुआ था। कई जगहों पर इंदिरा के खिलाफ प्रदर्शन और नारेबाजी शुरू हो गई थी। हमीरपुर जिले के मौदहा कस्बे में बौद्धिक संघ के प्रमुख देवी प्रसाद गुप्ता ने भी अपने तमाम साथियों के साथ मिलकर सरकार विरोधी आंदोलन को गति देना शुरू कर दिया था। उन पर नकेल कसने के लिए खुफिया तंत्र को लगाया गया था। लोकतंत्र सेनानियों के अनुसार 3 जुलाई 1975 को जब संघ पर प्रतिबंध लगा था, तब देवी प्रसाद गुप्ता और जिला प्रचारक ओमप्रकाश ने इंदिरा के खिलाफ स्थानीय अखबार गुप्त रूप से छापना शुरू कर दिया था।

जैसे ही इंदिरा गांधी विरोधी अखबार इलाके में लोगों तक पहुंचा, खुफिया तंत्र ने पुलिस के साथ उनके घरों पर छापा मार दिया। पूरी रात उनसे प्रिंटिंग प्रेस मशीन के बारे में पूछताछ की गई। पुलिस ने उन्हें प्रताड़ित भी किया, लेकिन उनका साहस कम नहीं हुआ। संघ कार्यकर्ताओं ने इंदिरा के खिलाफ नारे लगाए। पुलिस ने उन सभी पर रेल की पटरियां उखाड़ने और थाने में आग लगाने का आरोप लगाते हुए बड़ी कार्रवाई की थी। पूरे जिले में इंदिरा गांधी के काले कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी रहा।

इंदिरा गांधी के खिलाफ खबर छापने पर प्रिंटिंग प्रेस में की गई थी तोड़फोड़

आपातकाल के दौरान हमीरपुर जेल में सात महीने बिताने वाले लोकतंत्र सेनानी देवी प्रसाद गुप्ता ने बताया कि आरएसएस बौद्धिक संघ प्रमुख के तौर पर काले कानून का विरोध करने पर उन्हें काफी प्रताड़ित किया गया था। उन्होंने बताया कि आपातकाल के दौरान जिला प्रचारक ओमप्रकाश की मदद से गुप्त रूप से एक स्थानीय अखबार छपवाना शुरू किया गया था। इसमें सरकारी कार्रवाई और काले कानून पर एक कॉलम भी था।

उन्होंने बताया कि रात में खुफिया एजेंसियों ने भारी पुलिस बल के साथ घर पर छापा मारा था। बंदूक की नोक पर प्रिंटिंग प्रेस का पता पूछा गया था, लेकिन किसी ने कोई जानकारी नहीं दी। संघ कार्यकर्ताओं के साथ-साथ जनता ने भी इंदिरा के खिलाफ सड़कों पर नारे लगाए थे।

लोकतंत्र सेनानियों ने जेल में भी इंदिरा गांधी के खिलाफ लगाए नारे 

देवी प्रसाद गुप्ता, सरस्वती शरण और सलाउद्दीन जैसे लोकतंत्र सेनानियों ने बताया कि अक्टूबर 1975 में आपातकाल का विरोध करने पर उन्हें गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने कुरारा थाने को जलाने और रेल की पटरियां उखाड़ने का प्रयास करने का मामला दर्ज किया था। पुलिस ने गिरफ्तारी के दौरान छेनी और हथौड़ा बरामदगी भी दिखाई थी।

उन्होंने बताया कि मदन राजपूत, बृजराज समेत कई छात्रों को भी जेल भेजा गया था। लोकतंत्र सेनानियों ने बताया कि इंदिरा गांधी के खिलाफ नारे लगाने पर हमीरपुर और महोबा के करीब 145 विरोधियों को जेल भेजा गया था। तमाम लोग रात भर इंदिरा के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगाते रहे। आंदोलनकारियों के समर्थन में कई बुजुर्ग भी उनके साथ थे।

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सत्ता विरोधी लहर के चलते कांग्रेस का सफाया हो गया

लोकतंत्र सेनानियों ने बताया कि आपातकाल 21 महीने तक चला था। कांग्रेस विधायकों और कुछ मंत्रियों के इशारे पर जनसंघ समेत अन्य राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की गई थी। उन्होंने बताया कि आपातकाल के बाद हुए चुनावों में हमीरपुर संसदीय क्षेत्र की जनता ने कांग्रेस को करारा झटका दिया था। आम चुनावों में लोकतंत्र सेनानी से बड़ी संख्या में जुड़े लोगों ने कांग्रेस विरोधी लहर पैदा की थी।

उन्होंने बताया कि जेल से बाहर आने के बाद इंदिरा विरोधी अभियान चलाया गया। उन्होंने बताया कि 1977 के आम चुनावों में कांग्रेस सांसद स्वामी ब्रह्मानंद महाराज को अपनी सीट गंवानी पड़ी थी। बीकेडी के तेज प्रताप सिंह 54 फीसदी वोट पाकर सांसद बने थे। लोकतंत्र सेनानी ने कहा कि आपातकाल के दौरान लोगों के मौलिक अधिकार खत्म कर दिए गए थे।

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