लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में घुसपैठिये रोहिंग्या छोटे-छोटे कामों के जरिये मजबूती से अपना पैर पसार रहे हैं। शहर के कई इलाकों में रोहिंग्या बच्चे, महिलाएं और पुरुष रोजाना कूड़ा उठाते, शौचालय साफ करते और मजदूरी करते दिख जाते हैं। इनकी वेशभूषा से इनकी पहचान कर पाना बड़ा मुश्किल है, ये पहचाने तभी जाते हैं जब इनसे कोई बात करें क्योंकि इनकी हिंदी अच्छी नहीं होती।
पहचान पत्र में दिखाते हैं लखनऊ निवासी
राजधानी में कुकरैल जंगल के पीछे बजरंग चौराहे से चंदन तिराहे तक जाने वाली सड़क पर तथागत कॉलेज के पास झुग्गियों में रोहिंग्या बड़ी संख्या में बसे हुए हैं। इन झुग्गियों में रहने वाले लोगों के पास लखनऊ का पहचान पत्र भी है। इसके जरिए वह खुद को लखनऊ का निवासी बताते हैं। यहां का पहचान पत्र होने से उन्हें रोजगार से जुड़ने में भी सहूलियत होती है। पहचान पत्र के साथ ये अपरिचित चेहरे आजकल चांदन-तकरोही-बजरंग चौराहा मार्ग पर बनी 20 आवासीय कॉलोनियों में रोजाना सुबह-सुबह शौचालय साफ करते, कूड़ा बीनते या पॉलिथीन चुनते नजर आते हैं।
कॉलोनी के लोगों ने बताया कि साल 2019 में रोहिंग्या एक खाली प्लॉट पर दो से चार झुग्गियों तक 40 से 45 झुग्गियों में रह रहे हैं। स्थानीय लोग इन्हें रोहिंग्या कहते हैं। उनकी आपसी बातचीत की भाषा अलग-अलग सुनाई देती है। वे स्थानीय लोगों से बातचीत में हिंदी भाषा के शब्द बोलना बंद कर देते हैं।
6 किलोमीटर में फैसीं झुग्गियां
फरीदी नगर निवासी सामाजिक कार्यकर्ता रामनक्षत्र के मुताबिक कुकरैल जंगल के पीछे करीब छह किलोमीटर क्षेत्रफल में 20 से अधिक आवासीय कॉलोनियां बस गई हैं। इन कॉलोनियों में सीवर लाइन नहीं पहुंची है। ऐसे में नगर निगम के कर्मचारी साफ-सफाई के लिए किसी भी व्यक्ति के घरेलू साफ-सफाई का काम नहीं करते हैं। इधर कुछ वर्षों में बाहर से आए लोगों ने घरों के शौचालयों की साफ-सफाई से लेकर निजी कार्यों का भी बखूबी ध्यान रखा है।
उन्होंने बताया कि इन लोगों के लिए घरेलू साफ-सफाई का काम करना बड़ी राहत है, लेकिन वे अपरिचित चेहरों से डरते भी हैं। तकरोही मार्ग पर इनकी संख्या पर्याप्त है। उन्हें छोटे-छोटे काम भी करते हुए पाया जा सकता है। जिस खाली प्लॉट पर उन्होंने झुग्गी बना रखी है, उसी पर सड़क किनारे अपनी जरूरतों के लिए दुकानें भी बना ली हैं।
इन इलाकों में फैलाए पैर
नगर निगम लखनऊ के कर्मचारी सुशील का कहना है कि कूड़ा प्रबंधन का काम नगर निगम ने निजी एजेंसियों को दे दिया है। मानस विहार कॉलोनी से विभिन्न कॉलोनियों से होते हुए बजरंग चौराहे तक सफाई का काम एक एजेंसी देख रही है। जिसके कर्मचारी अक्सर इन अपरिचित चेहरों से भिड़ जाते हैं। जिसका मुख्य कारण पॉलीथिन, प्लास्टिक से बनी कूड़े की वस्तुएं हैं, जिन्हें वे अक्सर बिना कूड़ेदान के ही उठा ले जाते हैं।
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उन्होंने बताया कि चांदन-तकरोही रोड जैसे शहरी इलाकों में अपरिचित चेहरों से भरी झुग्गियों की तरह उन्होंने शहर के कानपुर रोड एलडीए कॉलोनी, आशियाना, डालीबाग, इंदिरानगर और जानकीपुरम में भी अपना पैर अच्छे से फैला लिया है। इनके पहचान पत्र और अन्य सरकारी दस्तावेज बनाने में राजनीतिक दलों के साथ-साथ सरकारी कर्मचारियों की भी मिलीभगत है, जिसकी जांच होनी चाहिए।
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