ज्ञान अमृत

आनन्द योग में श्रीराम का संयोग

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भगवान भूतनाथ शंकर ने बारम्बार समस्त वेद-राशि का मन्थन करके यह निश्चय किया कि तारक मन्त्र ‘राम’ विष्णु भगवान की गुप्त मूर्ति है। भगवान की लीला का रहस्य भला कौन जान सकता है। हम पद-पद पर देखते हैं कि अपनी इच्छा न होने पर भी हमें बलात् बहुत से ऐसे कार्यों में लग जाना पड़‌ता है, जिनमें प्रवृत्त होने की पहले कभी आश भी नहीं थी। इसका कारण यही है कि हमारी सारी प्रवृत्तियों का नियामक कोई और ही है, जो देहाभिमान के पर्दों में छिपा हुआ हमारे अन्तःकरण में विद्यमान है। भगवान के उसी दुर्लभ गूढ़ रहस्य को समझना बड़े-बड़े मेधावी आचार्य और योगनिष्ठ यतियों के लिए भी अत्यन्त कठिन है।

श्री अयोध्यापुरी जिन परमात्मा का नित्य धाम है, वे श्रीराम चन्द्र जी निःसन्देह प्रकृति से परे परमात्मा, अनादि, अद्वितीय और पुरुषोत्तम हैं। जो अपनी माया से ही इस सम्पूर्ण जगत् को रचकर उसके बाहर-भीतर सब ओर आकाश के समान व्याप्त हैं तथा जो आत्मारूप से सबके अन्तःकरण में स्थित हुए अपनी माया से इस विश्व को परिचालित कर रहे हैं। उन परमात्मा ‘राम’ को जिनका हृदय आत्मा के अज्ञात से ढका हुआ है, वे मूढ़जन नहीं जान सकते। वे मूढ़ उन मायातीत शुद्ध-बुद्ध परमात्मा में भी अपने अज्ञान को आरोपित करते हैं, अर्थात उन्हें भी अपने समान ही अज्ञानी मानते है तथा सर्वदा वे स्त्री, धन, पुत्रादि भोतिक वस्तुओं में आसक्त रहने वाले जीव बहुत से कर्मों में लगे रहकर संसार चक्र में ही पड़े रहते हैं। अतएव परानन्दस्वरूप विज्ञानधन अज्ञान-साक्षी कमलनयन भगवान श्रीराम में अज्ञान का लेश भी नहीं है, क्योंकि वे माया के अधिपति है, अधिष्ठान हैं।


इसलिये वह उन्हें मोहित नहीं कर सकती है। भगवान श्रीराम के नित्य धाम श्री अयोध्यापुरी में भगवान के भव्य मंदिर का जीर्णोद्धार निश्चित ही जगत के लिए कल्याणकारी है। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान श्रीराम की प्रेरित प्रेरणा से भगवान के श्रीविग्रह की प्राण प्रतिष्ठा शुभ मूहुर्त में हुई है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देव प्रतिष्ठा का शुभ मूहुर्त सम्वत् 2080, पौष शुक्ल पक्ष द्वादशी, दिन सोमवार अर्थात 22 जनवरी सन् 2024 को दिन में 12 बजकर 29 मिनट 08 सेकंड से लेकर 12 बजकर 30 मिनट 32 सेकंड तक होती है। श्रीभगवान की प्राण प्रतिष्ठा से जुड़े सभी अनुष्ठान विधि-विधान पूर्वक 16 जनवरी से प्रारम्भ होते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ‘मूहुर्त चिन्तामणि’ ग्रन्थ के अनुसार किसी भी जलाशय, बगीचा और देव प्रतिष्ठा के मूहुर्त के सम्बंध में श्लोक है-

जलाशयाराम‌सुरप्रतिष्ठा सौम्यायने जीवशशांकशुक्रे।
दृश्ये मृदुक्षिप्रचरध्रुवे स्यात्पक्षे सिते स्वर्क्षतिथिक्षणे वा।।
रिक्तारवर्ज्ये दिनसेSतिशस्ता शशांकपापैस्त्रिभवांगसंस्थैः।
ब्यन्त्याष्टगैः सत्खचरैमृगेन्द्रे सूर्यो घटे को युक्तौच विष्णुः॥
शिवो नृयुग्मे द्वितनौ च देव्यः क्षुद्राश्चरे सर्व इमे स्थिर।
पुष्ये ग्रहा विघ्रपयक्षसर्पभूताद‌योSन्त्ये श्रवणे जिनश्च।।

अर्थात- उत्तारायण सूर्य में, गुरु चन्द्रमा और शुक्र उदित हों, मृदु संज्ञक, क्षिप्र संज्ञक, चर संज्ञक और ध्रुव संज्ञक नक्षत्र में, शुक्ल पक्ष में अथवा जिस देवता की प्रतिष्ठा करनी हो उसके नक्षत्र, तिथि और मूहुर्त में, रिक्ता तिथि और मंगलवार को छोड़कर शेष तिथि और वारों में, लग्न से चन्द्रमा और पापग्रह तीसरे, ग्यारहवें और छठें स्थान में हो तथा बारहवें और आठवें को छोड़कर शेष स्थानों में शुभ ग्रह हों तो जलाशय (बावली, कूप, तालाब), बगीचा, देवता की स्थापना प्रतिष्ठा करना शुभ होता है। सूर्य की प्रतिष्ठा सिंह लग्न में, कुम्भ लग्न में ब्रह्मा की, कन्या लग्न में विष्णु की, मिथुन लग्न में शिव की, द्विस्वभाव लग्नों में देवियों की क्षुद्र देवता (योगिनी आदि) की चर लग्न में अथवा इस सभी देवताओं की स्थिर लग्न अर्थात् वृष, सिंह, वृश्चिक, कुम्भ लग्न में स्थापना करनी चाहिए। पुष्य नक्षत्र में ग्रहों को, गणेश, यक्ष, सूर्य, भूत आदि को रेवती में और जिन (बुद्ध) देवता को श्रवण में स्थापित करना चाहिए।

इस श्लोकानुसार उत्तरायण सूर्य में, सोमवार के दिन मृगशिरा नक्षत्र है, जो शास्त्रानुमार मृदु संज्ञक नक्षत्र है, शुक्ल पक्ष है, द्वादशी तिथि है, जो शास्त्रानुसार भद्रा तिथि है। अर्थात 22 जनवरी 2024 शुक्लपक्ष, सोमवार मृगशिरा नक्षत्र में देव प्रतिष्ठा गूहुर्त होता है। यद्यपि स्थिर लग्न नहीं है, 12 बजकर 29 मिनट से 12 बजकर 30 मिनट पर मेष चर लग्न सम्पति रहती है।

प्रतिष्ठा मूहुर्त में चर लग्त दोष होता है। यद्यपि सूक्ष्म गणना नवांश लग्न वृश्चिक होती है, जो स्थिर है लग्न है। शास्त्रानुसार नवांश में स्थिर लग्न होने से मूहुर्त शुभ होता है तथा प्रतिष्ठा लग्न में गुरु विद्यमान है। यह एक परम शुभ ग्रह है, जो प्रतिष्ठा लग्न को शुभ एवं बलवान बनाता है तथा समस्त दोष का नाश करता है। मूहुर्त चिन्तामणि ग्रन्थ के अनुसार-

केन्द्रे कोणे जीव आये रवौ वा लग्ने चन्द्रे वाSपि वर्गोत्तमे वा।
सर्वे दोषा नाशमायान्ति चन्द्रे लाभे तद्वद्दुर्मुहूर्तांशदोषाः॥

अर्थात- गुरु केन्द्र वा कोण भाव में हो अथवा सूर्य ग्याहरवें स्थान में हो, अथवा लग्न वर्गोत्तम हो अथवा चन्द्रमा वर्गोन्तम

नवांश में हो तो सभी दोषों का नाश होता है। यदि लग्न से चन्द्रमा ग्यारहवां हो
तो दुष्ट मूहुर्त और दुष्ट नवांश का दोष नष्ट हो जाता है।
त्रिकोणे केन्द्रे वा मदनरहिते दोषशतकं,
हरेत् सौम्यः शुक्रो द्विगुणमपि लक्षं सुरगुरुः।
भवेदाये केन्द्रेङ्ग‌प उत लवेशो यदि तदा,
समूहं दोषाणां दहन इव तूलं शमयति।।

अर्थात – यदि बुध त्रिकोण (5,9) में अथवा 7वें स्थान को छोड़‌कर अन्य केन्द्रों (1,4,10) में हो तो एक सौ दोषों का नाश करता है। यदि उक्त स्थानों में शुक्र हो तो दो सौ और गुरु उक्त स्थानों में हो तो एक लाख दोषों का नाश करता है। यदि लग्नेश अथवा नवमांशेश एकादश अथवा केन्द्र (1,4,7, 10) में हो तो दोषों के समूह को इस प्रकार से नष्ट करता है, जैसे अग्नि रुई का नाश करती है।
इस प्रकार प्रतिष्ठा लग्न में गुरु केन्द्र लग्न में है तथा प्रतिष्ठा नवांशेश मंगल, नवांश चक्र में एकादश भाव में स्थित होकर मूहुर्त के समस्त दोष का नाश करते हैं एवं परम शुभ मूहुर्त का योग बनता है।

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मूहुर्त शास्त्रानुसार अभिजित मूहुर्त, जो दिन के मध्यकाल में रहता है वह समस्त दोषों को नष्ट करता है। सूर्योदय काल में जो लग्न होता है, उससे चतुर्थ लग्न अभिजित है। इस प्रकार मेष लग्न अभिजित् लग्न होती है। वह सूर्योदय से चतुर्थ लग्न है। 22 जनवरी को सोमवार और मृगशिरा नक्षत्र के संयोग से ‘आनन्द योग’ बनता है, जो परम शुभकारी है एवं द्वादशी तिथि के संयोग से ‘सर्वार्थ अमृत सिद्धि’ योग बनता है। प्रतिष्ठा लग्न में गुरु के स्थिर रहने से सनातन धर्म की वृद्धि होती है, मंदिर का यश विश्व में बढ़ता है, भगवान की भक्ति भावना की वृद्धि प्रजा में होती है, समृद्धि का योग बनता है। नित्य भगवान श्रीराम की पूजा अर्चना से पुण्य की वृद्धि होती है तथा भारतवर्ष को सुरक्षा, सुयश, समृद्धि एवं विश्व में उत्तम प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।

लोकेंद्र चतुर्वेदी

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