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राजस्थानः छात्रसंघ चुनाव में NSUI के निराशाजनक प्रदर्शन ने बढ़ाई कांग्रेस की टेंशन

कांग्रेस

जयपुरः राजस्थान में छात्र संघ चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) के निराशाजनक प्रदर्शन ने 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले राज्य में सबसे पुरानी पार्टी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। सत्तारूढ़ कांग्रेस की छात्र शाखा को राज्य भर में करारी हार का सामना करना पड़ा है और वह गहलोत के गृह क्षेत्र जोधपुर में जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय और अन्य कॉलेजों में हार गई है। सचिन पायलट के संसदीय क्षेत्र टोंक के सरकारी कॉलेज में बीजेपी की छात्र इकाई एबीवीपी की जीत हुई है।

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कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के गृह जिले शेखावाटी विश्वविद्यालय और सीकर के एसके कॉलेज में एनएसयूआई बुरी तरह हार गई है। जोधपुर में, अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत जादू बिखेरने में नाकाम रहे, क्योंकि उनके प्रचार के बावजूद एनएसयूआई उम्मीदवार किसी भी बड़े विश्वविद्यालय में अध्यक्ष पद नहीं जीत पाये, भले ही कांग्रेस के कई विधायक और मंत्री पर्दे के पीछे से सक्रिय थे। एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष अभिषेक चौधरी भी जोधपुर जिले से हैं, लेकिन वह भी जीत हासिल करने में मदद नहीं कर सके।

विश्वेंद्र सिंह, भजनलाल जाटव, जाहिदा और सुभाष गर्ग भरतपुर जिले के मंत्री हैं, जहां एनएसयूआई फिर से हार गया। चार मंत्रियों और दो बोर्ड अध्यक्षों वाले जिले भरतपुर के महाराजा सूरजमल विश्वविद्यालय में एबीवीपी ने जीत हासिल की। उन्हें यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल के क्षेत्र में कोटा विश्वविद्यालय और कोटा के कॉलेजों में भी हार का सामना करना पड़ा, जो रैंक में सीएम के बाद आते हैं। महेंद्रजीत सिंह मालवीय और अर्जुन बामनिया बांसवाड़ा जिले से मंत्री हैं। एनएसयूआई वहां भी हार गई है। एनएसयूआई ने बीकानेर जिले में महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय और पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय को खो दिया है, जिस पर मंत्री बीडी कल्ला और मंत्री भंवर सिंह भाटी का शासन है।

डूंगरपुर और बांसवाड़ा के आदिवासी इलाकों में भी एनएसयूआई को करारी हार का सामना करना पड़ा है। डूंगरपुर दरअसल युवा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश घोघरा का निर्वाचन क्षेत्र है। जहां अन्य सभी नेताओं ने हार पर चुप्पी साध ली है, वहीं ओसियां से कांग्रेस विधायक दिव्या मदेरणा खुलकर सामने आईं हैं और उन्होंने ट्विटर पर कहा कि एनएसयूआई की हार का मुख्य कारण योग्य उम्मीदवारों को टिकट नहीं देना है। साथ ही टिकट देने में भी काफी देरी हुई और फोकस चुनाव जीतने की रणनीति पर नहीं था। आंतरिक गुटबाजी ने भी नुकसान में योगदान दिया।

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