पटनाः साल 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया हत्याकांड के दोषी बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई के बाद बयानों का घमासान बढ़ता जा रहा है। बिहार के सत्ताधारी महागठबंधन में शामिल पार्टी भाकपा माले ने सरकार की नीयत पर सवाल उठाये हैं। माले ने आनंद मोहन समेत 27 कैदियों की रिहाई के आदेश को भेदभाव वाला बताया।
भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने मंगलवार को मीडिया से बात करते हुए सरकार ने 14 वर्ष से अधिक की सजा काट चुके 27 बंदियों की रिहाई में बहुचर्चित भदासी (अरवल) कांड के 6 टाडा बंदियों को रिहा नहीं करने पर गहरा क्षोभ प्रकट किया है। उन्होंने कहा कि सरकार आखिरकार टाडा बंदियों की रिहाई क्यों नहीं कर रही है, जबकि वे सभी दलित-अति पिछड़े और पिछड़े समुदाय के हैं और वे कुल मिलाकर 22 साल की सजा काट चुके हैं। यदि परिहार के साल भी जोड़ लिए जाएं तो यह अवधि 30 साल से अधिक हो जाती है। सब के सब बूढ़े हो चुके हैं और गंभीर रूप से बीमार हैं।
बता दें कि कुछ दिन पहले ही टाडा बंदियों की रिहाई की मांग को लेकर मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन भी सौंपा था। लेकिन सरकार के इस भेदभावपूर्ण फैसले से हम सभी को गहरी निराशा हुई है। माले ने कहा है कि 1988 में भदासी कांड में अधिकांशतः दलित-अति पिछड़े समुदाय से आने वाले 14 लोगों को फंसा दिया गया था। उनके ऊपर टाडा कानून उस वक्त लाद दिया गया था, जब पूरे देश में वह निरस्त हो चुका था। 4 अगस्त 2003 को सबको आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई थी। सजा पाने वाले 14 लोगों में से अब सिर्फ 6 लोग ही बचे हुए हैं, जबकि इलाज के अभाव में शाह चांद, मदन सिंह, सोहराई चौधरी, बालेश्वर चौधरी, महंगू चौधरी और माधव चौधरी की मौत हो चुकी है।
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कुणाल ने कहा है कि इसी मामले में एक टाडा बंदी त्रिभुवन शर्मा की रिहाई पटना हाई कोर्ट के आदेश से वर्ष 2020 में हुई। इसका मतलब है कि सरकार के पास कोई कानूनी अड़चन भी नहीं है। टाडा बंदियों में शेष बचे 6 लोगों में डॉ. जगदीश यादव, चुरामन भगत, अरविंद चौधरी, अजित साव, श्याम चौधरी और लक्ष्मण साव को भी रिहा किया जाए। उन्होंने कहा कि फिलहाल जगदीश यादव, चुरामन भगत और लक्ष्मण साव गंभीर रूप से बीमार हैं और अस्पताल में भर्ती हैं।
माले ने कहा कि सरकार की भेदभावपूर्ण कार्रवाई के खिलाफ 28 अप्रैल को भाकपा-माले के सभी विधायक धरना देंगे और बाकी बचे 06 टाडा बंदियों की रिहाई की मांग भी करेंगे।
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