पौष पुत्रदा एकादशीः इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ अवश्य सुनें यह व्रत कथा

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नई दिल्लीः इस बार पौष पुत्रदा एकादशी 24 जनवरी (रविवार) को है। ऐसी मान्यता है कि इस एकादशी पर व्रत रख कर संतान की कामना करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। पौष पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा आराधना की जाती है। इस व्रत के करने वाले को प्रातःकाल स्वच्छ होने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और व्रत कथा भी अवश्य ही श्रवण करना चाहिए। इस बार पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 23 जनवरी दिन शनिवार को रात 8 बजकर 56 मिनट पर शुरू हो रही है। यह तिथि 24 जनवरी दिन रविवार रात 10 बजकर 57 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि 24 जनवरी को है, इसलिए यह व्रत रविवार को ही रखा जाएगा।

ऐसा भी बताया जाता है कि जिन दंपतियों की संतान नही होती है, उन्हें पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य ही करना चाहिए। इस व्रत के करने और जगत पालक भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा आराधना करने वाले को संतान की प्राप्ति अवश्य होती है। इसके साथ ही उनके सभी कष्ट भी दूर हो जाते हैं। पौष पुत्रदा एकादशी के दिन पूजा के दौरान इस व्रत कथा का श्रवण जरूर करना चाहिए। धार्मिक कथाओं के अनुसार, भद्रावती राज्य में एक राजा सुकेतुमान थें। उनकी पत्नी का नाम शैव्या था। राजा के पास सुख-संपदा की हर वस्तु थी। उनके घर में किसी भी चीज की कोई नही थी। लेकिन बस उनके जीवन में एक ही कमी थी संतान की। इस एक वजह से राजा और रानी हमेशा दुखी रहते थे। राजा को यह चिंता भी सताती थी कि उनकी मृत्यु के बाद पिंडदान कौन करेगा। राजा इतना दुखी हो गये कि उन्होंने एक दिन अपनी जीवनलीला समाप्त करने की ठान ली। लेकिन उसे पाप का डर था इसलिए उसने यह विचार त्याग दिया। राजा का मन राजपाठ में नहीं लग रहा था। ऐसे में वो जंगल की ओर चला गया।

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राजा को जंगल में कई पक्षी और जानवर दिखाई दिए। इन्हें देख राजा के मन में बुरे विचार आने लगे। राजा काफी दुखी हो गया और एक तालाब के किनारे बैठ गया। वहां पर कई ऋषि मुनियों का आश्रम बना हुआ था। राजा आश्रम में गये और ऋषि मुनि राजा को देखकर प्रसन्न हुए। ऋषि मुनियों ने कहा कि आप हमें अपनी इच्छा बताएं। राजा ने अपनी परेशानी की वजह ऋषि मुनियों से कही। राजा की चिंता सुनकर मुनि ने उनसे कहा कि उन्हें संतान प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना होगा। राजा ने विधि विधान से व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा आराधना की और फिर द्वादशी तिथि को पारण किया। इस व्रत के प्रभाव से कुछ दिनों बाद रानी गर्भवती हुईं और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।