रायपुर : “किसान किताब” हर जमींदार/जमींदार किसान के जीवन का अभिन्न अंग रहा है। यह छोटी पुस्तिका किसान के सभी कृषि और वित्तीय कार्यों की आधिकारिक पुष्टि का स्रोत रही है। यह कहना गलत नहीं होगा कि इसका सीधा संबंध किसान की पहचान से रहा है।
बलौदा बाजार-भाटापारा विधानसभा क्षेत्र के ग्राम कादर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा आयोजित बैठक के दौरान “भूमि अधिकार और ऋण पुस्तिका या किसान किताब” के महत्व को ध्यान में रखते हुए इसे नया नाम देने का आह्वान किया गया है। इसके नामकरण के लिए आम जनता से प्रस्ताव आमंत्रित किए गए हैं तथा प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागी को एक लाख रुपये का पुरस्कार देने की घोषणा की गई है।
इस लिंक पर 30 जून तक भेजें सुझाव –
मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुसार नामकरण को अंतिम रूप देने के लिए प्रतिभागियों से सुझाव आमंत्रित करने के लिए विभाग द्वारा वेब पोर्टल तैयार किया गया है, जिसका लिंक https://revenue.cg.nic.in/rinpustika है। इस पर प्रत्येक प्रतिभागी 30 जून 2023 तक अपना मोबाइल नंबर दर्ज कराकर अपनी प्रविष्टि अपलोड कर सकता है।
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भू-राजस्व संहिता के प्रभावशील होने के पश्चात् वर्ष 1972-73 में इस पुस्तिका का नामकरण ‘भू अधिकार एवं ऋण पुस्तिका किया गया। मालगुजारी के समय से ही राज्य का हर किसान परंपरागत रूप से अपनी जमीन का हिसाब किताब के रूप में रखता था। बैलों के जोड़े के चित्र वाली एक लाल रंग की पुस्तिका, जिसे “असली रैयतवारी रसीद बही” कहा जाता था, मालगुजारों द्वारा काश्तकारों को दी जाती थी। कालांतर में इस पुस्तिका को भू-राजस्व संहिता में वैधानिक रूप प्रदान किया गया। छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के पश्चात् वर्ष 2003 में ऋण पुस्तिका का नाम किसान किताब किया गया लेकिन इसके उद्देश्यों एवं उपयोग में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
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