लखनऊः कोरोना के कठिन दौर में शहर में मौतों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। शवों की संख्या बढ़ने की वजह से अफरा-तफरी का माहौल मच गया था, लेकिन नगर निगम लखनऊ ने पूरी सक्रियता दिखाते हुए लकड़ियों की किल्लत दूर कर दी है। जानकरी के मुताबिक, मंगलवार को रात दस बजे तक शव शहर के दो श्मशान घाटों पर पहुंचाए गए। इसमें कई शव संक्रमित भी थे। बैकुंठधाम में शवों के अंतिम संस्कार के दौरान दो दिन से लकड़ी की किल्लत हो गई थी। सोमवार को लकड़ियों को लेकर काफी शोर-शराबा भी हुआ था। इसके बाद नगर निगम प्रशासन ने लकड़ी जुटाने में सक्रियता दिखाई। शहर के आरा मशीन मालिकों से बैकुंठधाम के लिए लकड़ियां देने की अपील की गई।
बैकुंठधाम पर सोमवार और मंगलवार को करीब 150 शव पहुंचने के चलते ऐशबाग, निशातगंज, रहीमनगर और डालीगंज आदि से लकड़ी खरीद कर लानी पड़ी थी। दो दिन की अफरा-तफरी के बाद मंगलवार की रात नगर निगम ने पूरी तरह से नियंत्रण पा लिया है। ऐशबाग से लकड़ी पर्याप्त न मिल पाने पर शहर की अन्य आरा मशीनों से संपर्क कर देर शाम तक समाधान पा लिया गया। पहले यहां रोजाना 15 से 20 शव आते थे, अब 40 से अधिक आ रहे हैं। घाट पर लकड़ी का रेट 550 रुपये प्रति क्विंटल फिक्स था। मजबूरी का फायदा उठाकर मनमानी तरीके से लकड़ियों के दाम वसूले जाने पर यहां हंगामा भी हुआ था। इसके बाद नगर निगम की ओर से बैकुंठधाम में ऐसे बोर्ड भी लगाए गए हैं, जिनसे जानकारी दी गई है कि अब यहां लकड़ियों के दाम नहीं लिए जाएंगे। कई ट्राली लकड़ियां रोज लाई जा रही हैं।
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इस सच्चाई को स्वीकार करें
हिंदू धर्म में कभी शव को रात में मुखाग्नि नहीं दी जाती है। पिछले तीन दिन से ऐसी कौन सी मजबूरी हो गई है कि बैकुंठ धाम में रात दस बजे तक शव जलाए गए। इसके लिए माना जा रहा है कि कहीं न कहीं सरकार और नगर निगम जिम्मेदार है। यह ऐसा कड़वा सत्य है, जिसे स्वीकार करना ही होगा। पहले दो दिन तक लकड़ियों की किल्लत रही और बाद में जगह कम पड़ने लगी। आखिर नगर निगम ने विद्युत शवदाह गृह को और विस्तृत क्यों नहीं किया ? यह सवाल इसलिए है क्योंकि आज से नहीं कई सालों से इसकी मांग की जा रही थी। ऐसी दिक्कत कोरोना की पहली लहर के दौरान भी देखी गई। बैकुंठ धाम में कई घंटे के इंतजार करने के बाद मृतक की अंतेष्टि का मौका दिया जा रहा है। मृृतकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हालात यह हैं कि बैकुंठ धाम के बाहर मृतकों के सगे-संबंधियों को कई घंटे चादर बिछाकर बैठना पड़ रहा है। एक दो घंटे नहीं, पांच से छह घंटे तक नंबर का इंतजार करना पड़ रहा है। इससे भी ज्यादा संकट यह है कि शेड से बाहर गोमती नदी के किनारे जहां जगह मिल रही है, नगर निगम वहां लकड़ियां पहुंचा रहा है और चिताएं लगाई जा रही हैं। हर कोई जानता है कि गर्मी बढ़ रही है। शव को ज्यादा समय रखा नहीं जा सकता हैं। वह भी जब कोेरोना से ग्रसित व्यक्ति की मौत पर तो समझदार शव को ज्यादा देर रखना नहीं चाहता है। यही कारण है कि लोग जल्दी से जल्दी शवों को घाटों तक अंतिम संस्कार के लिए लेकर पहुंच रहे हैं। अगर बारिश का दौर होता तो संकट और बढ़ जाता। सरकार और नगर निगम को अब भी चेत जाना चाहिए।