नई दिल्लीः महाराष्ट्र में चल रहे राजनीतिक संकट (Maharashtra Political) मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज (11 मई) बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने शिवसेना के 16 बागी विधायकों के निलंबन पर यह फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि वह अयोग्यता पर फैसला नहीं ले सकता। स्पीकर को इस मामले में जल्द फैसला लेने के आदेश दिए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पार्टी में बंटवारा अयोग्यता कार्रवाई से बचने का आधार नहीं है। उद्धव को दोबारा बहाल नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा अगर उद्धव ठाकरे इस्तीफा नहीं देते तो राहत मिल सकती थी।
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बड़ी बेंच करेगी मामले की सुनवाई
इस मामले (Maharashtra Political) को बड़ी बेंच का पास भेजा जाना चाहिए। स्पीकर के खिलाफ अगर अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है, तो क्या वह विधायकों की अयोग्यता की अर्जी का निपटारा कर सकते हैं? अब इस मुद्दे की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की पीठ करेगी। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि व्हिप को मान्यता देकर स्पीकर की कार्रवाई की वैधता की जांच करने से अदालतों को अनुच्छेद 212 से बाहर नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्हिप राजनीतिक पर्टी द्वारा जारी किया जाता है और संविधान की 10वीं अनुसूची में आता है।
21 जून, 2022 को शिवसेना विधायक दल के सदस्य मीटिंग करते हैं और एकनाथ शिंदे को पद से हटाते हैं। स्पीकर को राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए थी, न की शिंदे गुट द्वारा नियुक्त व्हिप भरतशेट गोगावले को। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि गोगावाले (शिंदे समूह) को शिवसेना पार्टी के मुख्य मान लेना स्पीकर का फैसला अवैध था। सुप्रीम कोर्ट इस फैसले के बाद शिंदे गुट को व्हिप की नियुक्ति को लेकर तगड़ा झटका लगा है। फिलहाल कोर्ट के इस फैसले के बाद महाराष्ट्र में शिंदे सरकार बनी रहेगी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे और अन्य विधायकों के विद्रोह के संबंध में महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट पर अपना फैसला सुनाया, जिसके कारण उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी सरकार गिर गई। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास महा विकास अघाड़ी सरकार के विश्वास पर संदेह करने और न ही फ्लोर टेस्ट के लिए कोई तथ्य है। न ही फ्लोर टेस्ट के लिए कहा। पीठ ने कहा कि देवेंद्र फडणवीस और निर्दलीय विधायकों ने भी अविश्वास प्रस्ताव नहीं रखा और राज्यपाल का विवेकाधिकार कानून के मुताबिक नहीं था।
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