Lucknow News : गंगा-यमुना के बीच बसे फ़तेहपुर जिले की राजनीतिक स्थिति का अंदाज़ा इसी बात से लगा लीजिए कि 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह फ़तेहपुर लोकसभा सीट से जीतकर प्रधानमंत्री बने थे। इतना ही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे भी इस सीट से दो बार सांसद चुने गए। पिछले एक दशक से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है। उत्तर प्रदेश संसदीय सीट संख्या 49 फ़तेहपुर पर पांचवें चरण के तहत 20 मई को मतदान होगा।
फ़तेहपुर संसदीय सीट का इतिहास
1952 के पहले आम चुनाव में यह सीट बांदा जिला-फतेहपुर जिला सीट थी। उस समय इस सीट से दो सांसद चुने गये थे। यहां पहला चुनाव कांग्रेस ने जीता था। हालांकि, ये सीट कभी किसी पार्टी का गढ़ नहीं बनी। 1990 के बाद के दौर में मुकाबला त्रिकोणीय रहा है। जीत कभी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को मिली है तो कभी समाजवादी पार्टी (एसपी) या बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) को। कांग्रेस यहां आखिरी बार 40 साल पहले जीती थी।
पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे हरिकृष्ण शास्त्री 1980 और 1984 के चुनाव में यहां से सांसद बने। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 1989 और 1991 का संसदीय चुनाव जनता दल के टिकट पर जीता। 1989 में जीत हासिल करने के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री भी बने। 1998 के चुनाव में बीजेपी के अशोक कुमार पटेल ने यहां बीजेपी की जीत का खाता खोला। 2014 और 2019 के चुनाव में यहां बीजेपी प्रत्याशी साधवी निरंजन ज्योति ने जीत का परचम लहराया। अब उनकी नजर जीत की हैट्रिक पर है।
पिछले दो चुनावों की स्थिति
2019 के आम चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार साध्वी निरंजन ज्योति ने एसपी के सुखदेव प्रसाद वर्मा को हराया था। निरंजन ज्योति को 566,040 (54.19 फीसदी) वोट मिले थे और सपा उम्मीदवार को 367,835 (35.22 फीसदी) वोट मिले थे। जीत का अंतर करीब दो लाख वोटों का था। कांग्रेस प्रत्याशी राकेश सचान तीसरे स्थान पर रहे और उनकी जमानत जब्त हो गई। राकेश सचान को 66,077 (6.33 फीसदी) वोट मिले थे।
2014 के चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी साध्वी निरंजन ज्योति ने 1 लाख 87 हजार 206 वोटों से जीत हासिल की थी। निरंजन ज्योति को 485,994 (45.97 फीसदी) वोट मिले थे और दूसरे नंबर पर रहे बीएसपी उम्मीदवार अफजल सिद्दीकी को 298,788 (28.26 फीसदी) वोट मिले थे। सपा के राकेश सचान और कांग्रेस की ऊषा वर्मा तीसरे और चौथे स्थान पर रहीं। कांग्रेस प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई।
किस पार्टी ने किसे बनाया नॉमिनेट?
बीजेपी ने मौजूदा सांसद साध्वी निरंजन ज्योति को तीसरी बार मैदान में उतारा है। सपा की ओर से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नरेश चंद्र उत्तम पटेल चुनाव प्रचार में उतर गये हैं। बसपा की ओर से मनीष सिंह सचान चुनौती दे रहे हैं। चुनाव में कुल 15 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें से 4 निर्दलीय हैं।
फ़तेहपुर सीट का जातीय समीकरण
19 लाख मतदाताओं वाले फ़तेहपुर संसदीय क्षेत्र में अनुमानित 4 लाख दलित, 3 लाख क्षत्रिय, 1.50 लाख निषाद, 2.50 लाख ब्राह्मण, 2 लाख यादव, 1.25 लाख वैश्य और 2 लाख कुर्मी मतदाता हैं। मुस्लिम वोटर करीब 2 लाख हैं। किसी भी पार्टी का गणित बनाने या बिगाड़ने में निषाद और कुर्मी मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं।
विधानसभा सीटों की स्थिति
फ़तेहपुर संसदीय सीट में 6 विधानसभा सीटें बिंदकी, जहानाबाद, फ़तेहपुर, अयाह शाह, हुसैनगंज और खागा (एससी) शामिल हैं। बिंदकी सीट पर बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल सोनेलाल का कब्जा है। फ़तेहपुर और हुसैनगंज सीट पर सपा का कब्ज़ा है। बाकी तीन सीटों पर बीजेपी का कब्जा है।
जीत और चुनौतियों का गणित
फ़तेहपुर की राजनीति दो हिस्सों में बंटी हुई है। एक तरफ कुर्मी, लोध और मौर्य समुदाय हैं और दूसरी तरफ क्षत्रिय, ब्राह्मण और निषाद सहित ओबीसी का शेष हिस्सा है। कुर्मियों से बढ़ती नजदीकियों का फायदा सपा को 2022 के विधानसभा चुनाव में फतेहपुर सीट से चंद्रप्रकाश लोधी और हुसैनगंज से उषा मौर्य की जीत से मिला। सपा भी अंदरूनी कलह से जूझ रही है। नरेश उत्तम को टिकट मिलने से पार्टी का एक धड़ा खुश नहीं है।
बीजेपी के लिए असंतुष्टों पर काबू पाना बड़ी चुनौती है। इस गृह कलह का असर विधानसभा चुनाव के अलावा नगर निगम चुनाव में भी दिखा। नाराज वोटरों को मनाने के साथ ही कोर वोटरों को जोड़े रखने की भी चुनौती है। बसपा ने कानपुर निवासी मनीष सचान को मैदान में उतारा है। पार्टी को उम्मीद है कि मनीष कुर्मी वोट बांटेंगे।
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पत्रकार रोहित माहेश्वरी के मुताबिक इस बार फ़तेहपुर में लड़ाई कड़ी है। जीत का कांटा किसी भी तरफ झुक सकता है। बीजेपी ये चुनाव पीएम मोदी के चेहरे और नाम के साथ लड़ रही है, जिससे बीजेपी को फायदा होगा।
फतेहपुर से कौन कब बना सांसद
1952 शिव दयाल/प्यारे लाल (कांग्रेस)
1957 अंसार हरवानी (कांग्रेस)
1962 गौरी शंकर (निर्दलीय)
1967 संत बक्श सिंह (कांग्रेस)
1971 संत बक्श सिंह (कांग्रेस)
1977 बशीर अहमद (भारतीय लोकदल)
1978 सैय्यद लियाकत हुसैन (जनता पार्टी) उपचुनाव
1980 हरिकृष्ण शास्त्री (कांग्रेस आई)
1984 हरिकृष्ण शास्त्री (कांग्रेस)
1989 विश्वनाथ प्रताप सिंह (जनता दल)
1991 विश्वनाथ प्रताप सिंह (जनता दल)
1996 विश्वम्बर नाथ निषाद (बसपा)
1998 अशोक कुमार पटेल (भाजपा)
1999 अशोक कुमार पटेल (भाजपा)
2004 महेन्द्र प्रसाद निषाद (बसपा)
2009 राकेश सचान (सपा)
2014 साध्वी निरंजन ज्योति (भाजपा)
2019 साध्वी निरंजन ज्योति (भाजपा)
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