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देश के लिए चुनौती बनता “भूमि जिहाद”

land-jihad-becoming-a-challenge-for-the-country आज देश का शायद ही कोई शहर या कस्बा होगा, जहां के लोगों ने लव जिहाद और उसके विकृत स्वरुप को नजदीक से देखा-सुना या महसूस न किया हो। सरकार की प्रशासनिक व्यवस्था और हिंदू संगठनों का भगीरथ प्रयास भी इस विकृति पर अंकुश लगाने में अब तक विफल रहा है। शायद इस विफलता का ही परिणाम है कि लव जिहाद का एक और रुपांतरण “भूमि जिहाद” (Land Jihad) जो लैंड जिहाद के नाम से चर्चा में है, देश के सामने नई चुनौती बन कर सामने खड़ा है। जिहादियों के हौसले बुलंद है, उनके दिल व दिमाग से कानून का खौफ गायब है और सामाजिक समरस्ता से उनका कोई सरोकार नहीं है। सबसे आश्चर्य तो यह है कि उनके इस अवैध कार्य में हिंदू समाज के तमाम लोग सेक्युलरिज्म के नाम पर उनके साथ खड़े हैं। भूमि जिहाद आज जिन अर्थों में प्रयोग हो रहा है, उसका सीधा अर्थ है भूमि पर अवैध कब्जा करना। यह भूमि सरकारी है या निजी, यह कोई मायने नही रखता है। खाली पड़ी सरकारी भूमि पर बहुत ही सुनियोजित साजिश के तहत मुस्लिम पक्ष कब्जा करता है। महत्वपूर्ण स्थलों के आस-पास सरकारी भूमि पर कब्जा करने का सबसे सफल तरीका है मजार या कब्रिस्तान का निर्माण और यदि भूमि ज्यादा है तो मस्जिद। सबसे पहले सार्वजनिक स्थलों के आस-पास एक छोटा सा चबूतरा बनाया जाता है। कुछ दिन बाद सफेद चूने से पोताई करके एक हरे रंग की चादर डाल दी जाती है। कुछ ही समय में वहां मुसलमानों से अधिक हिंदू समाज के लोग धूप, अगरबत्ती और प्रसाद लेकर पहुंचने लग जाते हैं। थोड़े अंतराल के बाद वहां उर्स का भी कार्यक्रम होने लगता है। शासन-प्रशासन का ध्यान भी इस अवैध कब्जे की ओर नही जाता है और एक दशक बाद तो वह किसी सूफी संत की विख्यात मजार हो जाती है। इसी बीच वहां आस-पास खाली पड़ी भूमि पर कब्जा होता रहता है और समय के साथ वहां चहरदीवारी का निर्माण और गेट आदि भी लगा दिए जाते हैं। सबसे प्रमुख बात तो यह है कि लगभग हर शहर में तमाम महत्वपूर्ण स्थलों के साथ-साथ संवेदनशील स्थलों जैसे रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, सैनिक छावनी, विद्युत उपकेन्द्रों, पुलों और फ्लाईओवर के नीचे मजार या दरगाह दिख जाएगी। लगभग यही स्थिति मस्जिदों की भी है। शहर और कस्बों के बीच अति घनी आबादी में मस्जिद जरुर मिलेगी। यदि सरकारी भूमि अधिक है, तो पहले एक मुसलमान अत्यंत ही दीन-हीन दशा में वहां पर कोई छोटी-मोटी दुकान या झोपड़ी डाल कर स्थापित होगा और जब उसका कोई विरोध नहीं होगा तो कुछ दिन बाद उसका परिवार और फिर उसके निकट सम्बंधी एक-एक कर वहां स्थापित होंगे। इस बीच वह जुगाड़ करके राशन कार्ड, वोटर आईडी और आधार कार्ड जैसे महत्वपूर्ण कागजात बनवा लेगा और जब कोई चुनाव आएगा तो वह सबसे पहले सुविधाएं न मिलने का रोना रोएगा। अब तक वोट बैंक बन चुका वह मुस्लिम परिवार सहानुभूति का हकदार हो जाता है और उसके अवैध कब्जे पर चर्चा बंद हो जाती है। वह करोड़ों की भूमि का मालिक बन जाता है और इसी के साथ एक नई मुस्लिम बस्ती स्थापित हो जाती है। सरकारी भूमि पर इस प्रकार के कब्जाधारक मुस्लिम पक्ष अधिकांशतः अशिक्षित और आर्थिक रुप से कमजोर तो होते हैं लेकिन उनके प्रेरक वह तमाम जिहादी लोग होते हैं, जो इस प्रकार के अवैध कृत्यों में सफल होकर किसी मजार, दरगाह या फिर मस्जिद के संचालक या फिर अवैध बस्तियों के मुखिया होते हैं। इनसे इतर जिहादियों का एक दूसरा वर्ग है, जो आर्थिक रुप से काफी सम्पन्न है, उनका तरीका भी अलग है। कोई एक मुसलमान हिंदुओं की बस्ती में अपने लिए मकान खरीदेगा और आस-पास मेल जोल बढ़ाएगा। हिंदुओं के त्यौहारों में शामिल होकर चंदा देने की औपचारिकता भी पूरी करेगा। कुछ समय बाद वह अपना त्यौहार ईद, बकरीद मनाएगा। कुर्बानी देने के बहाने वह मुस्लिमों की एक बड़ी जमात अपने घर बुलाएगा। कुर्बानी का मांस कुछ हिंदू परिवारों को भी भेजेगा और कुर्बानी के बाद सारी गंदगी वह आस-पास फेंकेगा। इसके बाद वह जब भी अपने लोगों की दावत करेगा या स्वयं मांस मछली खाएगा तो उसकी हड्डी और कचरा बाहर सड़क पर या खाली पड़े किसी स्थान पर फेंक देगा। इसका परिणाम यह होता है कि कचरे की बदबू और हड्डी के टुकड़े आस-पास के परिवारों तक पहुंच जाते हैं, जिससे उनका जीना दुश्वार हो जाता है। कुछ दिन तक तो पड़ोस के लोग इसे सहिष्णुता में बर्दाश्त करते हैं क्योंकि उन्हें पता नही होता है कि यह सब जान-बूझ कर किया जा रहा है। उन्हें लगता है कि ऐसे हो गया होगा लेकिन जब यह प्रायः होने लगता है, तो उन्हें मजबूरन टोकना पड़ता है। यहीं से नए विवाद की शुरुआत होती है। हिंदू परिवारों को हनक दिखाने और धमकाने के लिए अब वह तमाम अराजक तत्वों को बुलाने लगता है, जो आस-पास की महिलाओं और लड़कियों पर फब्तियां कसते हैं और मौका मिला तो छेड़ते भी हैं। अधिकांश अन्य हिन्दू परिवार इस विवाद से दूरी बनाए रखता है, जिसका परिणाम यह होता है कि पीड़ित परिवार अपना मकान बेच कर कहीं और ठिकाना बनाते हैं। कुछ दिन बाद हिंदू बस्ती मुस्लिम बाहुल्य बस्ती के रुप में चर्चित हो जाती है।

गुजरात में सामने आया बड़ा फर्जीवाड़ा

आज देश के अधिकांश राज्य इस भूमि जिहाद से प्रभावित है, जिसमें से कुछ राज्यों में तो इसके गम्भीर परिणाम सामने आए हैं। जम्मू-कश्मीर से 1990 के आस-पास हिंदुओं को अपनी जान और धार्मिक पहचान बचाने के लिए बड़ी संख्या में पलायन करना पड़ा। इसे एक बड़ी घटना के रुप में देश-विदेश तक जाना जाता है। असम में घुसपैठ करके आए बंगलादेशी मुसलमानों द्वारा हिंदुओं को अनेक प्रकार से प्रताड़ित करके जमीन बेचने पर मजबूर करने की शिकायतों को गम्भीरता से लेते हुए भाजपा ने असम विधानसभा चुनाव में भूमि जिहाद को अपने संकल्प पत्र में शामिल किया था। उत्तराखण्ड, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में भी भूमि जिहाद के मामले बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं। गुजरात राज्य के कई शहरों में मुसलमानो द्वारा अरबों रुपए का निवेश करके सम्पतियां क्रय की जा रही हैं। गत वर्ष एक ऐसा ही मामला खेड़ा शहर में आया, जहां मुसलमानों ने फर्जीवाड़ा करके 400 करोड़ में 2,000 हजार बीघा जमीन फर्जी किसानों के मिलते-जुलते नामों के साथ क्रय कर ली। मामले को संज्ञान लेते हुये राजस्व राज्य मंत्री राजेन्द्र त्रिवेदी ने स्वयं खेड़ा के मातर तहसील जाकर मामले को दिखवाया, तो पता चला कि यह कार्य 2012 से बड़े ही सुनियोजित तरीके से चलाया जा रहा है। ऐसे 1930 मामले संदिग्ध पाए गए। land-jihad मंत्री ने सवाल उठाया कि एक विशेष वर्ग के लोग एक ही क्षेत्र में सामूहिक रुप से जमीन क्यों खरीद रहे हैं, इसकी जांच कराई जाएगी। कुछ विश्वसनीय समाचार साइटों पर तो यहां तक कहा जा रहा है कि गुजरात में भगवान कृष्ण की नगरी द्वारिका में भी बड़ा खेल हो रहा है। वहां के अधिकांश हिन्दू परिवार मुसलमानों को अपनी भूमि-भवन बेच कर अन्यत्र ठिकाना बना रहे है। अब वहां 20 प्रतिशत ही हिंदू बचे हैं। गुजरात के सूरत शहर का गोपीपुरा इलाका कोई तीन दशक पहले तक हिन्दू और जैन बाहुल्य हुआ करता था। यहां एक किमी के दायरे में लगभग 30 जैन मंदिर स्थापित हैं। इस क्षेत्र में बने सुनीश, गणेश, नीरव, पंचरत्न, रंगकला, स्वाती जैसे अपार्टमेंट जैन समुदाय के हुआ करते थे, परंतु अब यहां के 50 प्रतिशत अपार्टमेंट मुसलमानों ने खरीद लिए हैं। मुस्लिम परिवारो की पशु हिंसा और लगातार बढ़ती छेड़खानी से आजिज आकर अब जैन समुदाय अपने अपार्टमेंट बेच कर अन्यत्र जा रहे हैं। भरुच के सोनिफालिया में भी ऐसा ही चल रहा है। लोग अपने घरों में ताला बंद करके अन्यत्र रह रहे हैं। इलाके के विख्यात साई जलाराम मंदिर और शिव मंदिर के आस-पास मुस्लिम बस्ती हो जाने से वहां भजन, आरती और कीर्तन बंद हो गए हैं। मुस्लिम बस्ती के लोग कहते हैं कि भजन हराम है। गुजरात राज्य में चल रहे भूमि जिहाद की यह कुछ घटनाएं तो बानगी भर है। यद्यपि सरकार ने इसे रोकने के लिए अपने कानूनों में संशोधन किया है, लेकिन उसका असर दिखने में अभी समय लगेगा। देश के अधिकांश राज्यों में बढ़ते लव जिहाद, भूमि जिहाद, धर्मांतरण जैसे मुद्दों पर आम हिंदुओं की चुप्पी तोड़ने की अगुवाई महाराष्ट्र में बना हिन्दू जन आक्रोश मोर्चा कर रहा है। नवम्बर 2022 से महाराष्ट्र के सभी 36 जिलों में सकल हिंदू समाज की ओर से यह मोर्चा रैलियां आयोजित कर रहा है। बताया जा रहा है कि यह मोर्चा अब तक 50 से अधिक रैलियां एक ही संकल्प ‘लव जिहाद, भूमि जिहाद और मुस्लिम समाज का आर्थिक बहिष्कार’ पर आयोजित कर चुका है। मोर्चे में शामिल नेताओं का कहना है कि सारे जिहाद का एक ही समाधान है, उनका आर्थिक बहिष्कार। इस मोर्चे में संघ, विहिप, बजरंग दल जैसे हिंदू संगठनों के साथ-साथ भाजपा और सत्ता में शामिल सहयोगी दलों के लोग व्यक्तिगत रुप में शामिल हो रहे हैं क्योंकि भाजपा ने खुद को इन रैलियों से किनारे कर लिया है।

उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में कसी गई नकेल

हिंदुओं की देवभूमि उत्तराखण्ड में भूमि जिहाद ने कई शहरों, कस्बों यहां तक कि गांवों की जनसांख्यिकीय आंकड़ों में बड़ा बदलाव कर दिया है। सरकारी भूमि, नदियों के किनारे, संरक्षित वनों, पहाड़ों के साथ-साथ अनेक संवेदनशील स्थानों पर अवैध मुस्लिम बस्तियां और मजारें बना दी गई हैं। उनमें से तमाम मजारों को पीर की मजार बताते हुए उर्स के आयोजन हो रहे हैं। सरकार द्वारा अवैध मजारों के चिन्हीकरण हेतु चलाए गए अभियान में यह संख्या 1,000 से ज्यादा पाई गई है, जिनके ध्वस्तीकरण का अभियान चल रहा है। हाल ही में मुख्यमंत्री ने पत्रकारों को बताया कि 300 से अधिक मजारों को हटाया गया है। सबसे आश्चर्य यह है कि हाल के वर्षों में निर्मित इन मजारों में कोई मानव अवशेष नही पाया गया है। पौड़ी, उत्तरकाशी, टिहरी जैसे पर्वतीय जिलों के दूरस्थ क्षेत्रों में भी मजारें निर्मित की गई थीं, जिन्हें ध्वस्त किया गया है। अब सरकारी स्कूलों या अन्य कार्यालय परिसरों में बनी मजारों के कालखंड की पड़ताल भी सरकार करा रही है। मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य की 23 नदियों के किनारे एवं वन भूमि पर बड़ी संख्या में कब्जे की पुष्टि ड्रोन सर्वे में हुई है, जिसे हटाने की तैयारी है। अब वन, लोनिवि, सिंचाई, राजस्व विभाग के अधिकारियों से कहा गया है कि जिस अधिकारी के क्षेत्र में कब्जे पाए जाएंगे, उसके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। इसके साथ ही सरकार ऐसा सख्त कानून लाने की तैयारी में है, जिसमें सरकारी भूमि को कब्जामुक्त कराने के साथ ही सजा और भारी जुर्माने का प्रविधान होगा। उत्तर प्रदेश भी भूमि जिहाद की साजिश से अछूता नहीं है लेकिन भाजपा के सत्ता में आने बाद अधिकांश अवैध निर्माणों पर सीएम योगी का बुलडोजर चल रहा है। विकास कार्यों, सड़क चौड़ीकरण और संवेदनशील स्थानों से कथित मजार, दरगाह और मस्जिद को हटाया जा रहा है। इस जिहाद से जुड़े लोगों को न्यायालय से कोई राहत नहीं मिल रही है। अक्टूबर 2021 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रयागराज के चन्द्रशेखर आजाद पार्क में बनी कथित मस्जिद और मजार को तत्काल हटाने का आदेश दिया था, क्योंकि मुस्लिम पक्ष अब वहां कब्रिस्तान बनाने का प्रयास कर रहे थे। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय परिसर में बनी मस्जिद को हटाने का आदेश दे चुका है। माफिया अतीक अहमद प्रयागराज के ही करेली क्षेत्र में गरीब और कमजोर लोगों की भूमि पर अवैध कब्जा करके वहां मुस्लिम बस्ती बसाने की योजना तैयार कर रहा था, लेकिन एसटीएफ ने उसकी योजना को विफल कर दिया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जन उद्घोष सेवा संस्थान द्वारा दाखिल एक जनहित याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से न्यायालय को बताया गया है कि प्रदेश में सार्वजनिक स्थानों पर अवैध रूप से निर्मित की कई मस्जिदों और मजारों को ध्वस्त कर दिया गया है, जबकि कई अन्य को नोटिस जारी किए गए हैं, लेकिन इन अवैध मजारों या दरगाहों को हटाया जाना बहुत आसान प्रतीत नही होता है क्योंकि पूर्व की सरकारों ने इसे स्थापित कराने में बड़ा योगदान किया है और आज भी वह सभी राजनीतिक दल इसे खाद पानी दे रहे हैं। कहा जा रहा है कि अभी भी नेपाल के सीमावर्ती जनपद श्रावस्ती में बौद्ध मंदिरों और अन्य आस्था स्थलों के आस-पास बड़ी संख्या में मजार, मस्जिद और मदरसे बन रहे हैं, जो किसी सुनियोजित साजिश का इशारा करती है। land-jihad

दिल दहलाती जबलपुर की घटना

भूमि जिहाद की पिछले दिनों एक ऐसी घटना घटी, जिसने दिल दहला दिया। मध्य प्रदेश के शहर जबलपुर में यह मामला सामने आया। नगर के जवाहरगंज मुहल्ले में हर्ष मुखर्जी का एक बंगला है, जिसमें 70 कमरे हुआ करते थे। हर्ष मुखर्जी कभी बड़े जमीदारों में गिने जाते थे। हर्ष की मौत के बाद उनकी पत्नी प्रभा मुखर्जी अपने दो बेटों जयंत और अमित के साथ रहती थी। शहरी क्षेत्र होने के कारण पूरा इलाका व्यावसायिक क्षेत्र है। वर्ष 2014 में अशरफ और गुड्डू नाम के दो युवकों ने बंगले के सामने फल का ठेला लगाने की अनुमति ली। दोनों ने परिवार से खूब मेलजोल बढ़ाया और फल रखने के लिए बंगले में एक कमरा ले लिया। इसी बीच 2014 में बेटे जयंत और 2015 में दूसरे बेटे अमित की रहस्यमय ढंग से मौत हो गई। 75 वर्षीय प्रभा मुखर्जी अकेले घर में रहने लगीं, जिन्हे कुछ दिन बाद दोनों मुस्लिम युवक देखभाल के नाम पर अपने घर ले आए और प्रभा मुखर्जी से उनकी पूरी जायदाद की वसीयत अपने नाम करा ली। वसीयत के कुछ दिन बाद प्रभा मुखर्जी की भी मौत अज्ञात स्थान पर हो गई। प्रभा की मृत्यु भी संदिग्ध कही जाती है, क्योंकि उनका अंतिम संस्कार 29 अप्रैल 2015 को किया गया जबकि मृत्यु प्रमाण पत्र का आवेदन नगर पालिका में 24 अप्रैल को ही दे दिया गया था। वसीयत के आधार पर दोनों अशरफ उनकी 500 करोड़ की सम्पत्ति, जो जबलपुर और होशंगाबाद में है, के कानूनन वारिस बन गए और होशंगाबाद की 100 करोड़ की सम्पत्ति को बेचने लगे। पिछले महीने जब इन सम्पत्तियों के विक्रय की जानकारी प्रभा मुखर्जी के भतीजे आनन्द चौधरी को हुई तो उन्होंने उच्च न्यायालय से सम्पत्ति विक्रय पर रोक का आदेश प्राप्त कर लिया। आनंद द्वारा इसे लैंड जिहाद से जुड़ा मामला बताते हुए तीनों की रहस्यमय मौत की जांच की मांग की गई, परंतु पुलिस जांच में मौत को प्राकृतिक मौत मानते हुए मामले को रफा-दफा कर दिया गया है। हालांकि, मुस्लिम युवकों के सम्पर्क में आने के चंद महीनों में पूरे परिवार की मौत और मुस्लिम युवकों के पक्ष में सम्पत्तियों की वसीयत, किसी गहरी साजिश की ओर इशारा करती है। यह भी पढ़ेंः-मोदी राज में हो रहा भारत का सांस्कृतिक पुनरोदय

सम्राट अशोक के शिलालेख को ही बना दिया था मजार

लैंड जिहाद के चर्चित मामलों में बिहार के सासाराम का मामला एकदम अजूबा है, जहां मुस्लिम समाज के कुछ लोगों ने मौर्य वंश के सम्राट अशोक के लगभग 2,300 साल पुराने शिलालेख पर ही कब्जा करके उस शिलालेख को मजार बना दिया और आस-पास की भूमि पर कब्जा करके दीवार और गेट लगवा दिया। कलिंग युद्ध में हुए रक्तपात से विचलित सम्राट अशोक भगवान गौतम बुद्ध की शरण में गए और बौद्ध धर्म के संदेशों के प्रसार के लिए जगह-जगह शिलालेख खुदवाए। रोहतास जिले के मुख्‍यालय सासाराम में कैमूर पहाड़ी श्रृंखला की चंदन पहाड़ी की कंदरा में सम्राट अशोक द्वारा लघु शिलालेख ईशापूर्व 231 ईस्वी में उत्कीर्ण कराए गए थे। बिहार राज्य का यह एकमात्र शिलालेख ब्राह्मी लिपि में है और देश में इस प्रकार के मात्र 08 शिलालेख हैं। इस शिलालेख को ब्रिटिश राज में खोजा और संरक्षित किया था। स्वतंत्रता के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने 2008 में इस शिलालेख को संरक्षित स्मारक घोषित किया। वर्ष 2008 में मुस्लिमों के एक समूह द्वारा इस शिलालेख के चारों तरफ अवैध निर्माण करके शिलालेख को सफेद चूने से पुतवा कर उस पत्थर पर हरे रंग की चादर ओढ़ाकर मजार घोषित कर दिया गया। इसे सूफी संत की मजार बताकर सालाना उर्स भी आयोजित होने लगा। शिलालेख की घेराबंदी करके उसके गेट में ताला लगाकर रखा जाने लगा जबकि कैमूर पहाड़ी की चोटी से लगभग 20 फीट नीचे स्थित कंदरा में स्थापित इस शिलालेख के पास भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने संरक्षण सम्बंधी बोर्ड भी लगाया था, लेकिन अतिक्रमणकारियों ने इसे वर्ष 2010 में उखाड़कर फेंक दिया। अतिक्रमण की जानकारी होने पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा वर्ष 2008 से जिलाधिकारी को सम्राट अशोक के शिलालेख के पास से अतिक्रमण हटवाने के लिए लगातार 18 पत्र लिखे गए। जिलाधिकारी द्वारा अधीनस्थों को कार्यवाही का आदेश दिया गया लेकिन कब्जाधारक मरकजी मोहर्रम कमेटी के लोगों ने इसे अनसुना कर दिया। पिछले वर्ष जब मामला मीडिया के माध्यम से सुर्खियों में आया, तो प्रशासन पर कार्यवाही का दबाव बना। आखिरकार प्रशासन नवम्बर 2022 में सम्राट अशोक के शिलालेख परिसर की चाबी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को दिलाने में सफल हुआ। हरि मंगल (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)