Home अन्य संपादकीय ममता राज में महिलाओं के खिलाफ बढ़ती ‘निर्ममता’

ममता राज में महिलाओं के खिलाफ बढ़ती ‘निर्ममता’

देश अभी उद्वेलित है। कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में एक महिला चिकित्सक के साथ हुई दुष्कर्म की घटनाओं ने हर किसी को शर्मसार कर रखा है। मामले में सीबीआई जांच जारी है। सवालों के बीच पश्चिम बंगाल पुलिस अपना काम कर रही है। उच्चतम न्यायालय और कोलकाता हाई कोर्ट अपने अपने स्तर से मामले की सुनवाई कर रहा है। इन सबके बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के रवैये को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। 2011 से सत्ता में काबिज Mamata government में महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध के कई मामले सामने आ चुके हैं, मगर इस केस में ममता पहली बार भारी दबाव में दिख रही हैं।

पूजा समितियों में भी दिखा आक्रोश

ममता को न तो पार्टी का पूरा समर्थन दिख रहा है, न ही इंडिया गठबंधन का। कहा तो यह भी जा रहा कि कोलकाता रेप-मर्डर केस में घिरीं ममता बनर्जी के खिलाफ ही इस बार ‘खेला’ शुरू हो गया है। इसी बीच एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की हालिया रिपोर्ट ने भी पश्चिम बंगाल सरकार की प्रतिष्ठा को काफी धूमिल कर दिया है, इसमें कहा गया है कि देश में कम से कम 151 मौजूदा सांसदों और विधायकों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित मामले हैं।

इस तरह के अपराध का सबसे अधिक सामना पश्चिम बंगाल के मौजूदा सांसद व विधायक कर रहे हैं। वहां के 25 सांसद, विधायक इस लिस्ट में हैं। इन तस्वीरों के बीच स्थिति यह है कि बंगाल की कई दुर्गा पूजा समितियों ने सरकार द्वारा दिए जाने वाले 85 हजार रुपये की अनुदान राशि को लेने से इंकार कर दिया है। पूर्व क्रिकेटर सौरभ गांगुली भी सड़कों पर उतरकर महिला चिकित्सक के खिलाफ हुई घटना को लेकर नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। इस तरह से महिलाओं की गरिमा, सुरक्षा के मामले में ममता सरकार की ‘निर्ममता’ ने कई सवाल खड़े करने शुरू कर दिये हैं।

स्ट्रीट फाइटर की भूमिका में हमेशा रहीं ममता

ममता बनर्जी की कामयाबी के पीछे महिला वोटरों का बड़ा रोल रहा है। बावजूद इसके जिस तरह से बंगाल सहित देश भर में ममता को लेकर सवाल उठने लगे हैं, वह दिलचस्प है। कहा जाता है कि अभी तक अपने खिलाफ उठने वाले ज्यादातर सवालों को ममता झुठलाती रही हैं, उसे राजनीतिक विरोधियों की साजिश बताकर खत्म करती आयी हैं, लेकिन इस बार दांव उलटा पड़ता दिख रहा है। ममता बनर्जी सवालों के चक्रव्यूह में फंसती दिख रही हैं। उनके लिए जवाब देना मुश्किल हो रहा है। ममता बनर्जी अक्सर खुद को राजनीति में लड़ाकू स्वभाव (स्ट्रीट फाइटर) की भूमिका में दिखाती रही हैं, लेकिन युवा महिला चिकित्सक के साथ कोलकाता में हुई घटना से उनकी राजनीति फिलहाल स्ट्रीट के सबसे नाजुक मोड़ पर पहुंच गई है।

अपने नेताओं का हमेशा किया बचाव

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कोलकाता रेप और मर्डर केस पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जो सवाल उठाये हैं, अदालत की हर टिप्पणी ममता बनर्जी का रुख जानना चाह रही है, लेकिन लगता नहीं कि ममता बनर्जी के पास प्रतिक्रिया दिखाने को कुछ ठोस रास्ता बचा भी है। अदालत के नोटिस पर राज्य सरकार की तरफ से औपचारिक जवाब दाखिल किया जाना अलग बात हो सकता है। चाहे शारदा स्टिंग का मामला हो या नारदा स्कैम का, ममता हमेशा मोर्चे पर सामने और सबसे आगे देखी गयी हैं। डंके की चोट पर अपना और अपने नेताओं का बचाव करती आयी हैं। अपने दम पर चुनाव में सफलता भी हासिल करती रही हैं।

किसी को जीत दिलाने के साथ मंत्री भी बना देती रही हैं, लेकिन कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टर के साथ रेप और उसकी हत्या ने ममता बनर्जी की राजनीति का सारा ‘खेला’ खराब कर दिया है। ऐसे ममता बनर्जी की राजनीति बेदाग रही है। उनके साथी नेता और भतीजे अभिषेक बनर्जी भी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं। फिर भी उन पर कभी आंच नहीं आई है, लेकिन इस बार उनकी सरकार अपने आप सवालों के घेरे में आ चुकी है। उच्चतम न्यायालय ने जब कोलकाता कांज पर सुनवाई शुरू की तो उसका सवाल था कि जब आरजी कर अस्पताल के प्रिंसिपल का आचरण जांच के दायरे में था, तो फौरन उसे दूसरे कॉलेज में कैसे नियुक्त कर दिया गया?

ममता के हाथ से निकले मौके

 

अब ऐसे गंभीर सवाल का जवाब ममता बनर्जी को देना आसान नहीं, क्योंकि सरकार की मुखिया वही हैं, तो उनकी प्रतिक्रिया का इंतजार है। अक्सर अलग-अलग घोटालों, आरोपों में फंसे अब तक अपने नेताओं को क्लीन चिट देती रहने वाली ममता को मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल रहे संदीप घोष के मामले में भी देना सहज नहीं होने वाला। यहां तक ममता बनर्जी इस बार अपने पुलिस कमिश्नर के लिए पिछली बार की तरह धरने पर भी नहीं बैठ सकतीं। जो हालात हैं, बताते हैं कि ऐसे सारे ही मौके ममता के हाथ से निकल चुके हैं।

उच्चतम न्यायालय की चिंता

कोलकाता रेप-मर्डर केस की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने न सिर्फ बंगाल सरकार से जवाब मांगा है बल्कि चिंता भी जाहिर की है। कोर्ट ने कहा कि ये केवल भयावह घटना नहीं बल्कि पूरे भारत में चिकित्सकों की सुरक्षा की कमियों को उजागर करती है। यही वजह है कि न्यायालय नेशनल टास्क फोर्स बनाना चाहता है, जिसमें चिकित्सकों की भी भागीदारी होगी। चिकित्सकों की हड़ताल को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे इस बात को समझें कि पूरे देश का हेल्थ केयर सिस्टम उनके पास है। आंदोलन कर रहे चिकित्सकों को आश्वस्त करते हुए अदालत पर भरोसा करने की सलाह दी।

उन्हें काम पर लौटने और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी उसके स्तर से देखे जाने की बात कही। उच्चतम न्यायालय ने कोलकाता कांड पर सुनवाई के क्रम में कई अहम टिप्पणी भी की। एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर महिलाएं काम पर नहीं जा पाएंगी और कार्यस्थल पर सुरक्षित नहीं होंगी, तो ऐसा कर हम उन्हें समानता के अधिकार से वंचित कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल सरकार के लिहाज से ये बड़ा सवाल है, क्योंकि वहां एक महिला मुख्यमंत्री है। ऐसे में ममता बनर्जी को इस मामले में स्थिति साफ करना टेढी खीर साबित होने वाला है। कहा जाता है कि अगर ममता बनर्जी ने इस केस को समझदारी और संवेदनशील तरीके से संभाला होता तो पश्चिम बंगाल में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर इस कदर सवाल नहीं खड़े होते।

सुखेंदु शेखर रॉय भी उठा चुके हैं सवाल

संदेशखाली की घटना को अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। राजनीति अपनी जगह है, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा राजनीति से ऊपर की चीज है। उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई के क्रम में पाया कि ऐसा लगता है कि अपराध का पता शुरुआती घंटों में ही चल गया था, पर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ने इसे आत्महत्या बताने की कोशिश की। हालांकि उच्चतम न्यायालय में मामला आने से पहले टीएमसी नेता सुखेंदु शेखर राय ही ये सवाल उठा चुके थे। अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में सुखेंदु शेखर रॉय ने सीबीआई से आरजी कर के प्रिंसिपल रहे संदीप घोष और कोलकाता के पुलिस आयुक्त विनीत गोयल को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की मांग की थी।

आश्चर्यजनक रहा कि सुखेंदु की बातों पर ध्यान देने की बजाए कोलकाता पुलिस ने उनको ही पुलिस मुख्यालय तलब कर लिया। वैसे न्यायालय ने भी यह सवाल किया था कि आखिर प्रिंसिपल क्या कर रहे थे? उन्हें इतनी देरी से पूछताछ के लिए क्यों बुलाया गया? उन्होंने ऐसी निष्क्रियता क्यों दिखायी? जब आरजी कर अस्पताल के प्रिंसिपल का आचरण जांच के दायरे में था, तो उन्हें फौरन दूसरे कॉलेज में कैसे नियुक्त कर दिया गया? न्यायालय ने इस बात को भी गंभीरता से लिया कि प्रिंसिपल ने इस घटना को आत्महत्या बताने की कोशिश की। साथ ही माता-पिता को शव देखने की इजाजत नहीं दी गयी।

कांग्रेस नेता भी दिख रहे चिंतित

कोलकाता रेप-मर्डर केस पर पार्टी की आधिकारिक लाइन से अलग राय जाहिर करने वालों में सुखेंदु अकेले नेता नहीं हैं। टीएमसी नेता शांतनु सेन ने भी इस घटना के बाद सवाल उठाये थे। इस वजह से उनको प्रवक्ता पद से हाथ धोना पड़ा। शांतनु सेन का कहना था कि बीते तीन साल से उस मेडिकल कॉलेज में अनियमितताओं की शिकायतें मिल रही थीं, और कुछ लोग स्वास्थ्य विभाग में होने वाली गड़बड़ियों की जानकारी मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंचने दे रहे हैं। बीजेपी और सीपीआई तो ममता बनर्जी के कट्टर राजनीतिक विरोधी हैं, लेकिन राहुल गांधी तो उनके लिए अपने नेता अधीर रंजन चौधरी तक को हाशिये पर भेज चुके हैं, लेकिन इस मामले में कांग्रेस नेता भी चिंतित लग रहे हैं।

राहुल गांधी का कहना है, ‘पीड़ित को इंसाफ दिलाने की जगह आरोपियों को बचाने की कोशिश, अस्पताल और स्थानीय प्रशासन पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है। इस घटना ने ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अगर मेडिकल कॉलेज जैसी जगह पर डॉक्टर्स सेफ नहीं हैं तो किस भरोसे लोग अपनी बेटियों को पढ़ने बाहर भेजें?’ ऐसे अनगिनत सवाल हैं जो ममता बनर्जी के इर्द गिर्द ही मंडरा रहे हैं। अब इन सवालों को झुठलाने या राजनीतिक विरोधियों की साजिश करार देने भर से काम नहीं चलने वाला है। ममता बनर्जी अब भी नहीं संभलीं, तो उनके खिलाफ भी कब ‘खेला’ हो जाये, कोई नहीं जानता।

दबाव में वाम और राम का नाम

कोलकाता में महिला चिकित्सक के साथ हुई घटना को लेकर ममता ने जिस तरह के बयान दिए, उससे यह भी दिखा है कि वे इस बार दबाव में हैं। “आरजी कर अस्पताल की घटना के अभियुक्त को फांसी दे दी जाए। बांग्लादेश की तरह यहां मेरी सरकार भी गिराने की कोशिश चल रही है। मुझे सत्ता का कोई लालच नहीं है। इस घटना पर सीपीएम और भाजपा राजनीति कर रही हैं। आरजी कर अस्पताल पर हमले के पीछे भी वाम और राम का ही हाथ है। ममता के इस तरह के बयान तो यही बताते हैं। अमूमन इससे पहले उनको किसी मामले में लगातार ऐसी बयानबाज़ी करते नहीं देखा गया है।

इससे राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहे हैं कि क्या ममता इस घटना की वजह से भारी दबाव में हैं? उन्हें अपने सबसे बड़े वोट बैंक के बिखरने का ख़तरा नज़र आ रहा है। अपने तीसरे कार्यकाल में उनको पहली बार ऐसी कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। अभियुक्त को फांसी की सज़ा की मांग को लेकर ममता के सड़क पर उतरने से इन चर्चाओं और सवालों को और बल मिल गया है। अमूमन किसी घटना के विरोध में ममता सड़क पर नहीं उतरतीं। चुनावी पदयात्राओं को छोड़ दें तो आख़िरी बार उनको एनआरसी और नागरिकता (संशोधन) क़ानून के विरोध में ही इस तरह सड़क पर उतरते देखा गया था।

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक

इस घटना के बाद जहां सरकार और पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में है वहीं ‘रीक्लेम द नाइट’ की अपील पर राज्य के करीब तीन सौ स्थानों पर महिलाओं के स्वतः स्फूर्त जमावड़े और विरोध प्रदर्शन के कारण उनके इस सबसे मज़बूत वोट बैंक के बिखरने का भी ख़तरा पैदा हो गया है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि फ़िलहाल राज्य में कोई चुनाव भले नहीं हो, विपक्ष इस मुद्दे को भुनाने और अगले विधानसभा चुनाव तक इसे जीवित रखने की कोशिश ज़रूर करेगा। यह कोशिशें शुरू भी हो गई हैं। ममता बनर्जी सरकार पर चौतरफ़ा हमले हो रहे हैं। कोलकाता मामले में ममता जब सड़क पर उतर कर यात्रा निकाल रही थी, उसी सड़क के किनारे एक पुराने दो मंज़िला मकान में रहने वाले सेवानिवृत्त शिक्षक मंजूनाथ विश्वास का कहना था कि इस बार ममता और उनकी सरकार फंस गई है।

ममता ने केंद्र सरकार पर जताई नाराजगी

सरकार ने पूरे मामले की लीपापोती का प्रयास नहीं किया होता तो आज ममता को सड़क पर नहीं उतरना पड़ता। ख़ासकर प्रिंसिपल का बचाव करना और उसको इस्तीफे के कुछ घंटों के भीतर नई बहाली देना उनके गले की फांस बनता जा रहा है। विश्वास के मुताबिक, ममता के ख़िलाफ मुद्दों की तलाश में जुटे विपक्ष ने अब इस मुद्दे को लपक लिया है। इसी सड़क पर एक दुकान चलाने वाले मोहम्मद साबिर के मुताबिक, प्रदेश की मुख्यमंत्री महिला हैं। पार्टी में 11 महिला सांसद हैं, फिर भी एक महिला के साथ घटी ऐसी बर्बर घटना के बाद सरकार वैसी सक्रियता नहीं दिखा सकी, जैसी इस मामले में उम्मीद थी। उन्होंने कहा कि सीबीआई इस घटना की जांच ज़रूर कर रही है, लेकिन बंगाल के मामले में उसका ट्रैक रिकॉर्ड भी बेहतर नहीं है।

यही वजह है कि विपक्षी हमले की धार कुंद करने के लिए अब ममता भी राज्य के आम लोगों के सुर में सुर मिलाते हुए दोषियों के लिए फांसी की मांग कर रही हैं। कोलकाता में सड़क पर उतरने के बाद ममता ने सवाल उठाया था कि हाथरस, उन्नाव और मणिपुर में जब ऐसी घटनाएं हुईं तो केंद्र ने कितनी केंद्रीय टीमों को वहां भेजा था? बंगाल में अगर किसी को चूहा भी काट ले तो केंद्र की 55 टीमें यहां आ जाती हैं। मुख्यमंत्री ने नाराज़गी भरे स्वर में कहा कि उन्होंने जांच पूरी करने के लिए 164 लोगों की विशेष टीम बनाई थी और समय मांगा था। जांच की प्रक्रिया लंबी होती है और इसमें समय लगता है, लेकिन किसी को भरोसा नहीं हुआ। इस पर राजनीति की गई और अब सीबीआई जांच कर रही है। वह रविवार तक जांच पूरी कर दोषी को फांसी की सज़ा दिलाए।

राजनीति करने का आरोप

ममता ने अपनी सरकार की ओर से महिलाओं के कल्याण के लिए किए गए कार्यों को गिनाते हुए कहा कि एकमात्र उनकी पार्टी ने ही 38 फ़ीसदी महिलाओं को लोकसभा में भेजा है। नगर पालिका में 50 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। स्वास्थ्य साथी कार्ड पर भी परिवार की मुखिया के तौर पर घर की महिला का ही नाम है। महिलाओं के लिए कन्याश्री और रूपश्री जैसी तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं। मुख्यमंत्री ने एक बार फिर विपक्षी दलों ख़ासकर ‘वाम और राम’ यानी लेफ्ट और भाजपा पर इस घटना पर राजनीति करने का आरोप लगाया। विश्लेषकों का मानना है कि हालिया घटना ने ममता सरकार की पारदर्शिता, पुलिस और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े किए हैं।

2011 में भी दुनिया भर में बंगाल निशाने पर था

वैसे महिला सुरक्षा के मामले में ममता सरकार का इतिहास साफ सुथरा नहीं रहा है। ममता सरकार पर ऐसी किसी घटना की लीपापोती का प्रयास करने के आरोप पहली बार नहीं लगे हैं। 2011 में वे बंगाल में सत्ता में आयीं। इसके सालभर बाद साल 2012 में कोलकाता के पॉश इलाक़े पार्क स्ट्रीट में एक महिला के साथ चलती कार में सामूहिक बलात्कार की घटना हुई। पूरी दुनिया में इसने सुर्खियां बटोरी थीं। पीड़िता ने सामने आकर सार्वजनिक रूप से यह आरोप लगाया था, लेकिन तब ममता ने इसे ‘सजाया हुआ मामला’ कहा था। इससे उनकी काफ़ी किरकिरी हुई थी। उसके अगले साल ही कामदुनी में 20 साल की एक कॉलेज छात्रा के साथ आठ लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया था।

उसके बाद उसकी हत्या कर शव को खेत में फेंक दिया गया था। आरोप है कि इस मामले की जांच इतनी ढीले-ढाले तरीक़े से की गई कि अभियुक्तों को मामूली सज़ा ही मिल सकी। बीते साल कामदुनी मामले ने उस समय पर सुर्खियां बटोरीं जब कलकत्ता हाईकोर्ट ने दोषियों की सज़ा माफ़ कर दी थी। उस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सैकड़ों महिलाओं ने सड़कों पर उतर कर विरोध जताया था। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ममता हर बार ऐसी चुनौतियों और अपने ख़िलाफ़ उठने वाले राजनीतिक तूफान से निपटने में कामयाब रही हैं, लेकिन इस घटना ने उनकी पुलिस, सरकार की पारदर्शिता और महिलाओं की सुरक्षा के सवाल पर उनकी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है।

महिलाओं की नाराजगी टीएमसी के लिए ठीक नहीं

बंगाल में महिलाएं ही ममता का सबसे बड़ा वोट बैंक हैं। साल 2008 के पंचायत चुनावों से ही ममता की पार्टी को इस वोट बैंक का भारी समर्थन मिलता रहा है। 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से बेहद कड़ी चुनौती के बावजूद इस वोट बैंक के सहारे ही पार्टी तीसरी बार सत्ता में आने में कामयाब रही थी, पर कोलकाता केस में ममता को अब तक यह नहीं सूझा है कि महिलाओं की नाराज़गी दूर करने के लिए आख़िर वो कौन सी रणनीति बनाएं। रीक्लेम द नाइट के स्वतः स्फूर्त और बेहद कामयाब आयोजन ने उनके माथे पर चिंता की लकीरों को काफ़ी गहरा कर दिया है। यही वजह है कि उन्होंने अब तक उस अभियान पर एक शब्द भी नहीं कहा है। उल्टे पदयात्रा के बाद सभा में भी उन्होंने महिलाओं के लिए किए गए कार्यों को ही गिनाया है। महिलाओं का यह विरोध ममता बनर्जी सरकार के सिर पर तलवार की तरह लटक रहा है।

केंद्र का बंगाल सरकार से सवाल

महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जमकर फटकार लगाई है। महिलाओं और लड़कियों के लिए महत्वपूर्ण सुरक्षा उपायों को लागू करने में कथित विफलता के लिए उन्होंने बंगाल सरकार की आलोचना की है। गौरतलब है कि अन्नपूर्णा देवी ने ममता बनर्जी को एक पत्र लिखा है, जिसमें कई हेल्पलाइनों को लागू करने में विफल रहने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार की आलोचना की है। उन्होंने ममता सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि राज्य ने बलात्कार और पॉक्सो के 48 हजार से अधिक मामलों के लंबित होने के बावजूद शेष 11 फास्ट ट्रैक विशेष अदालतें शुरू करने को कोई कदम नहीं उठाया है।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लिखे पत्र में देवी ने महिला हेल्पलाइन (डब्ल्यूएचएल), आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (ईआरएसएस) और बाल हेल्पलाइन जैसी प्रमुख आपातकालीन हेल्पलाइनों को लागू करने में विफल रहने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार को फटकार लगाई। कहा कि केंद्र सरकार द्वारा कई बार याद दिलाने के बावजूद राज्य ने अभी तक कोई कदम नहीं उठाया। यौन अपराधों से संबंधित मामलों के एक बड़े बैकलॉग के बावजूद फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) को चालू करने में राज्य असमर्थ है। 25 अगस्त को लिखे पत्र में मंत्री ने पश्चिम बंगाल में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कड़े कानूनी ढांचे और न्यायिक प्रक्रियाओं को लागू करने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया।

महिलाओं को सशक्त बनाने में बंगाल सरकार का योगदान

अक्टूबर 2019 में शुरू की गई एफटीएससी योजना का उद्देश्य बलात्कार और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम से संबंधित लंबित मामलों की सुनवाई और निपटान में तेजी लाना था। मंत्री के अनुसार, इस योजना के तहत, केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल को 123 एफटीएससी आवंटित किए, जिनमें 20 विशेष पॉक्सो अदालतें और बलात्कार और पॉक्सो, दोनों मामलों के लिए 103 संयुक्त अदालतें शामिल हैं। हालांकि, जून 2023 के मध्य तक इनमें से कोई भी अदालत चालू नहीं हुई है। जून 2023 में सात एफटीएसी शुरू करने की राज्य सरकार की प्रतिबद्धता के बावजूद, 30 जून, 2024 तक केवल छह विशेष पॉक्सो अदालतें चालू की गई हैं।

राज्य में बलात्कार और पॉक्सो के 48,600 मामले लंबित होने के बावजूद यह देरी जारी है। मंत्री ने पश्चिम बंगाल सरकार से महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव और हिंसा को खत्म करने के लिए तत्काल और प्रभावी उपाय करने का आग्रह किया है। उन्होंने एक सुरक्षित और संरक्षित वातावरण बनाने का आह्वान किया जो लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है और महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए सशक्त बनाता है।

महिलाओं के विरुद्ध अपराध क्षमा योग्य नहींः पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि सरकार महिलाओं के विरूद्ध होनेवाले अपराधों के लिए कठोर दंड का प्रावधान कर रही है। पिछले माह से लागू हुए तीन नयी संहिताओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने रेखांकित किया है कि अवयस्कों के विरूद्ध यौन अपराधों के लिए मृत्यु दंड एवं आजीवन कारावास जैसी सजाओं की व्यवस्था है। भारतीय न्याय संहिता में विवाह का झांसा देकर यौन शोषण के लिए भी दंड का प्रावधान किया गया है। उन्होंने राज्य सरकारों को यह भी आश्वासन दिया है कि महिलाओं की सुरक्षा तय करने के प्रयासों में केंद्र सरकार पूरा सहयोग करेगी।

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उनकी बातों से इतर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरों के आंकड़े को देखें तो पता लगता है कि तमाम कोशिशों के बावजूद महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की संख्या बढ़ी है। वर्ष 2022 के आंकड़ों के अनुसार, हर दिन देश में औसतन 1220 ऐसी घटनाएं होती हैं, जो चिंताजनक है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी ने बिल्कुल सही कहा है कि महिलाओं के विरूद्ध अपराधों को क्षमा नहीं किया जा सकता।

अमित झा

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