Caste census: भारत की जनता ने 18वीं लोकसभा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सरकार चलाने का निर्णय तो दिया लेकिन साथ ही विपक्ष भी अपनी सीटें बढ़ाने में सफल रहा। बढ़ी हुई सीटों के साथ आक्रामक विपक्ष यह दिखाने का प्रयास कर रहा है कि जनता ने उन्हें संविधान और आरक्षण की रक्षा के लिए चुना है, जबकि वास्तविकता ये है कि उनकी बढ़ी हुई सीटें एक वर्ग के उनके झूठ में फंस जाने के कारण आई हैं। विपक्ष को अपनी बढ़ी हुई सीटों के कारण यह आत्मविश्वास मिल गया है कि अब आरक्षण और जाति के आधार पर भाजपा, संघ व हिंदुत्व को कमजोर करके सत्ता प्राप्त की जा सकती है। विपक्ष के लिए जातिगत मुद्दे सत्ता प्राप्ति का मार्ग हो सकते हैं, किन्तु हिन्दू समाज के अस्तित्व के लिए इन मुद्दों का उभार एक बड़े संकट का आरम्भ है।
हर बात पर पूछी जा रही जाति
कांग्रेस और इंडी गठबंधन, जिसकी अधिकांश पार्टियां जाति आधारित हैं, अपने मतदाताओं को जोड़े रखने के लिए आरक्षण के बहाने जाति का कार्ड खेल रही हैं। कांग्रेस और भी नीचे जाकर इस जाति कार्ड को संविधान की रक्षा का नाम दे रही है और एक भ्रमजाल फैला रही है। लोकसभा चुनावों से पहले किया गया झूठ का प्रयोग अब और व्यापक हो रहा है, राहुल गांधी जिस प्रकार की बयानबाजी कर रहे हैं, उससे यह प्रतीत हो रहा है कि कांग्रेस अब पूरी तरह से टुकड़े-टुकड़े गैंग का विस्तृत रूप ले चुकी है।
विगत दिनों ऐसी कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटी हैं, जिन पर कांग्रेस व इंडी गठबंधन के नेताओं का रुख जाति और आरक्षण के नाम पर देश को अराजकता में झोंकने वाला रहा है। इंडी गठबंधन के विभिन्न दलों के नेता हर बात पर जाति पूछ रहे हैं और हर चर्चा को उसी धारा में मोड़ने का विकृत प्रयास कर रहे हैं। राहुल गांधी द्वारा संसद के बजट सत्र में, बजट टीम का चित्र दिखाकर उसमें अधिकारियों की जाति पूछना एक ऐसा ही निंदनीय और घृणित प्रयास था।
मोदी सरकार ने दिलाया था भरोसा
सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने 6-1 से आरक्षण में क्रीमीलेयर के मुद्दे पर कुछ व्यावहारिक सुझाव दिए थे, कोर्ट ने कोई फैसला नहीं दिया था और ये सुझाव तत्काल लागू भी नहीं किए जा रहे थे और इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने भी तत्परता दिखाते हुए एस.सी./एस.टी. व दलित सांसदों को भरोसा दिलाया था कि यह फैसला फिलहाल लागू नहीं किया जा रहा है। उस समय बसपा नेत्री मायावती ने केंद्र सरकार की सराहना की थी, किंतु शीघ्र ही इस विषय पर उनका दोहरा मापदंड सामने आ गया।
बसपा नेत्री मायावती को इस मुद्दे की आड़ में राजनीति में तीसरी ताकत बनने का सपना आ गया और उन्होंने कुछ दलित संगठनों द्वारा इस पर बुलाए गए बंद का समर्थन कर दिया। विपक्ष ने केवल अपने निहित स्वार्थ व तुष्टिकरण की राजनीति के चलते भारत बंद बुलाया, जो कहीं सफल और कहीं पूरी तरह से नाकाम हो गया। विपक्ष द्वारा आयोजित भारत बंद को कहीं भी आम जनता का पूर्ण समर्थन नहीं मिला। सुप्रीम कोर्ट के सुझावों के खिलाफ बुलाया गया बंद केवल अपनी-अपनी राजनीति चमकाने के लिए किया गया था। भारत बंद के दौरान राजनीतिक दलों के नेताओं व उनके प्रवक्ताओं ने प्रधानमंत्री मोदी के विरोध और उनकी छवि को खराब करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।
बांग्लादेश जैसी अराजकता फैलाने की साजिश
स्वयंभू किसान नेता राकेश टिकैत ने मीडिया पर बंगाल की घटना को बेवजह हाईलाइट करने का आरोप तक लगा दिया। राकेश टिकैत कह रहे हैं कि मोदी सरकार को बहुत जल्दी हम बांग्लादेश की तरह निपटा देंगे। जिस दिन हम ट्रैक्टर लेकर लाल किला गये थे, उसी दिन निपटा देते अगर हम अपने ट्रैक्टर संसद भवन की ओर घुमा देते। बिहार में भारत बंद के नाम पर भारी अराजकता देखी गयी, जहां इंडी गठबंधन में शामिल सभी दलों के अपराधिक प्रवृत्ति के लोग सड़कों पर हुडदंग ही कर रहे थे, ये लोग बच्चों से भरी स्कूल बस में आग लगाने का प्रयास करते भी देखे गए।
यूपीएससी द्वारा 45 पदों पर विशेषज्ञों की सीधी भर्ती पर निकाले गए विज्ञापन के बाद भी इंडी गठबंधन, भाजपा संविधान विरोधी है, भाजपा आरक्षण समाप्त कर रही है, का नारा बुलंद करने लगा। सोशल मीडिया पर दिन-रात झूठे विमर्श गढ़ने वाली राहुल गांधी की टीम ने लिखा कि केंद्र सरकार परोक्ष रूप से संघ के लोगों की भर्ती करने जा रही है। इंडी गठबंधन इस मामले को भी बांग्लादेश व श्रीलंका की तरह हल करने की वकालत करने लगा।
सीधी भर्ती पर भी चमकाई राजनीति
भारत सरकार की नौकरशाही में सीधी भर्ती कोई नई बात नहीं है, यहां 1970 के दशक से ही सीधी भर्ती होती रही है, पहले यह भर्तियां कांग्रेस नेताओं की सिफारिश पर हो जाती थीं तथा कोई विज्ञापन भी नहीं निकाला जाता था। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलूवालिया इसके प्रमुख उदाहरण हैं। अन्य प्रमुख लोगों में राहुल गांधी के गुरू सैम पित्रोदा और वी कृष्णमूर्ति, अर्थशास्त्री विमल जालान, कौशिक बसु, अरविंद विरमानी, रघुराम राजन जैसी हस्तियां शामिल रही हैं।
45 सीधी भर्तियों का विरोध केवल इसलिए किया गया है, क्योंकि अब राहुल गांधी के गुरू सैम पित्रोदा को इसमें जगह नहीं मिलने जा रही थी। कांग्रेस के शासनकाल में कभी भी आरक्षण नीति का ठीक ढंग से पालन ही नहीं किया गया, कांग्रेस केवल अपनी राजनीति चमकाने और सत्ता प्राप्त करने के लिए इस पर हल्ला करती रही। वैसे भी अब प्रधानमंत्री के सीधे हस्तक्षेप के बाद यह विज्ञापन वापस ले लिया गया है और फिलहाल कांग्रेस के हाथ से भी यह मुद्दा निकल गया है।
पिछड़ो का मसीहा बनने की कोशिश
कांग्रेस और इसका इंडी गठबंधन जाति जनगणना के नाम पर भी देश को गुमराह कर रहा है, जबकि संसद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी ही जाति नहीं बता पा रहे हैं। अखिलेश यादव तो संसद में ही चीखने लगे, आप जाति कैसे पूछ सकते हैं ? सच तो ये है कि अगर कांग्रेस ने अपने 70 वर्षों के शासनकाल में एससी-एस टी, ओबीसी, दलित समाज की रंचमात्र भी चिंता की होती तो आज देश के ऐसे हालात न होते। कांग्रेस ने हमेशा इनका हक मारा और झूठ की बुनियाद पर देश पर राज किया।
कांग्रेस की गलतियों और गांधी परिवार की तानाशाही के कारण ही सपा, बसपा, राजद, जदयू सहित तमाम क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ। इधर उत्तर प्रदेश में जब से सपा के लोकसभा सांसदों की संख्या बढ़ी है, तब से वह पीडीए-पीडीए का हल्ला कर रही है और अपने आपको पिछड़ों का सबसे बड़ा मसीहा साबित करने का प्रयास कर रही है। प्रदेश में पहले सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और बाद में अखिलेश यादव ने भी सीधी भर्तिंयां कराई थीं। अखिलेश यादव ने तो प्रमोशन में आरक्षण तक का कड़ा विरोध किया था। अखिलेश यादव अब आरक्षण व जाति के नाम पर पीडीए को गुमराह कर रहे हैं। समाजवाद का पीडीए अब केवल परिवारवाद और अल्पसंख्यकवाद बनकर रह गया है।
जाति गौण है, हिंदुत्व ही है आधार
कर्नाटक में कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया जो भ्रष्टाचार व घोटालों में आकंठ डूबे हैं, जाति कार्ड खेलकर अपने आप को बचाना चाहते हैं। उनका कहना है कि वह ओबीसी यानि पिछड़ी जाति से आते हैं इसलिए जान-बूझकर उन्हें फंसाया जा रहा है। इतना ही नहीं राहुल गांधी व कांग्रेस पार्टी अब आपराधिक घटनाओं पर भी जाति की ही बात कर रही है। रायबरेली मे अर्जुन पासी नामक एक युवक की हत्या हुई, जिसमें शामिल सभी आरोपियों को पकड़ कर जेल भेज दिया गया, लेकिन राहुल गॉंधी अपनी राजनीति चमकाने के लिए अर्जुन के घर चले गए। राहुल गाँधी अर्जुन पासी के घर केवल इसलिये गये, क्योंकि हत्या करने वाला आरोपी ठाकुर था। राहुल व कांग्रेस आजकल यही खेल पूरे भारत में खेल रही है, जो भारत के भविष्य के घातक है और सनातनी शक्तियों को सचेत होना है।
ध्यान देने वाली बात है कि बंगाल में घटी रेप व मर्डर की घटना पर बंगाल सरकार पर एक बार भी टिप्पणी नहीं की है, जबकि वह और उनकी बहन प्रियंका जाति का झंडा उठाए उप्र के हाथरस और उन्नाव पहुंच जाते हैं। हिंदू जनमानस को एक बार पुनः 1990 से 1992 वाली एकजुटता प्राप्त करने का समय आ गया है। हिन्दुओं को समझना होगा, जहां एक और इंडी गठबंधन आक्रामक मुस्लिम तुष्टिकरण कर रहा है वहीं दूसरी ओर आरक्षण जाति और संविधान के सहारे हिंदुओं को विभाजित कर रहा है। मुसलमान हमेशा ही भाजपा को हराने के लिए मतदान करने निकलता है जबकि हिंदू समाज बंटा हुआ है। हिन्दुओं को बंगला देश की घटना से सबक लेने की आवश्यकता है, जाति गौण है हिंदुत्व ही आधार है।
खुद ही पलटा था एनडीए का फैसला
बिहार में विपक्ष के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने जाति आधारित जनगणना को लेकर कहा कि वे सरकार को जातिगत जनगणना कराने के लिए मजबूर करेंगे। जातिगत जनगणना की हमारी मांग बहुत पुरानी है। उन्होंने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर लिखा कि लालू प्रसाद यादव जब जनता दल के अध्यक्ष थे, तभी से यह हमारी मांग रही है। उसी का परिणाम रहा कि जनता दल की संयुक्त मोर्चा सरकार ने 1996-97 में 2001 की जनगणना में जातिगत गणना कराने का निर्णय भी लिया था लेकिन 1999 में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने पर उन्होंने वह निर्णय पलट दिया।
नीतीश कुमार भी वाजपेयी नेतृत्व में उसी एनडीए कैबिनेट का हिस्सा थे। 2011 की जनगणना से पूर्व उसमें जातिगत जनगणना की मांग को लेकर 2010 में लालू यादव सहित प्रमुख समाजवादियों ने संसद में पुरजोर तरीके से अपनी बात रख तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा जातिगत गणना, सामाजिक आर्थिक सर्वे कराने की स्वीकृति देने के बाद ही संसद चलने दी थी। एनडीए सरकार ने 10 वर्षों बाद होने वाली 2021 की जनगणना भी नहीं कराई।
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हमने तो केवल 17 महीनों के अल्प सेवाकाल में बिहार में जाति आधारित गणना कराकर और उसी अनुपात में आरक्षण भी बढ़ाया। कहा कि अगर इस बार प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने जातिगत जनगणना नहीं कराई तो वंचित, उपेक्षित, उत्पीड़ित और उपहासित वर्गों के लोग भाजपाइयों को क्षेत्र में नहीं घुसने देंगे। भाजपा को समर्थन दे रहे क्षेत्रीय दल बिना रीढ़ के हड्डी के सिद्धांतहीन लोगों के हाथ में है। उन्होंने चुनौती देते हुए लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी जी, देख लेना हम आपको जातिगत जनगणना कराने पर मजबूर करेंगे ही करेंगे।
मृत्युंजय दीक्षित