लखनऊः युवाओं को अपने भविष्य के बारे में गम्भीरता से विचार करना चाहिए। वह भी तब जबकि कोरोना जैसे दौर का सामना करना पड़ा हो इसलिए जब कभी मौका मिले, अपने खेत या क्यारी में समय देने के साथ तकनीकी खेती को भी समझना चाहिए। यूपी के तमाम युवाओं को ऐसे दौर के लिए तैयार रहने की कला इन दिनों सीआईएसएच सिखा रहा है। वैज्ञानिक हाइड्रोपोनिक्स और एयरोपोनिक्स यूनिट के बारे में जानकारी दे रहे हैं।
महिलाएं किचन गार्डनिंग के लिए काफी उत्सुक रहती हैं। उन्हें अब गमले में मिट्टी भरने की जरूरत नहीं है। यह काम कोई मुश्किल भी नहीं है। आपके घर हरी-भरी सब्जियों की बहार आने में कोई कठिनाई भी नहीं है। आपके घर की छत पर गमलों का बोझ भी नहीं रहेगा। आसान खेती की यह खास विधि हाइड्रोपोनिक्स हैं। धीरे-धीरे यह प्रायोगिक तौर पर सफल हो चुकी है। लैब से निकलकर आम लोगों के टेरेस और बालकनी तक पहुंच बना सकती है। इसके लिए वैज्ञानिक एसआर सिंह ने केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान से मदद लेने के लिए सुझाव दिया है। माना जा रहा है कि काफी कम दाम इसके लिए खर्च करने होते हैं। हालांकि, आर्गेनिक खेती में अभी पूर्ण सफलताएं नहीं मिल रही हैं, फिर भी इसके प्रति युवा दिलचस्पी दिखाने लगे हैं। अब इस नई तकनीकी का भविष्य भी काफी दिख रहा है।
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वैज्ञानिकों का मानना है कि जिस तरह से कमरे किराए पर लिए जाते हैं, ठीस उसी प्रकार से छत को भी किराए पर लिया जा सकता हैं। इसमें ज्यादा खर्च नहीं करना होता है। इसके साथ ही खाली छत के मकान मालिक को पैसे भी आसानी से मिल जाएंगे। नई तकनीकी में छत पर वजन भी काफी कम होता है। रहीमाबाद में इस तकनीक का प्रयोग सालों पहले किया गया था। हालांकि, लखनऊ के बंथरा में रहने वाले करूणेश पांडेय का कहना है कि उन्होंने इस तरह की कोशिश की थी, लेकिन पौधे न तो बढ़े और न ही उनसे फल मिले। करूणेश का कहना है कि दरअसल, पोषक तत्वों का अनुपात उनकी समझ में नहीं आया। उन्होंने बताया कि कुछ फूल वाले पौधे जरूर गुलजार रहे। हालांकि, बाद में वह संस्थान गए और वहां से काफी कुछ सीखा। हाइड्रोपोनिक्स विधि को सीखने के लिए रहीमाबाद केंद्र युवाओं को बुलाता भी है। घर में लगाने के लिए संस्थान में मॉडल बनाकर रखे गए हैं।
गमलों से सरल है रखरखाव –
वर्तमान में कुछ युवाओं ने नौकरी छोड़कर खेती करनी शुरू की है। उन्होंने अपनी सोच बदलकर फॉर्मिंग का फैसला किया है। हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में केवल पानी, बालू या कंकड़ों के बीच नियंत्रित पानी-हवा और बिना मिट्टी के पौधे उगाए जाते हैं। इस पद्धति में पानी बेकार नहीं जाता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी कम हो रही है, इसलिए यह तकनीकी काफी कारगर हो सकती है।
-शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट
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