Friday, January 17, 2025
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Maha Kumbh पर्व में महिला साध्वियों की गूंज

Maha Kumbh: हमारे सनातन हिन्दू धर्म में मानव जीवन का परम लक्ष्य “पूर्णता“ को माना गया है। “पूर्णमद् पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते….“ की वैदिक ऋचा में इसी भाव का दिग्दर्शन कराती है। पूर्णता के इस चरम लक्ष्य की प्राप्ति का सर्वसुलभ उपाय बताकर वैदिक मनीषियों ने कुंभ पर्व की खूब गौरव गरिमा बखानी है। वर्ष 2017 में योग के उपरान्त कुंभ मेले को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में स्थान मिलने से हम भारतीयों का सिर दुनियाभर में एक बार फिर ऊंचा हो गया है। इस आध्यात्मिक महोत्सव की यह स्वीकार्यता कई मायनों में खास है। इस मान्यता से यह स्थापित हो गया है कि हमारा कुंभ मेला महज एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, अपितु यह दर्शन, विज्ञान एवं संस्कृति का वह अनुष्ठान है, जो सदियों से समय के साथ कदमताल करते हुए नित नए विचार तत्वों और संदर्भों की तलाश के सात प्रवाहमान है। कुंभ पर्व हमारे गौरवशाली सनातन राष्ट्र की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है।

देश के इस विराट सांस्कृतिक आयोजन के दौरान हमारी देवभूमि का आध्यात्मिक वैभव पूरे चरम पर दिखता है। हम सब जानते हैं कि कुंभ और अर्द्धकुंभ पर्वों में अखाड़ों की पेशवाई और राजसी स्नान का एक अलग ही आकर्षण होता है। वर्तमान में शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त 13 अखाड़े हैं। सात शैव- जूना, निरंजनी, महानिर्वाणी, अटल, आह्वान, आनंद और अग्नि। तीन वैष्णव- दिगंबर, निर्वाणी और निर्मोही तथा तीन उदासीन अखाड़े- बड़ा उदासीन, नया उदासीन और निर्मल। ये अखाड़े सनातन धर्म की रीढ़ हैं। इनकी बुनियाद सैकड़ों वर्ष पूर्व आदिगुरु शंकराचार्य ने वैदिक संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए रखी थी।

इन अखाड़ों की प्रतिनिधि समन्वयक संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवीन्द्र पुरी कहते हैं कि एक समय था, जब इन अखाड़ों के दरवाजे सिर्फ पुरुषों के लिए ही खुलते थे लेकिन आज विभिन्न अखाड़ों से हजारों की संख्या में महिला साध्वियां-संन्यासिनें भी जुड़ी हुई हैं। काबिलेगौर हो कि विगत दो दशकों में विभिन्न तीर्थस्थलों में आयोजित हुए कुंभ पर्वों के दौरान महिला अखाड़ों के पृथक अस्तित्व भी मजबूती से अपनी दस्तक दे चुके हैं। आइए सनातन की गौरव गरिमा को समूची दुनिया के सामने उजागर करने वाले महाकुंभ के इस महापर्व के सुअवसर पर जानते हैं महिला अखाड़ों से जुड़ी विभिन्न रुचिकर जानकारियां।

Maha Kumbh: 50 से अधिक महिलाओं को महंत व महामंडलेश्वर बनाने की तैयारी

प्रयागराज के महाकुंभ 2025 के दौरान भी नारी सशक्तिकरण पर जोर रहेगा। वर्तमान समय में कुंभ मेले में महिलाओं के तीन प्रमुख अखाड़े हैं- दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा, श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा व परी अखाड़ा। ये सभी अखाड़े 50 से अधिक महिलाओं को महंत और महामंडलेश्वर बनाने की योजना बना रहे हैं। इस दौरान विदेशी महिला संतों को भी पद दिए जाएंगे। देश और प्रदेश में उठ रही नारी सशक्तिकरण की गूंज महाकुंभ 2025 के दौरान भी दिखाई देगी। आधी आबादी को सभी अखाड़े इस महाकुंभ में मंच देंगे और उन्हें राजसी स्नान में भी जगह देंगे। इस बार सभी अखाड़े मिलकर 50 से अधिक महिलाओं को महंत व महामंडलेश्वर बनाने की तैयारी अभी से कर चुके हैं। आने वाले दिनों में यह संख्या और भी बढ़ सकती है। दुनिया में हर मोर्चे पर महिलाओं ने बेहतर प्रदर्शन किया।

सनातन धर्म की ध्वजा फहराने में भी वह किसी से पीछे नहीं हैं। ज्ञात को कि सभी हर साल अखाड़े महाकुंभ पर्व के दौरान महामंडलेश्वर बनाते हैं। जूना अखाड़े से सम्बद्ध दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा ओर से महाकुंभ के दौरान एक दिन संन्यास दीक्षा का पूरा कार्यक्रम होगा। इसके अलावा अलग-अलग तारीखों पर महिलाओं को पद भी दिए जाएंगे, वहीं निरंजनी और निर्मोही अखाड़े ने भी इसके लिए तैयारी की है। इसके लिए महाकुंभ के दौरान अलग-अलग तारीखों पर अखाड़ों का बड़ा कार्यक्रम आयोजित होगा, जिसमें इन नामों की घोषणा होगी। बताते चलें कि निर्मोही अनि अखाड़े ने पिछले प्रयाग कुंभ मेले में आठ विदेशी महिलाओं को महंत बनाया था। इसके पीछे उनका तर्क है कि चारों दिशाओं में सनातन का प्रचार करने के लिए यह जरूरी भी है।

यह बदलाव इस बात की तस्दीक करता है कि 21वीं सदी के अत्याधुनिक युग में अन्य क्षेत्रों की तरह धर्मक्षेत्र में भी महिला शक्ति पूरी शिद्दत से अपनी विजय पताका फहरा रही है। बताते चलें कि वर्ष 2019 में हुए विगत प्रयाग कुंभ में मकर संक्रांति के पहले शाही (अब राजसी) स्नान में भी विभिन्न अखाड़ों से जुड़ी महिला संन्यासिनों ने बड़ी संख्या में शिरकत की थी। उस दौरान वैदिक मंत्रोच्चार के साथ 13 अखाड़ों के प्रतिनिधियों ने केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति का पट्टाभिषेक कर उनको शैव परम्परा के श्री पंचायती तपोनिधि निरंजनी अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाया था। साध्वी निरंजन ज्योति अखाड़े की 16वीं महिला महामंडलेश्वर बनी थीं। ज्ञात हो कि उनसे पूर्व निरंजनी अखाड़े में संतोषी गिरि, मां अमृतामयी, योग शक्ति सहित 15 महिला महामंडलेश्वर पहले से थीं।

साध्वी निरंजन ज्योति का कहना है कि वे संत पहले हैं, राजनेता बाद में। उनकी दृष्टि में राजधर्म और धर्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। वे कहती हैं कि कुंभ हमारी आस्था का विशालतम समागम है, संस्कृति का पर्व है। कुंभ सबको मोक्ष और पुण्य देता है। यहां स्नान करने से जीवन के पाप धुल जाते हैं। विदेशी लोग हमारी सभ्यता व संस्कृति को अपना रहे हैं, यह देखना बहुत अच्छा लगता है। जूना अखाड़े की महामंडलेश्वर चेतना माता कहती हैं कि बीते कुछ सालों अखाड़ों में महिला संन्यासियों की संख्या में तेजी से इजाफा होना इस बात का संकेत है कि हमारी मातृशक्ति अपने वैदिक कालीन गौरव को पुनर्जीवित करने की दिशा में तेजी से सक्रिय हो रही है। उनके अनुसार 2019 के कुंभ पर्व में पंच दशनाम जूना अखाड़े की पहल पर तकरीबन डेढ़ हजार महिलाओं ने संन्यास की दीक्षा ली थी। गंगा किनारे जुटीं इन महिला साध्वियों ने खुद का पिंडदान किया था और संस्कार के बाद सभी दशनामी संन्यासिनी महिला अखाड़े में शामिल हो गयी थीं।

वे कहती हैं कि पुरुष साधु-संन्यासियों की भांति हम साध्वियों-संन्यासिनों का भी मकसद जनकल्याण की भावना से समाज में फैली विकृतियों को दूर करना है। वे कहती हैं कि भारत भूमि की नारी शक्ति हमेशा महान रही है। हमारे वैदिक वांग्मय में जिस आर्य संस्कृति का गुणगान मिलता है, वह मूलतः मातृसत्तात्मक ही थी। वेदों में स्त्री यज्ञीय है। वेद नारी को अत्यंत महत्वपूर्ण, गरिमामय, उच्च स्थान प्रदान करते हैं। भारतीय धर्म को छोड़कर विश्व का कोई भी धर्म स्त्री को इतनी अधिक प्रधानता नहीं देता। जूना अखाड़े की ही एक अन्य महामंडलेश्वर श्रद्धा माता के मुताबिक, वैदिक वांग्मय में स्त्रियों की शिक्षा-दीक्षा, शील, गुण, कर्तव्य, अधिकार और सामाजिक भूमिका का जैसा सुन्दर वर्णन पाया जाता है, वैसा संसार के अन्य किसी धर्मग्रंथ में नहीं। वे कहती हैं कि प्रयाग कुंभ में बड़ी संख्या में महिला साधु संन्यासिनों की आमद इस दिशा में एक सुखद संकेत है।

काबिलेगौर हो कि जूना अखाड़े की महिला साध्वियों की लंबे अरसे से चली आ रही पृथक महिला अखाड़े की मांग को स्वीकार करते हुए विगत दिनों जूना पीठाधीश्वर ने अपने अखाड़े से जुड़ी महिला साध्वियों के “माई बाड़ा“ को “दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा“ की स्वतंत्र मान्यता दे दी थी। इस संन्यासिनी अखाड़े की अध्यक्ष लखनऊ के मनकामनेश्वर मंदिर की प्रमुख महंत दिव्या गिरी कहती हैं कि महिला साध्वियों की पृष्ठभूमि अत्यंत गौरवशाली है। आज हम उसी परम्परा का पुनर्जीवन करना चाहते हैं। वे कहती हैं कि महिला जब साध्वी बन जाती है, तो उसकी ताकत और बढ़ जाती है।

उनके अनुसार संत के नाम पर आकर स्त्री और पुरुष का भेद खत्म हो जाता है। जब हम साधु-संन्यासी या संत के रूप में बोल रहे होते हैं तो स्त्री और पुरुष का भेद अपने आप ही टूट रहा होता है यानी संत या संन्यासी के रूप में वो न स्त्री रह जाता है न ही पुरुष। वे बताती हैं कि 2003-04 के बीच उज्जैन कुंभ के दौरान उनकी दीक्षा हुई थी। वे कहती हैं कि एक स्त्री के शरीर को लेकर जो दृष्टि और झिझक होती है, वह दीक्षा होने के बाद टूट जाती है। भारतीयता में संन्यास का जो मूल विचार है, वो है बिना भेदभाव के समान रूप आत्म व जग कल्याण का है।

Maha Kumbh: परी अखाड़े की 25 हजार महिला संत होंगी शामिल

वर्ष 2013 में महिलाओं के पृथक परी अखाड़े की स्थापना करने वाली प्रमुख साध्वी त्रिकाल भवंता का कहना है कि समूचा वैदिक वांगमय जिस पर हमारे सनातन धर्म की बुनियाद टिकी है, वह मातृ सत्तात्मक ही है। वैदिक काल में नारियां स्वतंत्र रूप से ब्रह्मचर्चाओं, शास्त्रार्थों व यज्ञों में भाग लेती थीं। वेदों में स्त्री शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था दृष्टिगोचर होती है। तमाम वैदिक उद्धरण बताते हैं कि बालकों के समान ही बालिकाओं का भी यज्ञोपवीत होता था। वे भी मेखला धारण करती थीं। उपनयन संस्कार के बाद शिष्य और शिष्याएं दोनों वेद और शास्त्रों का अध्ययन करते थे तथा शिक्षा पूर्ण होने पर सामान्य छात्र-छात्राएं विवाह कर कर गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर लेते थे जबकि कुछ आजीवन तपोमय जीवन व्यतीत करते थे। इनमें ब्रह्मवेत्ताओं के साथ ब्रह्मवादिनियां भी होती थीं।

वेदों में नारी को ज्ञान देने वाली, सुख समृद्धि लाने वाली, विशेष तेज वाली देवी, विदुषी, सरस्वती, इन्द्राणी व उषा इत्यादि आदर सूचक नाम दिये गये हैं। उसे सदा विजयिनी कहा गया है। अपाला, घोषा, सरस्वती, सर्पराज्ञी, सूर्या, सावित्री, अदिति- दाक्षायनी, लोपामुद्रा, विश्ववारा, आत्रेयी जैसी वेद मंत्रों की ऋषिकाएं हमारी आदर्श व प्रेरणास्रोत हैं। ज्ञात हो कि 2025 के प्रयाग महाकुंभ के मद्देनजर बीते दिनों कार्तिक पूर्णिमा और देव दीपावली के शुभ दिन के मौके पर परी अखाड़े द्वारा आयोजित पट्टाभिषेक कार्यक्रम में अखाड़े की तरफ से देश के अलग-अलग राज्यों से जुड़ी महिला संतों को शंकराचार्य से लेकर आचार्य महामंडलेश्वर और महामंडलेश्वर की उपाधि से विभूषित किया गया था।

अखाड़े की प्रमुख और संस्थापक साध्वी त्रिकाल भवंता की मौजूदगी में संगम के निकट यमुना तट पर स्थित परी अखाड़े के मुख्यालय में आयोजित हुए इस पट्टाभिषेक कार्यक्रम के बाद अलग-अलग उपाधियों से विभूषित महिला संतों की रथयात्रा भी निकाली गयी थी। इस समारोह में डॉ. अनंत ज्योति गिरि सरस्वती का पट्टाभिषेक शंकराचार्य के तौर पर और जागृत चेतन गिरि का पट्टाभिषेक परी अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर के तौर पर किया गया था। परी अखाड़े की मीडिया प्रभारी अपराजिता के मुताबिक इस मौके पर बड़ी संख्या में महिला संतों को संन्यास की दीक्षा भी दी गयी थी। उन्होंने बताया कि महाकुंभ में परी अखाड़े की तरफ से 11 पीठों की स्थापना की जाएगी और सभी पीठों पर महिला संतों को ही पीठाधीश्वर बनाया जाएगा।

साध्वी त्रिकाल भवंता का कहना है कि उनका अखाड़ा महाकुंभ में राष्ट्र निर्माण अखंड भारत वैदिक परंपरा और सनातन धर्म को मजबूत करने का संदेश देगा। इसके साथ ही अखाड़े का विस्तार नेपाल और अमेरिका समेत अन्य दूसरे देशों में भी किया जाएगा। परी अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. रेखामणि का कहना है कि 2025 के महाकुंभ में परी अखाड़े में देश भर से 25 हजार से अधिक महिला संत शिरकत करेंगी।

बेहद कठिन होती है महिला संन्यासियों की तपश्चर्या

दशनामी संन्यासिनी अखाड़े की महामंडलेश्वर श्रद्धा माता कहती हैं कि महिलाओं के सन्यासी बनने की राह आसान नहीं होती। जन सामान्य के मन में हमारे बारे में जानने की भारी उत्सुकता रहती है। महिला संन्यासिनों को अखाड़े में माता की पदवी पाने के लिए 12 से 15 वर्ष तक कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। दीक्षा से पूर्व महिला संन्यासिनों को खुद अपना पिंड तर्पण व मुंडन करना पड़ता है, ताकि यह साबित किया जा सके कि अब उसका अपने परिवार और समाज से कोई संबंध व मोह नहीं है। उसके जीवन का एक मात्र लक्ष्य सिर्फ भगवान की भक्ति व जनकल्याण है।

इस कठिन तपश्चर्या के बाद जब गुरु को बोध हो जाता है कि साधिका इस पथ पर चलने की पात्रता खुद में विकसित कर चुकी है, तभी उसे संन्यास की दीक्षा दी जाती है। संन्यासिन बनाने से पहले अखाड़े के साधु-संत महिला के घर परिवार और पिछले जीवन की जांच-पड़ताल भी करते हैं। पुरुषों की तरह ही अखाड़ों की महिला संन्यासिनों के लिए भी अखाड़े के नियम निर्धारित हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य होता है। महिला साधुओं को माई, अवधूतानी या नागिन कहा जाता है। महिला साधुओं को बस एक ही कपड़ा पहनने की अनुमति होती है, इसे गंती कहते हैं। महिला संन्यासिनों को सिर्फ एक भगवा वस्त्र व मस्तक पर तिलक धारण करना होता है।

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सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्मों के बाद इष्ट का भजन पूजन व जप तथा दोपहर में एक समय भोजन। भोजनोपरान्त पुनः जप ध्यान व संध्याकाल में आरती ध्यान के उपरांत शयन। जब महिला संन्यासिन बन जाती है, तो अखाड़े के सभी साधु-संत उसे माता कहकर सम्बोधित करते हैं। श्रीमहंत के पद पर चुनी जाने वाली महिलाएं कुंभ स्नान के दौरान पालकी में चलती हैं। महिला नागा साधु शाही स्नान के बाद तुरंत जंगलों में तप करने के लिए चली जाती हैं।

पूनम नेगी

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