कैसे बना था इतना विशाल राम सेतु, फिर विभीषण ने क्यों इसे भगवान से तुड़वा दिया ?

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How was such a huge Ram Setu built

दुनिया भर में कुछ ही ऐतिहासिक संरचनाएँ हैं जो पौराणिक और ऐतिहासिक सिद्धांतों को एक साथ जोड़ती हैं। ऐसा ही एक निर्माण है एडम ब्रिज, जिसे राम सेतु (Ram Setu) के नाम से जाना जाता है। हाल ही में, केंद्र सरकार ने संरचना का अध्ययन करने और राम सेतु और इसके निर्माण की आयु निर्धारित करने के लिए पानी के नीचे अन्वेषण को मंजूरी दी। इस अध्ययन से यह समझने में भी मदद मिलेगी कि क्या यह संरचना रामायण काल जितनी पुरानी है। साथ ही राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक बनाने की भी मांग हो रही है।

हालांकि, मामला अदालत में विचाराधीन है। इसके साथ, यह जानना और भी दिलचस्प हो जाता है कि क्या भारतीय पौराणिक कथाओं को आधुनिक संरचनाओं से जोड़ने की संभावनाएं हैं। वाल्मिकी रामायण में इस पुल का बहुत स्पष्ट भाषा में उल्लेख है जिसमें बताया गया है कि जब श्रीराम ने लंका के शासक रावण से अपनी पत्नी सीता को छुड़ाने के लिए लंका पर आक्रमण किया, तो उन्होंने नल और नील से एक पुल का निर्माण करावाया था।

धनुषकोडी को क्यों चुना गया?

वाल्मिकी रामायण में उल्लेख है कि तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम को रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान मिला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उन्होंने नल और नील की सहायता से उस स्थान से लंका तक पुल बनाने को कहा। दरअसल, धनुषकोडी भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र ऐसी जगह है, जहां समुद्र की गहराई नदी के बराबर है। धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी तट पर स्थित एक गाँव है। धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में है। धनुषकोडी श्रीलंका में तलाईमन्नार से लगभग 18 मील पश्चिम में है। इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है क्योंकि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना द्वारा बनाया गया पुल धनुष के आकार का है। ये सभी क्षेत्र मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माने जाते हैं।

रामसेतु का उल्लेख कहाँ है?

जैसी आज की दुनिया की तकनीकी है वैसे ही हमारे पूर्वज भी तकनीकी में पीछ नहीं थे वाल्मीक रामायण में इस घटना के प्रमाण है कि जब पुल का निर्माण हो रहा था तब मशीनों की सहायता से ही विशाल पर्वतों से पत्थरों को काटा गया था और कुछ बंदरों के हाथ में सौ योजन लम्बा धागा था, अर्थात पुल के निर्माण में उस धागे का अनेक प्रकार से उपयोग हो रहा था। कालिदास ने ‘रघुवंश’ के 13वें सर्ग में राम की आकाश मार्ग से वापसी का वर्णन किया है। इस सर्ग में श्री राम द्वारा माता सीता को राम सेतु के बारे में बताने का वर्णन है। स्कंद पुराण के तीसरे अध्याय, विष्णु पुराण के चौथे अध्याय, अग्नि पुराण के पांचवें से ग्यारहवें अध्याय और ब्रह्म पुराण में भी श्री राम के सेतु का उल्लेख किया गया है।

विज्ञान क्या मानता है?

1993 में, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने श्रीलंका के उत्तर-पश्चिम में धनुषकोडी और पंबन के बीच समुद्र में उभरी 48 किमी चौड़ी भूमि की पट्टी की उपग्रह तस्वीरें दुनिया के लिए जारी कीं। इसके बाद भारत में इसे लेकर राजनीतिक विवाद शुरू हो गया। लोगों ने इसे रामायण से जोड़ते हुए इस राम सेतु की संज्ञा दी। अमेरिकी एजेंसी नासा ने भी इसकी तस्वीरें 14 दिसंबर 1966 को जेमिनी-11 से ली थीं। इसके ठीक 22 साल बाद आईएसएस-1ए ने तमिलनाडु तट के पास रामेश्वरम और जाफना द्वीपों के बीच समुद्र के नीचे एक भूभाग का पता लगाया। फिर उसकी तस्वीरें लीं। इन तस्वीरों से अमेरिकी सैटेलाइट तस्वीरों की पुष्टि भी हुई।

अमेरिकी पुरातत्ववेत्ताओं ने भी जांच की

दिसंबर 1917 में साइंस चैनल पर एक अमेरिकी टीवी शो ‘एन्सिएंट लैंड ब्रिज’ में अमेरिकी पुरातत्वविदों ने वैज्ञानिक जांच के आधार पर कहा था कि श्री राम द्वारा श्रीलंका के लिए पुल बनाने की हिंदू पौराणिक कहानी सच हो सकती है। भारत और श्रीलंका के बीच 50 किलोमीटर लंबी रेखा चट्टानों से बनी है। ये चट्टानें 7000 साल पुरानी हैं। वहीं, जिस रेत पर ये चट्टानें टिकी हैं वह 4000 साल पुरानी है। नासा की सैटेलाइट तस्वीरों और अन्य सबूतों से विशेषज्ञों का कहना है, ‘चट्टानों और रेत की उम्र में इस विसंगति से साफ है कि इस पुल का निर्माण इंसानों ने किया होगा। आपको बता दें कि सबसे पहले श्रीलंका के मुसलमानों ने इसे ‘एडम्स ब्रिज’ कहना शुरू किया था। तब ईसाई इसे ‘एडम्स ब्रिज’ कहने लगे। कई शोधों में कहा गया है कि 15वीं शताब्दी तक इस पुल पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक पहुंचा जा सकता था।

रामसेतु समुद्र में कैसे डूब गया?

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रामसेतु के समुद्र के पानी में कुछ फीट नीचे डूबने के दो पहलू हैं। इनमें से एक धार्मिक और दूसरा प्राकृतिक है। अब तक दुनिया भर के शोधकर्ता राम सेतु पर कई अध्ययन कर चुके हैं। कई शोधों में कहा गया है कि 15वीं शताब्दी तक इस पुल पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक पहुंचा जा सकता था। बाद में इस पुल के डूबने के पीछे वैज्ञानिक कारण यह बताया जाता है कि राम सेतु के स्थान पर तूफानों के कारण समुद्र गहरा हो गया था। वहीं 1480 में एक चक्रवात के कारण यह पुल टूट गया और सागर का पानी बढ़ा जिसकी वजह से ही राम सेतु थोड़ा सा पानी के अंदर डूब गया। धार्मिक कारणों से कहा जाता है कि विभीषण ने ही श्रीराम से इस पुल को तोड़ने का अनुरोध किया था।

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विभीषण ने राम सेतु क्यों तोड़ा?

पद्मपुराण के अनुसार युद्ध से पहले रावण के भाई विभीषण ने धनुषकोडी नगरी में श्रीराम की शरण ली थी। रावण से युद्ध समाप्त होने के बाद श्रीराम ने विभीषण को लंका का राजा बना दिया। इसके बाद लंका के राजा विभीषण ने श्रीराम से कहा कि भारत के वीर राजा श्रीलंका पर आक्रमण करने के लिए सदैव राम सेतु का प्रयोग करेंगे। इससे श्रीलंका अपनी स्वतंत्रता खो सकता है। उन्होंने श्रीराम से सेतु तोड़ने का अनुरोध किया। इस पर श्रीराम ने बाण चलाया और पुल जल स्तर से 2-3 फीट नीचे डूब गया। आज भी अगर कोई इस पुल पर खड़ा होता है तो उसकी कमर तक पानी भर जाता है। इस जगह के नाम ‘धनुषकोडी’ का मतलब भी ‘धनुष का अंत’ होता है। हलांकि इस बात का उल्लेख कम्बन रामायण में मिलता है। वाल्मिकी रामायण में इसका कोई उल्लेख नहीं है।

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