शिमला: हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) 50 साल की सबसे भीषण प्राकृतिक आपदा का सामना कर रहा है। सामाजिक संगठनों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के प्रावधानों के तहत स्थिति को राष्ट्रीय आपदा या दुर्लभ गंभीरता की आपदा घोषित करने पर विचार करने का आग्रह किया है।
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि राज्य इस समय अभूतपूर्व आपदा से जूझ रहा है। पिछले एक महीने से लगातार हो रही भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन के कारण आधी से ज्यादा आबादी जान जोखिम में डालकर जी रही है। हजारों इमारतें आंशिक या पूरी तरह से नष्ट हो गईं। सैकड़ों लोगों की जान चली गई है और हजारों परिवारों को अपना घर छोड़कर अस्थायी आश्रय स्थलों या रिश्तेदारों के यहां शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है। स्थिति गंभीर है। लगभग दो हजार सड़कें गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई हैं और सरकारी तथा निजी संपत्ति दोनों को काफी नुकसान हुआ है।
पत्र में कहा गया है कि “हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) दुर्लभ गंभीरता की इस आपदा के सामने केंद्र सरकार के आवश्यक समर्थन के बिना स्थिति से निपटने के लिए संघर्ष कर रहा है, जिससे बड़ी संख्या में परिवारों को तत्काल सहायता और दीर्घकालिक पुनर्वास में देरी हो सकती है। इस परिदृश्य में, राज्य आपदा राहत कोष राज्य के लोगों को त्वरित राहत और पुनर्वास प्रदान करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।
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राज्य को 7,482 करोड़ रुपये का नुकसान
हस्ताक्षरकर्ताओं में पूर्व नौकरशाह और किन्नौर स्थित हिमलोक जागृति मंच के आर.एस. नेगी, हिमालय बचाओ समिति कैमला, चम्बा के कुलभूषण उपमन्यु, हिमालय नीति अभियान के गुमान सिंह, सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश दीपक गुप्ता और पूर्व सांसद विप्लव ठाकुर शामिल हैं। गौरतलब है कि राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र के अनुसार, 24 जून को दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत से लेकर बुधवार तक Himachal Pradesh को 7,482 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। राज्य में 113 भूस्खलन और 58 बाढ़ की घटनाओं में कुल 327 लोगों की जान चली गई है। इसके अलावा प्राकृतिक आपदा संबंधी घटनाओं में 38 लोग लापता हैं।
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