Thursday, December 12, 2024
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Homeफीचर्डमजबूत होती भारतीय अर्थव्यवस्था पर बढ़ता भरोसा

मजबूत होती भारतीय अर्थव्यवस्था पर बढ़ता भरोसा

अर्थव्यवस्था

वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली अर्थव्यवस्था है। दूसरे देशों के मुकाबले वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भारत की निर्भरता अभी कम है। वैश्विक मंदी की स्थिति में भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी असर जरूर होगाए लेकिन दूसरे देशों की तुलना में काफी कम होगा। अर्थव्यवस्था में खपत अभी भी मजबूत बनी हुई है। अमेरिका और यूरोप सहित भारत के पड़ोसी देशों में महंगाई को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश में महंगाई से जनता त्रस्त है ही, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में भी महंगाई दर 10 प्रतिशत के आसपास बनी हुई है। भारत में थोक महंगाई में लगातार कमी आ रही है। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रा स्फीति मार्च 2023 में घटकर 29 महीने के निचले स्तर 1.34 प्रतिशत पर आ गई, यह फरवरी में 3.85 प्रतिशत पर थी। यह लगातार दसवां महीना है जब थोक महंगाई की दर में गिरावट आई है। इस समय पश्चिमी देशों सहित अनेक विदेशी कंपनियां चीन के विकल्प के रूप में भारत को देख रही है और यहाँ निवेश करने के लिए उत्सुक हैं।

वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितताओं को देखते हुए भारत की स्थिति स्पष्ट रूप से अन्य देशों की तुलना में कहीं बेहतर है। चुनौतीपूर्ण वैश्विक परिस्थितियों और उपभोग में सुस्ती के बीच विश्व बैंक और एडीबी ने हाल में वर्तमान वर्ष के लिए भारत के वृद्धि दर के अनुमान को घटाकर 6.3 से 6.4 प्रतिशत के बीच कर दिया है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी चालू वित्त वर्ष के लिए भारत के आर्थिक वृद्धि के अनुमान को 6.1 प्रतिशत से घटाकर 5.9 प्रतिशत कर दिया है। सरकार द्वारा बड़ी संख्या में किए गए सुधारों की वजह से देश का आपूर्ति पक्ष अब 08 प्रतिशत की वृद्धि दर के लिए सक्षम हो चुका है। ऐसे समय जबकि शेष विश्व की अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त पड़ रही हैए हम वृद्धि को 6.5 प्रतिशत के मौजूदा स्तर से बहुत आगे नहीं बढ़ा पाएंगे। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के नए वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण से जो वैश्विक आर्थिक तस्वीर उभर रही हैए वह चिंतित करने वाली है। ताजा अनुमानों के मुताबिक 2023 में वैश्विक वृद्धि कमजोर पड़कर 2.8 प्रतिशत रह जाएगी, जबकि 2022 में यह 3.4 प्रतिशत थी। आईएमएफ का वृद्धि अनुमान भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा अनुमानों से काफी कम है। रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष में वृद्धि के 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। हालांकिए कोष का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष के दौरान भारत की वृद्धि दर में सुधार होगाए लेकिन फिर भी मध्यम अवधि में यह कमजोर रह सकती है क्योंकि वैश्विक आर्थिक हालात अनुकूल नहीं रहेंगे। अभी ऐसा लग सकता है कि बैंकिंग क्षेत्र की समस्याओं को नियंत्रित कर लिया गया हैए लेकिन मुद्रा की आसान उपलब्धता के बाद ब्याज दरों में तेज वृद्धि विकसित बाजारों में और अधिक समस्याओं को जन्म दे सकता है। इससे वित्तीय हालात और कठोर होंगे तथा वृद्धि दर प्रभावित होगी। उच्च ब्याज दर के साथ उच्च सरकारी और निजी ऋण जोखिम को बढ़ाने वाला साबित हो सकता है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने अप्रैल की अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में वित्त वर्ष 2024 के लिए जीडीपी अनुमान को 6.4 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया था। कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में नरमी के आसार को देखते हुए ऐसा किया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुपक्षीय संस्थानों ने खपत की रफ्तार सुस्त पड़ने और बाहरी चुनौतियों को देखते हुए 2023-24 के लिए भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि के अपने पिछले अनुमानों में कटौती की थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत दुनिया में सबसे तेजी से उभरती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो सकता है। वैश्विक वृद्धि में इसका योगदान लगभग 15 प्रतिशत होगा, जो दूसरा सबसे बड़ा योगदान है। यह अमेरिका और यूरोपीय संघ के सम्मिलित योगदान से भी अधिक है। शहरी उपभोग में हो रही दमदार वृद्धि के साथ भारत में कुल मांग परिदृश्य मजबूत है। ग्रामीण मांग परिदृश्य में भी तेजी से सुधार हो रहा है। इसे रबी की पैदावार बंपर रहने की उम्मीदों से रफ्तार मिल रही है। रिपोर्ट में निवेश गतिविधियों में जबरदस्त तेजी, बुनियादी ढांचे में निवेश पर राजकोषीय जोर और प्रमुख क्षेत्रों के कॉर्पोरेट निवेश में सुधार का भी उल्लेख किया गया है। कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था ने बाहरी झटकों के प्रति लचीलापन दिखाया है और वैश्विक वृद्धि दर में कमी भी अनुमान से कम गंभीर है। ऐसे में 6.5 प्रतिशत वृद्धि संभव है। भारत में निर्यात से ज्यादा आयात होता है, ऐसे में मांग पर बाहरी असर नकारात्मक है। शुद्ध आयात मांग में कमी मामूली है। यह एक कारण है जिससे वृद्धि अनुमान 6.4 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत किया गया है।

जनांकिकी लाभांश का लाभ!

संयुक्त राष्ट्रसंघ के अनुसार भारत की आबादी चीन से अब अधिक हो गई है। भारत में जनसंख्या चीन के मुकाबले अधिक तेजी से बढ़ रही है। स्पष्ट है कि आगे आने वाले वर्षों में भारत और चीन में जनसंख्या का अंतर और बढ़ेगा, लेकिन चीन और भारत की जनांकिकीय विशेषता अलग अलग है। चीन में भी अब उम्रदराज लोगों और बुजुर्गों की संख्या बढ़ती जा रही है। जबकि भारत में युवाओं की संख्या पूरे विश्व में सबसे अधिक है। 15 वर्ष से 59 वर्ष की उम्र के युवाओं की संख्या भारत में दो तिहाई से अधिक है। प्रश्न यह है कि क्या भारत इस जनांकिकी लाभांश का लाभ ले पायेगाघ् श्रम शक्ति में युवाओं की संख्या बढ़ने के साथ साथ उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध होना आवश्यक है। साथ ही युवा कार्यबल को पर्याप्त शिक्षण और प्रशिक्षण भी आवश्यक है। तेजी से बदलती हुई तकनीक के दौर में युवाओं को शिक्षा और प्रशिक्षण ही उन्हें उत्पादक रोजगार के योग्य बना सकता है। सभी अतिरिक्त कार्य बलों को रोजगार प्रदान करने के लिए प्रति वर्ष 90 लाख नए रोजगार की आवश्यकता होगी। नौकरियां मिलने के साथ साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार मिले। भारत में चीन या अन्य देशों के मुकाबले महिलाओं की औपचारिक कार्यबल में उपस्थिति भी काफी कम है। जो महिलाएं कार्य कर रही है। उनमें भी अधिकांश को पुरुषों के मुकाबले कम भुगतान किया जाता है। भारत बहुत बड़ा बाजार होने के साथ ही आधारित संरचना के समग्र विकास को देखते हुए यह बहुत जल्द एक निवेश हब के रूप में स्थापित हो सकता है। पिछले कुछ वर्षों में सड़क परिवहन सहित भारत में आधारित संरचना काफी मजबूत हुई है। इसके कारण उद्योगों के लिए आसानी हुई है। बेहतर डिजिटल इनफ्रास्ट्रक्चर के कारण भी भारतीय अर्थव्यवस्था निवेश के लिए एक बेहतर जगह साबित हो रही है। अब भारतीय अर्थव्यवस्था में वृहद आर्थिक स्थिरता है और भुगतान संतुलन अथवा राजकोणीय असंतुलन को लेकर पुरानी चिंताएं अब गौण हैं। कॉर्पोरेट जगत का आत्मविश्वास अन्य देशों की तुलना में काफी अधिक है। भारत ने जो प्रगति की हैए उसे लेकर भी निवेशक प्रसन्न हैं। देश में बढ़ते डिजिटलीकरण और प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण में सुधार तथा लीकेज की कमी भी सराहनीय है। स्टार्टअप के लिए आगामी वर्षों में बेहतर माहौल होने की बात कही गई। अधिकांश बड़े निवेशक अब चीन में अपने निवेश को सीमित कर रहे हैं। नए बाज़ारों में भारत ऐसा बाजार हैए जहां अच्छी दीर्घकालिक संभावनाएं हैं और जहां पूंजी निवेश किया जा सकता है। यह देश में दीर्घावधि की पूंजी के लिए सकारात्मक है। अल्पावधि में बाजार की दिशा के बारे में कोई भी अनुमान लगा पाना मुश्किल हैए लेकिन दीर्घावधि में भारत के लिए स्थितियां बेहतर हैं। एप्पल ने 2022 में 05 अरब डॉलर मूल्य के आईफोन निर्यात किए हैंए अनुमान है कि 2025 तक 25 प्रतिशत आईफोन भारत में बनने का लक्ष्य हासिल हो जाएगा। यदि एप्पल 25-30 अरब डॉलर के आईफोन भारत को निर्यात कर सकता है या यहाँ निर्मित करा सकता है तो किसी अन्य कंपनी को भी भारत में निवेश करने में हिचक नहीं होगी। यह बात निवेशकों ने स्वीकार कर ली है कि देश में कई ढांचागत सुधार हुए हैं। भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी अगले 6-7 वर्ष में 2,500 डॉलर से बढ़कर 5,000 डॉलर हो जाएगी। कई निवेशक चीन में ऐसा होता देख चुके हैं। इस बढ़ोत्तरी का खपत पर जबरदस्त असर देखने को मिलता है। कंपनियों को भी इसका लाभ मिल सकता है। भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती यह है कि यहाँ सरकार और केंद्रीय बैंक का अर्थव्यवस्था पर प्रभावी नियंत्रण है और अर्थव्यवस्था की निर्यात पर निर्भरता दूसरे देशों के मुकाबले अभी भी कम है। ऐसे में यदि भारत अपनी जनांकिकीय लाभांश का लाभ उठाने में सफल रहा तो निश्चित ही यह आगे आने वाले वर्षों में एक नए तरह का लक्ष्य हासिल करते हुए नई अर्थव्यवस्था का निर्माण कर सकता है।

निर्यात की उभरती संभावनाएं

भारतीय बाजार के बड़े आकार और सर्वाधिक तेज अर्थव्यवस्था को देखते हुए विश्व के कई देश भारत के साथ व्यापारिक समझौता करने के लिए उत्सुक हैं। 2022 में भारत ने संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया के साथ महत्वपूर्ण व्यापारिक समझौते किए थे। जिसका असर वित्त वर्ष 2022- 23 में दिखा है। वर्ष 2022 में भारत ने संयुक्त अरब अमीरात को लगभग 28 अरब डॉलर का निर्यात कियाए जो कि 2022-23 में बढ़कर 31.33 अरब डॉलर हो गया। इस दौरान भारत के कुल वस्तु निर्यात में इसकी भागीदारी 6.5 प्रतिशत से बढ़कर 07 प्रतिशत होगी। ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापार समझौता जो कि दिसंबर 2022 के अंत में अमल में आया है। इसका असर 2023-24 में दिखेगा। ऑस्ट्रेलिया भारत से कई उपभोक्ता वस्तुओं का आयात करता है। अभी हाल में ही नई विदेश व्यापार नीति की घोषणा हुई हैए जिसका असर आगे आने वाले वर्षों में दिखेगा। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने इस दौरान कहा था कि विश्व के कई देश भारत के साथ व्यापार समझौते के लिए बातचीत शुरू करने के लिए उत्सुक हैं। यूरोपीय यूनियनए ब्रिटेन और कनाडा के साथ व्यापार समझौते पर कई दौर की बातचीत हो चुकी है। रूसए बांग्लादेश, श्रीलंका, कई अफ्रीकी देशए भूटान औरखाड़ी के कई देश भारत के साथ व्यापार समझौता करना चाह रहे हैं। भारत और थाईलैंड के बीच में भी बैठकें हुई हैं। इससे विश्व अधिकांश बाजारों में भारतीय वस्तुओं की पहुँच बिना शुल्क के या कम शुल्क के साथ संभव हो सकेगी और इसका लाभ भारत के ऐसे कई क्षेत्रों को मिलेंगे जिसमें रोजगार बढ़ने की संभावना है। 2012-13 से 2021-22 के बीच में निर्यात वृद्धि दर कम रही। इस दौरान निर्यात 452 अरब डॉलर से बढ़कर लगभग 684 अरब डॉलर हो गया. लेकिन 2022- 23 में निर्यात में 11.3 प्रतिशत की तेज वृद्धि की संभावना है। 2030 तक वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात को बढ़ाकर 1000 अरब डॉलर से अधिक किया जा सकता है। यदि निर्यातों की वृद्धि दर लगभग 15 प्रतिशत बनाएं रखा जाएए तो 2030 तक निर्यात का 2000 अरब डॉलर का लक्ष्य भी प्राप्त किया जा सकता है। हाल के वर्षों में खाद्य वस्तुओं के निर्यात और प्रतिरक्षा निर्यात में तेजी से वृद्धि हुई है। हाल के वर्षों में रक्षा उत्पादन पर ज़ोर देने के कारण भारत की रक्षा ज़रूरतों के आयात में भी तेजी से कमी हुई है। जहाँ पहले भारत अपनी प्रतिरक्षा आवश्यकताओं का 70 प्रतिशत आयात करता थाए अब यह घटकर मात्र 32 प्रतिशत रह गया है। पिछले छह वर्षों में प्रतिरक्षा निर्यात में 10 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है। सेवा क्षेत्र में भी भारत के निर्यातों में लगातार वृद्धि हुई है। पिछले पांच वर्षों में सेवाओ का निर्यात 2016 -17 के 164 अरब डॉलर से बढ़कर 2021-22 में 254 अरब डॉलर हो गया। 2022-23 में इसके बढ़कर लगभग 325 अरब डॉलर से अधिक होने का अनुमान है। आयात और निर्यात के लिए अंतर्राष्ट्रीय भुगतान को रुपए में स्वीकार करने की अनुमति मिलने के बाद अनेक देशों से भारत के व्यापार में महत्वपूर्ण वृद्धि होने की संभावना है। दिसंबर में पहली बार रूस के साथ व्यापार का भुगतान रुपए में करने की शुरुआत हो चुकी है। दक्षिण एशिया के कई देशों जैसे सिंगापुर, हांगकांग, दक्षिण कोरिया, ताइवान ने निर्यात और मुक्त व्यापार की नीतियों के माध्यम से ही अर्थव्यवस्था में तेज समृद्धि हासिल किया। भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, लेकिन अभी भी अर्थव्यवस्था की मजबूती का आधार आंतरिक खपत अधिक है। भारत में वृद्धि दर अभी बहुत तेज नहीं रही है। अभी भी निजी निवेश उतनी तेजी से नहीं बढ़ा हैए जिस तेजी से चीन या इस प्रकार की दूसरी खुली और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ा है।

जी20 और भारतीय अर्थव्यवस्था

दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के समूह जी20 समूह की 100 से अधिक बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं। जी20 समूह वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का करीब 85 प्रतिशत और वैश्विक कारोबार का 75 प्रतिशत से अधिक हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। इस समूह में दुनिया की दो तिहाई आबादी आती है। भारत अपनी डिजिटल बदलाव की कहानी को बाकी दुनिया तक पहुंचाने के लिए जी20 का इस्तेमाल करेगा। इस पहल से वैश्विक दिशा में लोगों के जीवन में बदलाव आएगा। जी20 के शीर्ष कृषि शोध संस्थाओं के प्रमुखों के लिए प्राथमिकताएं तय हो गई हैं। कृषि क्षेत्र के समक्ष चुनौतियों से निपटने के लिए विज्ञान आधारित रणनीति तैयार करने का प्रयास हो रहा है। कृषि क्षेत्र के समक्ष ये चुनौतियां समय के साथ विकराल होती जा रही हैं। एक तरफ फसल आधारित खाद्य पदार्थोंए भोजनए ईंधन और रेशे की आवश्यकताएं बढ़ती जा रही हैंए मगर दूसरी तरफ कृषि योग्य भूमि का आकार लगातार कम होने एवं इसका क्षरण बढ़नेए प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहनए जैव-विविधता में कमी और फसलों की कटाई के बाद होने वाले भारी नुकसान के कारण इन आवश्यकताओं की पूर्ति करने में कृषि क्षेत्र की क्षमता लगातार कम पड़ती जा रही है। दुनिया की आबादी की अधिकांश खाद्य जरूरतें तीन फसलें- चावल ए गेहूं और मक्का से पूरी होती हैं। प्राकृतिक आपदाओं जैसे कीट-पतंगा, बीमारी या अन्य कारणों से इन फसलों की आपूर्ति में बाधा खाद्य प्रणाली का ढांचा कमजोर कर सकती हैए जिसका सीधा असर खाद्य सुरक्षा पर होगा। किसी भी स्थिति में, चाहे परिस्थितियां सामान्य ही क्यों ना रहें तब भीए 2030 तक भुखमरी एवं कुपोषण के प्रभावों को खत्म करने का टिकाऊ विकास लक्ष्य पूरा कर पाना मुश्किल होगा। जी20 का मेजबान देश भारत का प्रमुख लक्ष्य भोजन के रूप में कम इस्तेमाल होने वाले एवं प्रायः उपेक्षित की जाने वाली फसलों, खासकर मोटे अनाज की भूमिका को रेखांकित करना है। ये अनाज भोजन में विविधता लाने के साथ ही पोषण की गुणवत्ता में सुधार करने की क्षमता रखते हैं। इसके अलावा कृषि क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के साथ ही ये कम उपजाऊए क्षरित एवं गैर-सिंचित भूमि पर निर्भर छोटे किसानों की जीविका सुरक्षित करने में भी अहम योगदान दे सकते हैं। भारत में हरित क्रांति की शुरुआत के बाद से सिर्फ कुछ क्षेत्रों, फसलों और किसानों को ही अधिक लाभ मिला है। विशेष रूप से मोटे अनाजों की कीमत पर गेहूं और चावल जैसी फसलों के उत्पादन में वृद्धि हुई। इन फसलों में उन्नत किस्म के बीज, उर्वरक और सिंचाई पर खर्च अधिक आता थाए इसीलिए इसका लाभ सिर्फ अधिकतर बड़े और मध्यम किसानों को मिला तथा उन क्षेत्रों और राज्यों को मिला जहाँ सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध थीं। भारत के लगभग दो तिहाई से अधिक छोटे और मध्यम जोतों वाले कृषकए दो तिहाई से अधिक असिंचित क्षेत्र इसका लाभ नहीं उठा सके। अब भारत जिस प्रकार से वैश्विक स्तर पर मोटे अनाजों के उपभोग और उत्पादन को बढ़ावा दे रहा हैए उससे देश के अंदर कृषि क्षेत्र में वैयक्तिक, क्षेत्रीय और फसलगत असमानता में कमी आएगी। इससे देश की अर्थव्यवस्था को भी तेजी से बढ़ने में मदद मिलेगी।

डॉ. उमेश प्रताप सिंह

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