कलियुग में विशेषतः गंगा देवी सब पाप हर लेती हैं। नारद पुराण के उत्तर भाग में गंगा देवी की विशेष महिमा (Glory) का वर्णन है। गंगाजी के दर्शन मात्र से सम्पूर्ण इंद्रियों की चंचलता, दुर्व्यसन, पातक तथा निर्दयता आदि दोष नष्ट हो जाते हैं। यदि गंगा देवी में दृढ़ श्रद्धा हो तो दूसरों की हिंसा, कुटिलता, परदोष आदि का दर्शन तथा मनुष्यों के दंभ आदि दोष गंगादेवी के दर्शन मात्र से दूर हो जाते हैं। गंगा में स्नान और जलपान करके मनुष्य अपनी सात पीढ़ियों को पवित्र कर देता है। सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान करने से और समस्त इष्टदेव मंदिरों में पूजा करने से जो पुण्य होता है, वह पुण्य केवल गंगा स्नान करने से मनुष्य प्राप्त कर लेता है।
गंगा में मध्याह्नकाल (दोपहर) में स्नान करने से प्रातः काल की अपेक्षा दस गुणा पुण्य प्राप्त होता है। सायंकाल में स्नान करने से सौ गुना तथा भगवान शिव के समीप स्नान करने के अनन्तगुणा पुण्य प्राप्त होता है। गंगा में जहां कहीं भी स्नान किया जाए, वह कुरुक्षेत्र के समान पुण्य देने वाली है। नारद पुराण के अनुसार, जो मनुष्य माघ मास में निरंतर गंगा स्नान करता है, वह दीर्घकाल तक अपने समस्त कुल के साथ स्वर्गलोक में निवास करता है। तदनंतर 10 लाख करोड़ कल्पों तक ब्रह्मलोक में निवास करता है। सूर्य की सम्पूर्ण संक्रांतियों में जो मनुष्य गंगाजी में जल से स्नान करता है, वह विमान द्वारा बैकुण्ठधाम को जाता है। माघ के समान कार्तिक मास में भी गंगा स्नान का महान फल माना गया है।
सूर्य की मेष संक्रांति में तथा कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान करने से ब्रह्मा आदि देवताओं ने माघ मास स्नान की अपेक्षा अधिक पूण्यकारी बताया है। कार्तिक मास अथवा वैशाख में अक्षय तृतीया तिथि को गंगा स्नान करने से एक वर्ष तक स्नान करने का पुण्य फल प्राप्त होता है। वैशाख, कार्तिक और माघ की पूर्णिमा तथा अमावस्या बड़ी पवित्र मानी गयी है। इनमें गंगा स्नान का सुयोग अत्यंत दुर्लभ है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को गंगा स्नान करने से सहस्रगुना फल प्राप्त होता है। सभी पर्वों में सौ गुणा पुण्य प्राप्त होता है। माघ कृष्णपक्ष की अष्टमी तथा माघ अमावस्या को भी गंगा स्नान से सौ गुणा पुण्य प्राप्त होता है।
फाल्गुन और अषाढ़ मास में सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के समय किया हुआ गंगा स्नान तीन मास के गंगास्नान का फलदेने वाला होता है। मनुष्य यदि अपने जन्म नक्षत्र में भक्तिभाव से गंगा स्नान करे तो आजन्म संचित पापों का नाश हो जाता है। जो मनुष्य पूरे माघ मास विधिपूर्वक अरुणोदय काल में गंगा स्नान करता है, वह जातिस्मर (पुनर्जन्म की बातों को स्मरण रखने वाला) होता है। वह सम्पूर्ण शास्त्रों का अर्थवेत्ता, ज्ञानी तथा निरोगी भी अवश्य होता है। चन्द्रग्रहण का गंगा स्नान लाख गुणा पुण्यकारी बताया गया है और सूर्य ग्रहण का गंगा स्नान उससे भी दस गुना अधिक पुण्यकारी माना गया है। ज्येष्ठमास के शुक्लपक्ष में दशमी तिथि को मंगलवार तथा हस्त नक्षत्र के योग में भगवती गंगा हिमालय से इस मर्त्यलोक में उतरी थीं। इस तिथि को वह आद्य गंगा स्नान करने पर दस गुणा से अधिक पाप हर लेती हैं। इस पुण्यतिथि को गंगा दशहरा भी कहा जाता है।
गंगाजी में जहां-कहीं भी स्नान किया जाता है, वह कुरुक्षेत्र दस गुना पुण्य प्रदान करने वाला होता है, किन्तु जहां वो विन्ध्याचल पर्वत से संयुक्त होती हैं, वहां कुरुक्षेत्र की अपेक्षा सौ गुणा पुण्य होता है। काशीपुरी में गंगाजी में स्नान करने से विन्ध्याचल की अपेक्षा सौ गुणा पुण्य बताया गया है। यों तो गंगाजी सर्वत्र ही दुर्लभ हैं, किंतु गंगाद्वार, प्रयाग और गंगा सागर संगम इन तीनों स्थानों पर स्नान करने की महिमा बहुत अधिक है। गंगाद्वार (हरिद्वार) में कुशावर्त में भगवान गोविन्द का और कनखल में भगवान रूद्र का दर्शन पूजन करने से अथवा इन स्थानों में गंगा स्नान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
हरिद्वार क्षेत्र में ही एक दूसरा तीर्थ है, जो कपिल तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। उसमें गंगा स्नान करने वाला मानव अस्सी हजार कपिला गौ माताओं के दान के समान पुण्यफल प्राप्त करता है। गंगा एवं सरयू के संगम तीर्थ में भगवान शिव और विष्णु की पूजा करने वाला मानव विष्णुस्वरूप हो जाता है। वहां स्नान करने से पांच अश्वमेध यज्ञों का फल देनेवाला पुण्य प्राप्त होता है। जहां कहीं भी गंगा से गंडकी नदी मिलती है, वहां का स्नान और एक हजार गौ माताओं का दान दोनों बराबर होता है।
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दक्ष प्रयाग तीर्थ में गंगा-यमुना के संगम तीर्थ में स्नान करने से प्रयाग की ही भांति अक्षय पुण्य होता है। जो जन्म की सफलता एवं संतति चाहता है, वह गंगाजी के समीप जाकर देवताओं तथा पितरों का तर्पण करे। जो मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होकर दुर्गति में पड़े हैं, वे अपने वंशजों द्वारा कुश, तिल और गंगाजल से तृप्त किए जाने पर बैकुण्ठधाम में चले जाते हैं। गंगाजी के तट पर किया हुआ यज्ञ, दान, तप, श्राद्ध और देवपूजा आदि सब कर्म कोटि-कोटि गुणा फल देने वाला होता है।
ज्योतिर्विद- लोकेंद्र चतुर्वेदी
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