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कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूवैज्ञानिक ने खोज निकाला ’क्षीरसागर’, अमेरिकी जनरल में प्रकाशित हुआ शोध पत्र

नैनीतालः सृष्टि के शुरुआती दौर सतयुग के बारे में कहा जाता है कि सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु क्षीरसागर में वास करते थे। इसी ‘क्षीरसागर’ में एक सुमेरु पर्वत था। इसी क्षीरसागर में मंदराचल पर्वत पर वासुकी नाग की मदद से देवों एवं असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था और इसके फलस्वरूप हलाहल विष के साथ माता लक्ष्मी सहित अनेक रत्न निकले थे। भारतीय धर्मग्रंथों में वर्णित इन संदर्भों को अब एक हद तक वैज्ञानिक भी स्वीकारने लगे हैं। इधर कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूवैज्ञानिक प्रो. राजीव उपाध्याय ने कभी हिमालय की जगह मौजूद रहे टेथिस सागर के क्षेत्र में एक ऐसे अज्ञात भूखंड को खोज लिया है, जिसे क्षीरसागर के नाम पर ही ‘क्षिरोधा’ नाम दिया गया है।

प्रो. राजीव उपाध्याय का इस संबंध में एक शोध पत्र मंगलवार को दुनिया की शीर्ष भूवैज्ञानिक पत्रिका ‘जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ अमेरिका’ में ‘डिस्कवरी’ नाम से छपा है। इस बारे में उन्होंने बताया कि पृथ्वी की उम्र करीब 4.6 अरब वर्ष की है। तब दुनिया में आज की तरह सात की जगह उत्तरी गोलार्ध में लॉरेशिया और दक्षिणी गोलार्ध में वर्तमान दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, भारत, आस्ट्रेलिया व अंटार्कटिका महाद्वीप को समाहित करने वाले गोंडवाना लेंड नाम के कुल दो ही महाद्वीप थे। वर्तमान हिमालय की जगह टेथिस नाम का महासागर था। अब से करीब 30 करोड़ वर्ष पूर्व लॉरेशिया और गौंडवाना लेंड आपस में टकराए और इससे नए महाद्वीपों का जन्म हुआ। ऐसी मान्यता है कि इसी कड़ी में आगे 5 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय प्लेट भी दक्षिणी गोलार्ध से टूटकर उत्तरी गोलार्ध की ओर आई और एशियाई प्लेट से टकराई। इसी प्रक्रिया में उनके टकराने वाले स्थान पर मौजूद टेथिस सागर में जमा चूना पत्थर आदि पहाड़ का रूप लेकर हिमालय पर्वत बन गया। अब तक के अध्ययनों के आधार पर माना जाता है कि भारतीय प्रांत लद्दाख में सिंधु नदी से लगे इंडस सांग्पो सूचर या इंडस सूचर क्षेत्र में भारतीय भूगर्भीय प्लेट तिब्बती प्लेट से टकराई।

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भूवैज्ञानिकों की ओर से यह एक स्थापित सत्य है। इधर नए शोध अध्ययन में इससे इतर कहा गया कि भारतीय प्लेट एशियाई प्लेट से नहीं टकराई, बल्कि इनके बीच में और भी छोटे-छोटे भूखंड हैं, जो भारतीय प्लेट से पहले ही टकराए थे। ऐसा ही भूखंड हैं-काराकोरम, ल्हासा व पेंगांस झील के पूर्व में स्थित क्विंगटांग, लेकिन उत्तरी लद्दाख में सिंधु नदी के उत्तर में सियाचिन से आने वाली नुब्रा व शियोक नदियों की नुब्रा घाटी में भारतीय एवं काराकोरम प्लेट के बीच में एक अन्य छोटा भूंखंड फंसा हुआ है। यह भूखंड अब तक पूरी तरह से अज्ञात था। नए खोजे गए इस भूखंड का प्रमाण यह है कि इसके उत्तरी गोलार्ध में होने के बावजूद इसमें 30 करोड़ वर्ष पुराने गोंडवाना काल यानी पुरा वनस्पतिक काल के स्टोर व पोलनग्रेन्स यानी तत्कालीन पेड़ों के बीजों के जीवाश्म तथा कोयले के टुकड़े मिले हैं। जबकि वहां 10 करोड़ वर्ष पुराने या उससे नई चट्टानें ही मिलनी चाहिए थी। यही गौंडवाना काल का कोयला देश के बिहार क्षेत्र में रानीगंज व झरिया के क्षेत्रों में भूगर्भ से प्राप्त होता है। इस शोध अध्ययन में पुरावनस्पति बीरबल साहनी संस्थान लखनऊ के सेवानिवृत्त डॉ. राम अवतार और उनके पुत्र शोधार्थी सौरभ गौतम का भी सहयोग रहा है।

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