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Bada Mangal: लखनऊ में 400 साल पुरानी है बड़ा मंगल की परंपरा, जानें इससे जड़े रोचक तथ्‍य

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लखनऊ: वैसे तो हर मंगलवार हनुमान जी को समर्पित होता है और इस दिन उनकी पूजा व आराधना की जाती है। लेकिन यूपी की राजधानी लखनऊ में जेठ माह के सभी मंगलवारों की बात ही कुछ और है। लखनऊ में जेठ माह के सभी मंगलवार बड़ी धूम-धाम से मनाए जाते हैं। इस बार जेठ माह में पांच बड़े मंगल 17, 24, 31 मई, 7 जून और 14 जून को पड़ रहे हैं। यह शहर का ऐसा त्योहार है, जहां जो किसी भी धर्म से परे है। हनुमान जी की भक्ति में लीन, हिंदू-मुस्लिम मिलकर यह पर्व मनाते हैं।

बड़े मंगल पर कोई नहीं रहता भूखा

बड़े मंगल पर सूरज उगने से पहले ही शहर में चहलपहल शुरू हो जाती है। जेठ की बरसती आग तक दोपहरी तक भंडारे की तैयारी होती रहती है। रास्ता संकरा हो या चौड़ा हर चार कदम पर भंडारा लगता रहता है। जेठ के बड़े मंगल को कोई भी प्यासा या भूखा नहीं रहता है। कई घरों में इस दिन खाना नहीं बनाता। लखनऊ में बड़े मंगल की एक और खासियत रही है, इस दिन विशेषकर सरकारी दफ्तरों में काम न के बराबर होता है। आधे से ज्यादा स्टाफ भंडारे में प्रसाद बांटता ही मिलता। कुछ लोग तो परिवार को दफ्तर बुलाकर सपरिवार भंडारा वितरण करते।

बड़ा मंगल का इतिहास

राजधानी लखनऊ में बड़े मंगल की परंपरा 400 साल से भी पुरानी है। अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर की स्थापना नवाब शुजाउद्दौला की बेगल और दिल्ली की मुगलिया खानदान की बेटी आलिया बेगम ने करवाई थी। इसका निर्माण 1792 से 1802 के बीच में हुआ था। बड़े मंगल की परंपरा अलीगंज के हनुमान मंदिर से शुरू हुई थी। वहीं, ये भी बताया जाता है कि सआदत अली खां का जन्म मंगलवार के दिन हुआ था, इसलिए उन्हें लोग मंगलू कहकर भी बुलाते थे।

बताया जाता है कि बड़ी बेगम ने टीले को खोदवाया और बजरंगबली की प्रतिमा को हाथी पर रखकर मंगाया। गोमती पार प्रतिमा स्थापित करने की मंशा के विपरीत हाथी अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर से आगे नहीं बढ़ सका। उत्सव के साथ मंदिर की स्थापना की गई। स्थापना काल के दो तीन वर्षों के बाद फैली महामारी को दूर करने के लिए बेगम ने बजरंगबली का गुणगान किया तो महामारी समाप्त हो गई। मंदिर के गुंबद पर चांद का निशान एकता और भाईचारे की मिसाल पेश करता है।

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एक और कथा यह है कि एक समय शहर में इत्र का मारवाड़ी व्यापारी जटमल आया। उसने सोचा कि नवाबों के शहर में इत्र का खूब व्यापार होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उसका इत्र बिका ही नहीं। जब नवाब को पता चला कि व्यापारी मायूस है, तो उन्होंने सारा इत्र खरीद लिया। खुश होकर व्यापारी ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और चांदी का छत्र चढ़ाया। इतिहास के अनुसार क्या सच या क्या गलत, ये बता पाना तो मुश्किल है, लेकिन आस्था के अनुसार ये तीन कारण मुख्य माने गए हैं, जिसकी वजह से बड़े मंगल का पर्व शहर में मनाया जाने लगा और आजतक जारी है। इस पर्व में दोनों धर्म शामिल होते हैं।

इन चीजों से प्रसन्न होंगे बजरंगबली

हनुमान जी को भगवान शिव के अवतार हैं। उनकी पूजा तत्काल फल देने वाली होती है। हनुमान जी को ग्राम देवता, संकटमोचन के नाम से भी पूजा जाता है। माता सीता के द्वारा हनुमान जी को अष्ट सिद्धि और नवनिधि का वरदान दिया गया है। भक्त इस दिन व्रत रखकर भी भगवान राम, माता सीता, हनुमान जी का पूजन कीर्तन आदि करते हैं। इस दिन रामचरित मानस पाठ और सुंदरकांड विशेष फलदायी होता है। लाल वस्त्र, लाल फूल, सिंदूर, लाल चंदन, चमेली के तेल का लेप, तुलसी पत्र, बेसन के लड्डू से बजरंगबली जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं।

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