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भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा से समूचे जगत का होगा कल्याण

संसार में भगवान राम की महिमा अपरंपार है। श्रीराम का नाम सत्य को परिभाषित करता है। राम नाम से अधिक शक्तिशाली शब्द इस संसार में दूसरा नहीं है। मान्यता है कि ‘रा’ शब्द का उच्चारण करने से हमारे भीतर विद्यमान समस्त पाप बाहर निकल जाते हैं और फिर ‘म’ शब्द के उच्चारण के साथ ही मुख रूपी कपाट बंद हो जाता है, जिससे पाप वापस से हमारे भीतर प्रवाहित नहीं हो पाते हैं। राम नाम की महिमा का इस संसार में कोई तोड़ नहीं है, जिसके चलते भक्तों को सदैव सुख, समृद्धि, आत्मीयता और शांति की प्राप्ति होती है। प्रभु श्रीराम की महिमा का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि “कोई तन दुखी, कोई मन दुखी, कोई धन बिन रहत उदास। इस जगत में बस एक सुखी जो जय राम का दास।।” अर्थात संसार में सभी किसी न किसी बात को लेकर दुखी हैं। कोई व्यक्ति अपने शरीर को लेकर दुखी है, तो कोई व्यक्ति अपने विचारों से दुखी है तथा कुछ लोग धन अर्जित करने व इससे जुड़ी अन्य लालसा से दुखी हैं। इन सभी सांसारिक मोह-माया के बीच इस जगत में सिर्फ वही पूर्ण रूप से सुखी है, जो प्रभु श्रीराम की शरण में है। ऐसे में यदि कोई भक्त मंत्र जाप के द्वारा प्रभु का सानिध्य प्राप्त करना चाहता है और उसे मंत्रोच्चार की विधि व पूर्ण मंत्र ज्ञात नहीं है, तो वह एकांत में बैठकर सच्चे मन से महज राम नाम का जप कर अपनी तपस्या को सफल कर सकता है। बता दें कि, राम राज्य की अवधारणा को मूल रूप से “भगवान राम के शासनकाल” के रूप में अनुवादित किया गया है, जो कि त्रेता युग में भगवान राम के शासनकाल में आमजन के जीवन को दर्शाती है। यह एक अवधारणा है, जो शासन और सामाजिक सद्भाव की एक आदर्श परिस्थिति का प्रतिनिधित्व करती है। हिंदू पौराणिक कथाओं व साहित्यों में राम राज्य को न्याय, धार्मिकता और समृद्धि के स्वर्णिम युग के रूप में दर्शाया गया है तथा निरंतर रूप में होने वाली प्रभु से जुड़ी अनेकों चर्चाएं भी राम राज्य की झलक प्रस्तुत करती हैं। भारत समेत समूचे विश्व को ज्ञात है कि 22 जनवरी 2024 के दिन रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का स्वर्णिम और ऐतिहासिक अवसर सनातनधर्मियों को कड़े संघर्ष से हासिल हुआ है, जिसका 550 सालों से अधिक का इतिहास है। इसमें 70 से अधिक बार का संघर्ष, जिसमें से अधिकतर मुगल आक्रांताओं द्वारा भारतवासियों और हमारे मंदिरों पर हमले का रक्तरजिंत इतिहास शामिल है। ऐसे में अनगिनत आन्दोलनों के बाद अब अंततः 22 जनवरी 2024 के दिन हिन्दू समाज को अपने आराध्य प्रभु श्रीराम को जन्मभूमि पर निर्मित भव्य मन्दिर में पुर्नस्थापित करने का गौरव प्राप्त हो रहा है। इतिहासकारों के आधार पर 21 मार्च 1528 को मुगल शासक बाबर के आदेश पर उसके सेनापति मीर बाकी ने राम जन्मभूमि पर निर्मित प्रभु श्रीराम मन्दिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था। उस दौरान मुगल शासकों के आक्रांतक रवैये के चलते कोई अपार दुख के बाद भी कोई भी इसके विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद नहीं कर सका और न ही इस दौरान मुगल शासन के खिलाफ कोई बड़ा युद्ध या जन आन्दोलन चलाया गया। हालांकि, मुगल शासन के डर के बावजूद अयोध्या राम मंदिर स्थापना के लिए हिन्दू समाज हमेशा से संघर्ष करते हुए अपने जीवन का बलिदान देता आया है। बता दें कि, भगवान राम का जन्म अयोध्या में त्रेता युग के समय सूर्यवंश में हुआ था। प्रभु श्रीराम भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं। भारतीय संस्कृति और सनातन सभ्यता की जानकारी रखने वाले इतिहासकारों के मुताबिक मुगल आक्रांताओं ने अपने शासनकाल में भारत की सभ्यता, संस्कृति और हिंदू धर्म की आस्था को खंडित करने के हरसंभव प्रयास किए हैं तथा साथ ही इस कदर बर्बरता दिखाई की इसकी खिलाफत करने वाले लोगों तक को जिंदा नहीं रहने दिया गया।

संघर्ष और सरकार का आश्वासन

entire-world-will-benefit-from-the-consecration-of-lord-ram गोरक्ष पीठ के तत्कालीन मंहत अवैद्यनाथ ने राम मन्दिर आंदोलन के दौरान शीर्ष भूमिका निभाई थी। उनके प्रस्ताव पर 1984 की प्रथम धर्म संसद में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया गया था, जिसमें शामिल 528 संतों ने श्रीराम जन्मभूमि को मुक्त कराने का निर्णय लिया था। हरिद्वार के संत सम्मेलन में 30 अक्टूबर, 1990 को मंदिर निर्माण शुरू करने का प्रस्ताव भी महंत अवैद्यनाथ ने ही रखा था। इसके पश्चात 06 दिसंबर, 1992 को मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा शुरू करने का आह्वान करने के चलते बाबरी ढांचा विध्वंस मामले में महंत अवैद्यनाथ को मुख्य आरोपी बनाया गया था। महंत रामचंद्र दास परमहंस ने राम जन्मभूमि स्थल पर प्रभु श्रीराम की मूर्ति प्रकट होने के बाद जिला सत्र न्यायालय में वाद दायर कर मुस्लिम पक्ष को संबंधित स्थल पर पूजा-अर्चना में बाधा डालने से रोकने की मांग की थी। इसके बाद लालकृष्ण आडवाणी ने 1990 में राम रथ यात्रा गुजरात के सोमनाथ से निकाली, जो अयोध्या धाम में पहुंच कर समाप्त हुई। इस यात्रा का प्रभाव न सिर्फ भारत बल्कि समूचे विश्व के हिन्दू समाज पर पड़ा और हर कोई रामलला को भव्य मंदिर में विराजित करने का स्वप्न अपनी आंखों में संजोने लगा। यात्रा के बाद ही अनवरत अयोध्या नगरी में कारसेवा होती रही और तमाम बलिदानों के बाद आखिरकार 06 दिसंबर, 1992 को विवादित बाबरी ढ़ांचे का विध्वंस कर दिया गया। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने बाबरी ढ़ांचे के विध्वंस की जिम्मेदारी लेते हुए सत्ता का त्याग कर दिया गया था और खुद को प्रभु श्रीराम का सच्चा सेवक बताया था। बाबरी विध्वंस के बाद पुरातात्विक सर्वेक्षण हुआ, जिसमें तमाम मूर्तियां बरामद हुई, जिसके आधार पर श्रीराम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। महंत अवैद्यनाथ शुरु से ही राम मंदिर निर्माण को लेकर संघर्ष करते रहे और ऐसे में यह महज एक संयोग ही है कि उनके शिष्य व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वर्तमान में श्रीराम मंदिर निर्माण कार्य की अगुवाई कर रहे हैं। योगी आदित्यनाथ ने ही सर्वप्रथम रामलला को तंबू से निकालकर अस्थाई मंदिर में स्थापित किया था। बता दें कि, राम जन्‍मभूमि के मालिकाना हक के मामले में 30 सितंबर 2010 को आए इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एसयू खान और जस्टिस डीवी शर्मा बेंच के फैसले पर मुख्य रूप से हिंदू पक्ष पर ने नाराजगी जाहिर की थी। अपने इस आदेश में हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच एक समान तीन भागों में बांटने का निर्णय दिया था। फैसले के बाद हिंदू पक्ष की ओर से यह बयान दिया गया था कि विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने से कभी भी इस समस्या का समाधान नहीं होगा। इसके बाद हिंदू पक्ष के अथक प्रयासों और संघर्ष की बदौलत केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के दौरान साल 2019 में श्रीराम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को पूर्ण रूप से स्वीकृति मिली तथा इस फैसले को देश भर में सहज रूप से स्वीकार कर लिया गया। इस दौरान सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता के. पराशरण हिन्दू पक्षकारों के अधिवक्ता रहे हैं। ऐसे में के. पराशरण की प्रभावी पैरवी के चलते ही श्रीराम जन्मभूमि का फैसला हिन्दुओं की आस्था के पक्ष में आया। वर्तमान में के. पराशरण श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य है तथा पूर्व की कांग्रेस सरकार में अटार्नी जनरल भी रह चुके हैं। साथ ही के. पराशरण को पद्म भूषण और पदम विभूषण जैसे पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है। बता दें कि, 100 सालों से ज्यादा समय से जारी इस विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले भी मामले पर फैसला लेने की खबर सामने आई थी, लेकिन ऐसे में उचित सुरक्षा व्यवस्था सहित सांप्रदायिक दंगे भड़कने की संभावना के बीच इस विचार को स्थगित कर दिया गया था, लेकिन 2019 में सर्वोच्च न्यायालय के इस सुप्रीम फैसले को सभी ने सहर्ष स्वीकार किया और फैसले को लेकर देश के किसी भी कोने से तनिक भी विद्रोह की हवा सामने नहीं आई। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के पीछे का सबसे अहम कारण रहा केन्द्र और राज्य में भाजपा सरकार द्वारा दिया गया पुख्ता सुरक्षा इंतजाम का आश्वासन। बता दें कि, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक बयान के माध्यम से सभी से शांति बनाए रखने की अपील की थी। इसी दौरान उन्होंने कहा था कि मामले में जो भी फ़ैसला आएगा, वो किसी की हार या जीत नहीं होगा तथा इस दौरान समाज के सभी वर्गों की तरफ से सद्भावना का वातावरण बनाए रखने के लिए किए गए प्रयास बहुत सराहनीय हैं। देश की न्यायपालिका के सम्मान को सर्वोपरि रखते हुए समाज के सभी पक्षों, सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनों तथा समस्त पक्षकारों ने सौहार्दपूर्ण और सकारात्मक माहौल बनाने के लिए जो प्रयास किए, वे बेहद स्वागत योग्य हैं। उस दौरान प्रधानमंत्री ने मामले की संवेदनशीलता को मद्देनजर रखते हुए समूचे देश से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करने की बात कही थी, जो कि प्रभु श्रीराम के आचरण, राम राज्य की अवधारणा और राम नाम की छवि को भली-भांति प्रतिबिंबित करता है। बता दें कि, उस दौरान मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए उत्तर प्रदेश में धारा 144 लगा दी गई थी तथा राज्य के सभी स्कूलों और कॉलेजों को भी बंद रखने का आदेश दिया गया था, जिससे किसी भी नकारात्मक परिस्थिति में जान-माल के नुकसान को काफी हद तक टाला जा सके। हालांकि, उस बीच राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव राजेंद्र तिवारी, डीजीपी ओपी सिंह और अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी अयोध्या पहुंचे थे और वहां उन्होंने प्रदेशभर की सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेने के साथ ही हरसंभव स्थिति में हालात संभालने का आश्वासन दिया था। उत्तर प्रदेश के अलावा जम्मू में भी स्कूल व कॉलेजों को बंद रखने के साथ ही फैसले के पहले की रात से धारा 144 लागू कर दी गई थी।

पृथ्वी का होगा कल्याण

entire-world-will-benefit-from-the-consecration-of-lord-ram अयोध्या में प्रभु श्रीराम मंदिर निर्माण से समूची पृथ्वी का कल्याण होगा। राम मंदिर सनातन संस्कृति और सभ्यता का सर्वोच्च उदाहरण होने के साथ ही वैश्विक जन कल्याण और शांति का संवाहक बनेगा। समाजिक दृष्टि से देश और विश्व के समक्ष मौजूदा समस्याओं के स्थायी समाधान के मार्ग में आपसी टकराव, झगड़े व अहंकार का कोई स्थान नहीं है। यह सीख हमें प्रभु श्रीराम के जीवन और राम नाम जप की शक्ति से मिलती है। प्रभु श्रीराम ने कर्तव्यों का पालन करते हुए सभी समस्याओं से लड़ने और उनसे पार पाने का रास्ता दिखाया था। यह रास्ता ही वैश्विक कल्याण का संवाहक है, क्योंकि संसारिक रूप से अपने कर्तव्यों का भली-भांति पालन करना भी राम नाम जपने के समान है। भगवान राम हमेशा अपने कर्तव्यों का पालन करते रहें और इसके सापेक्ष उन्होंने कभी अपने अधिकारों की भी मांग नहीं की। अपने पिता के शब्दों का मान रखते हुए 14 वर्ष के वनवास पर चले गए तथा इसी दौरान सबरी के जूठे बेर खाकर और माता अहिल्या को उनका सम्मान वापस दिलाकर प्रभु श्रीराम ने महिलाओं व वांछितों के सशक्तिकरण का रास्ता भी विश्व को दिखाया, जो कि यकीनन तौर पर संघर्ष नहीं बल्कि प्रेम के जरिए भी आसानी से हासिल किया जा सकता है। ऐसे में नवनिर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर जाहिर तौर पर रामत्व के प्रसार का माध्यम बनेगा और इससे समूचे विश्व में प्रभु श्रीराम नाम के कल्याणकारी मार्ग प्रशस्त होंगे। यह भी पढ़ेंः-श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में पूर्वोत्तर के ‘कारसेवकों’ ने भी लिखी आहुतियों की गाथा

सच साबित हुई देवरहा बाबा की भविष्यवाणी

श्रीराम मंदिर को धार देने वाले प्रमुख संतों में पूज्य देवरहा बाबा ने करीब तीन दशक पहले पूर्ण भरोसे के साथ अपने एक भाषण में कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण अवश्य होगा और यह देश के समस्त लोगों की सहमति से होगा। अंततः हुआ भी ऐसा ही। साल 2019 में श्रीराम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को पूर्ण रूप से स्वीकृति मिली तथा इस फैसले को देश भर में सहज रूप से स्‍वीकार कर लिया गया। देवरहा बाबा को भगवान का स्वरूप माना जाता है। कहा जाता है कि बाबा के आदेश पर ही तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पार्टी के विरोध को नजरअंदाज कर विवादित स्थल का ताला खुलवाया था और बाद में मन्दिर का शिलान्यास भी हुआ। इस दौरान देवरिया जिले के देवरहा बाबा आश्रम के पीठाधीश्वर श्याम सुंदर दास को निमंत्रण भेजा गया है, जिसको लेकर वह बेहद खुश हैं। ऐसे में उन्होंने कहा कि लंबे संघर्ष के बाद अयोध्या धाम में भगवान श्रीराम का मंदिर स्थापित होना सुखद पल है। (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)