रायबरेलीः लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ रही रायबरेली लोकसभा सीट पर मुकाबला हमेशा दिलचस्प रहा है, कभी इंदिरा गांधी को यहां हार मिली तो कभी बंपर जीत के बाद भी इस सीट से उनका मोहभंग हो गया। रायबरेली चुनाव में भारतीय राजनीति की दो दिग्गज महिलाओं के बीच चुनावी जंग आज भी चुनावी इतिहास में दर्ज है। इसकी चर्चा हमेशा होती रहती है।
विजयाराजे सिंधिया ने दी टक्कर
साल 1980 में इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ रही थीं। इंदिरा गांधी को टक्कर देने के लिए जनता पार्टी की ओर से रणनीति तैयार की जा रही थी, लेकिन कोई भी यहां से चुनाव लड़ने को तैयार नहीं था। ऐसे में ग्वालियर की राजमाता और दिग्गज नेता विजयाराजे सिंधिया ने खुद इंदिरा गांधी को रायबरेली से चुनौती देने का फैसला किया। जनता पार्टी ने उन्हें टिकट देकर मैदान में उतारा। यहां तक कि खुद इंदिरा गांधी भी हैरान थीं। इंदिरा लहर थी लेकिन जनता के बीच राजमाता का बहुत आकर्षण था। उनकी सभाओं में भारी भीड़ उमड़ रही थी।
जीतने के बाद भी दिया इस्तीफा
पूर्व मंत्री गिरीश नारायण पांडे कहते हैं कि गांव-गांव में राजमाता के प्रति अगाध श्रद्धा थी, आम लोगों खासकर महिलाओं में उनके पैर छूने की होड़ रहती थी। बिना किसी व्यवस्था के सभाओं में बहुत भीड़ होती थी। रानी माँ का जनता से मिलने का तरीका भी अलग था। इसके बावजूद जनता पार्टी के पास न तो मजबूत संगठन था और न ही संसाधन। यह चुनाव इंदिरा गांधी भारी मतों से जीतीं। उन्होंने विजयाराजे सिंधिया को 1,73,654 वोटों से हराया। राजमाता विजयाराजे सिंधिया को सिर्फ 50,249 वोट ही मिल सके। हालांकि, इस चुनाव में हारने के बाद भी राजमाता का जुड़ाव रायबरेली से बना रहा और वह यहां के कार्यकर्ताओं से जुड़ी रहीं।
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1980 का रायबरेली का चुनाव इंदिरा गांधी के लिए आखिरी चुनाव था, यहां से भारी बहुमत से जीतने के बाद भी उनका मोहभंग हो गया और उन्होंने अपनी रायबरेली सीट से इस्तीफा दे दिया। दरअसल, इंदिरा ने आंध्र प्रदेश की मेंडक सीट से चुनाव भी लड़ा था। यहां भी उनकी जीत हुई। उन्होंने मेंडक सीट बरकरार रखी, जबकि रायबरेली से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 1980 में इस सीट पर हुए उपचुनाव में अरुण नेहरू समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र को हराकर सांसद बने।
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