बिजनेस संपादकीय

मोदी सरकार के दस वर्षों में बदली अर्थव्यवस्था की सूरत

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भारत इस समय अमृतकाल में है और भारत 100वें स्वतंत्रता दिवस 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने की ओर बढ़ रहा  है। ऐसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्री कह रहे हैं। सकल घरेलू उत्पाद के आकार के लिहाज से भारत इस समय विश्व की पांच बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। इन 10 वर्षों में मोदी सरकार ने कई ऐसे साहसिक फैसले लिए हैं, जिसने अर्थव्यवस्था को संरचनात्मक रूप से बदलने का कार्य किया है। चुनाव की घोषणा होने से पूर्व ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कैबिनेट की आखिरी बैठक विकसित भारत 2047 के विजन डॉक्यूमेंट पर चर्चा के लिए की है। अगले 05 वर्ष के लिए इसके लिए एक्शन प्लान क्या होगा इस पर भी मंत्रियों के साथ विमर्श किया।

मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं ने समाज के हर वर्ग को किसी ना किसी रूप में प्रभावित किया है। आर्थिक संवृद्धि हो या बुनियादी ढांचों में आमूल-चूल परिवर्तन, राष्ट्रीय सुरक्षा हो या फिर विदेश नीति, कल्याणकारी योजनाओं की बात हो या फिर सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना को नई धार देना, मोदी सरकार ने खूब वाहवाही बटोरी है। सरकार ने अपनी उपलब्धियों को इस प्रकार से वर्गीकृत किया है- गरीबों की सेवा, वंचितों को सम्मान, किसान कल्याण, नारी शक्ति को नई ऊर्जा, भारत की अमृत पीढ़ी का सशक्तीकरण,सभी को सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवा, तकनीक के क्षेत्र में भारत बन रहा 'शक्तिमान', मध्य वर्ग की जिंदगी आसान करने का अभियान, विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा का आधार राष्ट्र प्रथम, विश्व का आर्थिक केंद्र बनता भारत, भारत के विकास का इंजन बनता उत्तर पूर्व,  कारोबारी सहूलियत (ईज ऑफ डुइंग बिजनेस), बुनियादी ढांचा निर्माण की अभूतपूर्व रफ्तार, पर्यावरण की रक्षा के साथ विकास और  सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण।

एक मीडिया चैनल के कॉन्क्लेव में बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका लक्ष्य 2024 और 2019 नहीं 2047 है। प्रधानमंत्री कहते हैं, 'डीबीटी हो, बिजली, पानी, टॉयलेट जैसी सुविधाएं गरीब व्यक्ति तक पहुंचाने की योजना हो, इन सभी ने जमीनी स्तर पर एक क्रांति ला दी है। इन योजनाओं ने देश के गरीब से गरीब व्यक्ति को भी सम्मान और सुरक्षा के भाव से भर दिया है।' सरकार के प्रयासों से पिछले 10 वर्षों में करीब 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में 60 करोड़ लोग आर्थिक गतिविधियों की मुख्यधारा में शामिल हुए। 2014 से पहले भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत नाजुक थी, मुद्रास्फीति ऊंचे स्तर पर थी और राजकोषीय घाटा भी नियंत्रण से बाहर था। मोदी सरकार ने इसे पांच प्रतिशत से नीचे रोक दिया है। परन्तु कई विश्लेषक मानते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था का रोजगारविहीन विकास हो रहा है, महंगाई भी अधिक है।

महत्वपूर्ण उपलब्धियां: बोलते आंकड़े 

हम यहां सिर्फ आर्थिक उपलब्धियां और असफलताओं की ही चर्चा करेंगे। 2013 में मॉर्गन स्टेनली ने भारत को विश्व की पांच कमजोर उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की श्रेणी में रखा था। जिसमें कहा गया था कि समृद्धि को बढ़ाने के लिए यह विदेशी निवेश पर बहुत अधिक निर्भर हो गया है। आज भारत विश्व की पांच बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। 2014 से 2024 के मध्य एक भारतीय की औसत आय में लगभग 135 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2014 में विदेशी मुद्रा भंडार 292 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जोकि बढ़कर मार्च 2024 में 623 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया अर्थात 110 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई, यह विश्व में चौथा सबसे बड़ा है। निश्चित ही मोदी सरकार की योजनाओं का लाभ लाभार्थियों तक पहुंच रहा है। कोविड-19 के समय शुरू हुई मुफ्त अन्न योजना से 80 करोड़ लोगों को लाभ मिल रहा है।

नल से जल, पीएम आवास, स्वच्छ भारत, उज्ज्वला योजना जैसी कई योजनाएं हैं जिनसे एक बड़े वर्ग की जिंदगी में बदलाव आया है। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिहाज से भी कई योजनाएं चल रही हैं। स्वयं सहायता समूह के माध्यम से सरकार का लक्ष्य देश में दो करोड़ लखपति दीदी बनाने का है। छोटे उद्यमियों को भी मुद्रा योजना के जरिए सहायता मिल रही है। 6.1 करोड़ से अधिक एमएसएमई वाला क्षेत्र भी सुधारों से अब लाभान्वित हो रहा है। एमएसएमई के लिए क्रेडिट गारंटी योजना के तहत पिछले कुछ वर्षों में लगभग 05 लाख करोड़ रुपये की गारंटी मंजूर की गई है। यह 2014 से पहले के दशक में प्रदान की गई राशि से छह गुना अधिक है। 10 वर्ष पहले की अपेक्षा लोग ज्यादा तेजी से घर खरीद रहे हैं। घर खरीदने के लिए ऋण देने वालों की संख्या में बड़ी तेजी से वृद्धि हुई है। विशेष रूप से शहरी क्षेत्र में ज्यादातर घर लोग गृह ऋण लेकर खरीदते हैं। 2014 में जहां 5.39 लाख करोड़ रुपए का हाउसिंग ऋण बांटा गया था वहीं 2023 में यह 242 प्रतिशत बढ़कर 18.44 लाख करोड़ रुपए हो गया। यह लोगों की वर्तमान में व्यय करने की क्षमता और भविष्य में आय के सृजन के विश्वास को दर्शाता है। एयरपोर्ट की संख्या 2014 में 74 थी जो की दोगुना होकर 2023 में 148 हो गयी।




कुल वाणिज्यिक विमानों की संख्या 2014 के 395 से 81 प्रतिशत बढ़कर 2023 में 714 हो गई। इस दौरान भारतीय एयरपोर्ट पर कुल यात्रियों की संख्या में, अपेक्षाकृत छोटे शहरों में विमान यात्रियों की संख्या में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। यह लोगों की बढ़ी हुई आय को दर्शाता है। लोगों की बचत की आदतों में महत्वपूर्ण बदलाव हुआ है। भारतीय इक्विटी बाजार ने 2023 में 156.9 लाख नए निवेशक जोड़े, जिसमें 23.1 लाख अकेले उत्तर प्रदेश से थे, जो कि महाराष्ट्र से अधिक थी और महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक थी। अभी भी महाराष्ट्र में सबसे अधिक निवेशक हैं जिनकी संख्या 149 लाख है, जबकि उत्तर प्रदेश और गुजरात क्रमशः दूसरे और तीसरे नंबर पर आते हैं जिसमें निवेशकों की संख्या 89 और 77 लाख क्रमशः है। निश्चित रूप से अब हिंदी भाषा क्षेत्र भी वित्तीय निवेश में बेहद समझदार हो रहे हैं। वित्तीय प्रणालियों के डिजिटलीकरण और बैंकिंग आदतों में वृद्धि के कारण लोगों के बचत व्यवहार में परिवर्तन हो रहा है और लोग भौतिक परिसंपत्तियां जैसे नगदी, सोने, जमीन इत्यादि में पैसा लगाने की जगह, अधिक प्रतिफल देने वाले वित्तीय परिसंपत्तियों में अब अधिक निवेश कर रहे हैं। 2014 से 2023 के दौरान भारतीयों द्वारा खरीदकर रखे गए शेयरों और डिबेंचर के मूल्य में 1031 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, और यह 18,930 करोड़ रुपए से बढ़कर 2,14,191 करोड़ रूपया हो गया है।

फरवरी 2024 तक बाजार का पूंजीकरण 05 वर्षों में ही दोगुना होकर 4.7 ट्रिलियन डॉलर हो चुका था। म्युचुअल फंड की संपत्ति इस दौरान 378 प्रतिशत बढ़ गई।  2014 में यह 8,25,240 करोड़ रुपए से बढ़कर 2023 में 39,42,031 करोड़ रुपए हो गई। शेयर और म्युचुअल फंड में भारतीयों का निवेश लगातार बढ़ रहा है, बाजार में आम निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ ही रही है, अब वह अधिक पैसा वित्तीय परिसंपत्तियों में लगा रहे हैं। पिछले 10 वर्षों में भारतीयों की बचत जमायें तीन गुना बढ़कर 2014 के 20 लाख करोड़ रुपए से 2023 में लगभग 60 लाख करोड़ रुपए हो गई है। 2014 में मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई प्रधानमंत्री जन धन योजना, जो कि विश्व की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन की योजना थी, की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जनवरी 2024 में 51.5 करोड़ जनधन योजना के खाते थे जिसमें 2 लाख 15 हजार करोड़ रुपए से अधिक जमा थे।

पिछले 10 वर्षों में इक्विटी बाजारों में कई गुना वृद्धि हुई है। मुंबई स्टॉक एक्सचेंज का बाजार पूंजीकरण अब  विश्व का पांचवा सबसे बड़ा एक्सचेंज हो गया है, इसका बाजार पूंजीकरण चार ट्रिलियन डॉलर से अधिक का हो गया है, जो की 2014 में 1.1 ट्रिलियन डॉलर था। 2014 में बीएसई सेंसेक्स लगभग 24,000 था जो कि अब बढ़कर 74,000 को छू रहा है। म्युचुअल फंड के प्रबंधन के तहत संपत्ति पिछले 10 वर्षों में 8.25 लाख करोड़  रुपए से बढ़कर अब 50 लाख करोड़ रुपए हो गयी है, जो की 500 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्शाती है। देश में आधारिक संरचना के निर्माण में महत्वपूर्ण तेजी आई है। सरकार ने सोचे समझे ढंग से पूंजीगत व्यय में वृद्धि की है। इससे पूरी अर्थव्यवस्था में आर्थिक गतिविधियों में तेजी की संभावना बढ़ जाती है। इस प्रकार की योजनाओं में व्यापक निवेश का परिणाम यद्यपि कुछ समय बाद दिखाई देता है परंतु इसका गुणक प्रभाव अर्थव्यवस्था पर अधिक होता है।

सड़कें, बंदरगाह,एयरपोर्ट इत्यादि लंबी अवधि की परियोजनाएं हैं परंतु इससे सीमेंट, स्टील जैसे अनेक मध्यवर्ती उद्योगों में नौकरियां और निवेश बढ़ते हैं और अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करते हैं। देश में राजमार्गों की लंबाई 2014 में 91,287 किलोमीटर से बढ़कर 2023 में 1,46,145 किलोमीटर हो गई। 2014 में जहां एक दिन में 09 किलोमीटर राजमार्ग बनता था वहीं एक दिन में औसतन 36 किलोमीटर राजमार्ग अब बन रहा है। गांवों में लगभग 3.75 लाख किलोमीटर नई सड़कें बनाई गई हैं। 4-लेन राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई 2.5 गुना बढ़ गई है। हाई-स्पीड कॉरिडोर की लंबाई पहले 500 किलोमीटर थी और अब 4,000 किलोमीटर है। देश के प्रमुख बंदरगाहों पर कार्गो प्रबंधन क्षमता दोगुनी हो गई है। ब्रॉडबैंड यूजर्स की संख्या 14 गुना बढ़ गई है। देश की लगभग 02 लाख ग्राम पंचायतें ऑप्टिकल फाइबर से जुड़ चुकी हैं। गांवों में 04 लाख से ज्यादा कॉमन सर्विस सेंटर खोले गए हैं। ये रोजगार का बड़ा जरिया बन गए हैं। देश में 10,000 किलोमीटर लंबी गैस पाइप लाइन बिछाई गई है।

डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत ने बदली तस्वीर

मोदी सरकार का एक और महत्वपूर्ण सुधार डिजिटल इंडिया का निर्माण है। डिजिटल इंडिया ने भारत में जीवन और व्यवसाय को बहुत आसान बना दिया है। आज, पूरी दुनिया भारत की डिजिटल ताकत का लोहा मानती है, हर महीने औसतन 18 लाख करोड़ रुपये से अधिक का लेनदेन होता है। गांवों में भी रोजमर्रा की खरीद-बिक्री डिजिटल तरीके से हो रही है। आज, दुनिया के कुल वास्तविक समय के डिजिटल लेनदेन का 46 प्रतिशत भारत में होता है और इसका श्रेय निस्संदेह प्रधान मंत्री मोदी के दृढ़ विश्वास को जाता है। यूपीआई के जरिए हर महीने रिकॉर्ड 1200 करोड़ डिजिटल लेनदेन होते हैं। डिजिटल इंडिया ने बैंकिंग को अधिक सुविधाजनक और ऋण वितरण को आसान बना दिया है। जन धन आधार मोबाइल (जैम) की त्रिमूर्ति ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मदद की है।

मोदी सरकार अब तक डीबीटी के जरिए 34 लाख करोड़ रुपये ट्रांसफर कर चुकी है। जैम ने लगभग 10 करोड़ फर्जी लाभार्थियों को सिस्टम से बाहर कर दिया है। इससे 2.75 लाख करोड़ रुपये गलत हाथों में जाने से रोकने में मदद मिली है। डिजीलॉकर की सुविधा भी जीवन को आसान बना रही है। इसके उपयोगकर्ताओं को अब तक 06 अरब से अधिक दस्तावेज़ जारी किए जा चुके हैं। आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाते के तहत लगभग 53 करोड़ लोगों की डिजिटल हेल्थ आईडी बनाई गई हैं। मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान हमारी ताकत बन गए हैं। आज, भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन उत्पादक है। कुछ साल पहले भारत खिलौनों का आयात करता था, लेकिन आज भारत मेड इन इंडिया खिलौनों का निर्यात कर रहा है। भारत का रक्षा उत्पादन 01 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। आज चाहे देश का स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत हो, हमारी वायुसेना की ताकत बन रहा लड़ाकू विमान तेजस हो, भारत में होने जा रहा सी-295 परिवहन विमान का निर्माण हो, देश का स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत, लड़ाकू विमान तेजस जो हमारी वायुसेना की ताकत बन रहा है, सी-295 परिवहन विमान का निर्माण जो भारत में होने जा रहा है, या उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में विकसित हो रहे रक्षा गलियारे सभी एक नयी कहानी कह रहे हैं।

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (ईओडीबी) रैंकिंग में लगातार सुधार हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में 40,000 से अधिक अनुपालन हटा दिए गए हैं या सरल बना दिए गए हैं। कंपनी अधिनियम और सीमित देयता भागीदारी (एलएलपी) अधिनियम में 63 प्रावधानों को आपराधिक अपराधों की सूची से हटा दिया गया है। हमारा निर्यात लगभग $450 बिलियन से बढ़कर $775 बिलियन से अधिक हो गया है। एफडीआई प्रवाह दोगुना होकर लगभग 597 बिलियन डॉलर हो गया है। खादी एवं ग्रामोद्योग उत्पादों की बिक्री चार गुना से ज्यादा बढ़ गई है। इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) भरने वालों की संख्या 3.25 करोड़ से बढ़कर 8.25 करोड़, दोगुने से भी ज्यादा हो गई है। एस्टार्टअप आज बढ़कर 1.17 लाख से ज्यादा हो गए हैं। दिसंबर 2017 में 98 लाख लोग जीएसटी भरते थे; आज वह संख्या 1.4 करोड़ से अधिक है। 2014 से पहले के 10 वर्षों में लगभग 13 करोड़ वाहन बेचे गए थे। पिछले 10 वर्षों में ही भारतीयों ने 21 करोड़ से अधिक वाहन खरीदे हैं। वन नेशन, वन पावर ग्रिड से देश में बिजली ट्रांसमिशन में सुधार हुआ है। वन नेशन, वन गैस ग्रिड गैस आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे रहा है। केवल 05 शहरों तक सीमित मेट्रो सुविधा अब 20 शहरों में है। 25 हजार किलोमीटर से अधिक रेल पटरियां बिछाई गईं। यह कई विकसित देशों में रेलवे ट्रैक की कुल लंबाई से भी अधिक है। भारत रेलवे के 100 प्रतिशत विद्युतीकरण के बहुत करीब है। इस अवधि के दौरान भारत में पहली बार सेमी-हाई-स्पीड ट्रेनें शुरू की गईं।

आज 39 से ज्यादा रूटों पर वंदे भारत ट्रेनें चल रही हैं। अमृत भारत स्टेशन योजना के तहत 1300 से ज्यादा रेलवे स्टेशनों का काया पलट किया जा रहा है। 4.1 करोड़ से ज्यादा गरीब परिवारों को अपना पक्का घर मिल गया है। इस पहल पर करीब 06 लाख करोड़ रुपये खर्च किये गये हैं। पहली बार, 11 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों तक पाइप से पानी पहुंचा है। इस पर करीब 04 लाख करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। अब तक 10 करोड़ से अधिक उज्ज्वला गैस कनेक्शन उपलब्ध कराये जा चुके हैं। इस योजना पर मोदी सरकार ने करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये खर्च किये हैं। कोरोना वायरस महामारी फैलने के बाद से 80 करोड़ देशवासियों को मुफ्त राशन की सुविधा अब अगले 05 वर्षों के लिए बढ़ा दी गई है। आज लगभग 10 करोड़ महिलाएं स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हैं। इन समूहों को 08 लाख करोड़ रुपये के बैंक ऋण और 40,000 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता वितरित की गई है। सरकार 02 करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाने का अभियान चला रही है। नमो ड्रोन दीदी योजना के तहत समूहों को 15,000 ड्रोन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करने से देश की लाखों महिलाओं को बहुत फायदा हुआ है। सरकार ने पहली बार सशस्त्र बलों में महिलाओं को स्थायी कमीशन दिया है।

मुद्रा योजना के तहत दिए गए 46 करोड़ से अधिक ऋणों में से 31 करोड़ से अधिक ऋण अकेले महिलाओं को दिए गए हैं। पीएम-किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों को अब तक 2.8 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा मिल चुके हैं। पिछले 10 वर्षों में किसानों के लिए बैंकों से आसान ऋण में तीन गुना वृद्धि हुई है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों ने 30,000 करोड़ रुपये का प्रीमियम भरा। इसके बदले में उन्हें 1.5 लाख करोड़ रुपये के दावे मिले हैं। पिछले 10 वर्षों में किसानों को धान और गेहूं की फसल के लिए एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) के रूप में लगभग 18 लाख करोड़ रुपये मिले हैं। यह 2014 से पहले के 10 वर्षों की तुलना में 2.5 गुना अधिक है। तिलहन और दलहन उत्पादक किसानों को एमएसपी के रूप में 1.25 लाख करोड़ रुपये से अधिक मिले हैं। कृषि निर्यात 04 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचा। मोदी सरकार ने 1.75 लाख से अधिक प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र स्थापित किए हैं। अब तक लगभग 8,000 किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) भी बन चुके हैं।

कृषि में सहकारिता को बढ़ावा देने के लिए देश में पहली बार सहकारिता मंत्रालय की स्थापना की गई है। सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना शुरू की गई है। जिन गांवों में सहकारी समितियां नहीं हैं, वहां युद्ध स्तर पर 02 लाख समितियां स्थापित की जा रही हैं। मत्स्य पालन क्षेत्र में 38,000 करोड़ रुपये से अधिक की योजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं, जिससे पिछले दस वर्षों में मछली उत्पादन 95 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 175 लाख मीट्रिक टन यानि लगभग दोगुना हो गया है। मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान हमारी ताकत बन गए हैं। आज, भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन उत्पादक है। कुछ साल पहले भारत खिलौनों का आयात करता था, लेकिन आज भारत मेड इन इंडिया खिलौनों का निर्यात कर रहा है। भारत का रक्षा उत्पादन 01 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। आज चाहे देश का स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत हो, हमारी वायुसेना की ताकत बन रहा लड़ाकू विमान तेजस हो, भारत में होने जा रहा सी-295 परिवहन विमान का निर्माण हो, आज चाहे देश का स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत, लड़ाकू विमान तेजस जो हमारी वायुसेना की ताकत बन रहा है, सी-295 परिवहन विमान का निर्माण जो भारत में होने जा रहा है, या उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में विकसित हो रहे रक्षा गलियारे सभी एक नयी कहानी कह रहे हैं। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में लगातार सुधार हुआ है।

मजबूत वृहद आर्थिक स्थिरता

पिछले 10 वर्षों में आर्थिक स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है लेकिन सरकारी ऋण और राजकोषीय घाटा ऊंचे स्तर पर बना हुआ है। राजकोषीय घाटा 2023-24 में सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में 5.8 रहने का अनुमान है, जबकि 2013-14 में यह 4.4 के स्तर पर था। हांलाकि इसका बड़ा कारण कोविड-19 के कारण सरकार पर पड़ा अतिरिक्त बोझ था। वैसे तो मनमोहन सरकार को भी 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से जूझना पड़ा था जिसकी वजह से राजकोषीय घाटा बढ़ गया था, परन्तु निश्चित ही कोविड महामारी का आर्थिक प्रभाव कहीं अधिक व्यापक और गहरा था। यहां मोदी सरकार के राजकोषीय प्रबंधन की प्रशंसा करनी होगी।  सरकार ने कोविड के दौरान बहुत ही सोची समझी रणनीति के तहत मांग को बढ़ाने के लिए योजनाएं लागू कीं और अर्थव्यवस्था में अंधाधुंध नगदी नहीं डाली।जिससे घाटा नियंत्रित रहा और महंगाई भी नियंत्रित रही। जबकि अनेक विकसित देश कई वर्ष तक रिकॉर्ड महंगाई का सामना करते रहे। इसमें रिजर्व बैंक आफ इंडिया का भी मौद्रिक प्रबंधन अत्यंत सराहनीय रहा है।




 एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार के व्यय की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय 2023-24 में कुल व्यय का 28 प्रतिशत था जबकि 2013-14 में यह उसका केवल 16 प्रतिशत था। इस बीच मोदी सरकार का राजस्व व्यय 2014 से पहले की तुलना में धीमी गति से बढ़ा है। राजस्व व्यय में मोदी के कार्यकाल में 9.9 प्रतिशत वार्षिक की दर से वृद्धि हुई जबकि उससे पहले के 10 वर्षों में यह 14.2 प्रतिशत की दर से बढ़ा था। इसका बड़ा कारण राजकोषीय प्रबंधन और सब्सिडी को बेहतर ढंग से लक्षित करना रहा है। पूंजीगत व्यय 2024-25 में जीडीपी के 3.4 प्रतिशत के स्तर पर है। इससे न केवल अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी बल्कि सरकार को भी समय के साथ व्यय को सीमित करने का अवसर भी मिलेगा। एक बार निजी निवेश के गति पकड़ने के बाद सरकार पूंजीगत व्यय कम कर सकती है और अपनी वित्तीय स्थिति मजबूत करने पर विचार कर सकती है। 2013-14 में भारत की अर्थव्यवस्था की स्थिति अच्छी नहीं थी। वैश्विक वित्तीय संकट के बाद राजकोषीय घाटे और मुद्रास्फीति तथा चालू खाते के घाटे में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुइ थी। वर्ष 2012-13 में चालू खाते का घाटा जीडीपी के 05 प्रतिशत के लगभग था। इसके अलावा आर्थिक संवृद्धि को गति प्रदान करने की कोशिश में बैंकों को ऋण देने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

अक्सर ऐसी परियोजनाओं को ऋण देने को कहा गया जो टिकाऊ नहीं थीं। इसके परिणामस्वरूप फंसे हुए ऋण में वृद्धि हुई और बैंकों के एनपीए बढ़े उनकी हालत खस्ता हो गई, जिसे बाद के वर्षों में चिह्नित किया गया। बैंकों का एनपीए जो पूर्ववर्ती कांग्रेस शासन में 12 प्रतिशत से अधिक हुआ करता था, आज केवल 04 प्रतिशत या उससे भी कम है। मोदी सरकार ने वृहद आर्थिक स्थिरता को मजबूत करने को प्राथमिकता दी। राजकोषीय स्थिति को मजबूत बनाने के अतिरिक्त उसने दो महत्वपूर्ण  निर्णय लिए हैं। सरकार ने मौद्रिक नीति का मुख्य उद्देश्य मुद्रा स्फीति  को नियंत्रित करना बना दिया। मुद्रास्फीति को लक्ष्य बनाने की लचीली व्यवस्था से मूल्य स्थिरता को लेकर नीतिगत प्रतिबद्धता का मजबूत संदेश गया। दूसरा, ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) कानून सरकार ले आई जिसने शक्ति संतुलन को लेनदारों के पक्ष में कर दिया। पहली बार, बड़ी कंपनियों के प्रवर्तकों को भी नियंत्रण गंवाने का डर सताने लगा।

निश्चित तौर पर आईबीसी अभी सुधार की प्रक्रिया में है क्योंकि वह दिवालिया मामलों के निपटान में बहुत समय लगाती है। परन्तु इससे ऋण संस्कृति में सुधार हुआ है और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में उल्लेखनीय पूंजी डालने से दोहरी बैलेंस शीट के घाटे को दूर करने में मदद मिली है। आज सरकारी बैंकों की स्थिति मजबूत है और एनपीए में महत्वपूर्ण गिरावट आई है। यह भी महत्त्वपूर्ण बात है कि रिजर्व बैंक ने मुद्रा और विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन को लेकर जो उपाय किए उनसे वृहद आर्थिक स्थिरता को मजबूत बनाने में मदद मिली। पिछले 10 वर्षों में वृहद आर्थिक मोर्चे पर सुधार के बावजूद उच्च टिकाऊ वृद्धि के लिए निरंतर नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है। कोविड महामारी के कारण भारत का सरकारी व्यय और सामान्य सरकारी घाटा ऊंचे स्तर पर बना हुआ है। निश्चित ही भारत को अपने कर-जीडीपी अनुपात में सुधार करने में मदद मिली है, वस्तु एवं सेवा कर लागू होने के बाद राजस्व भी बढ़ा है, परंतू  पूरी कर प्रणाली अभी सुधार की प्रक्रिया में है।

असमान  विकास,  रोजगार और मध्यम वर्ग की समस्या

अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों और विभिन्न सरकारी एजेंसियों ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि का अनुमान 07 प्रतिशत से अधिक का रखा है। जीडीपी की वृद्धि में सबसे अधिक मदद सरकारी व्यय, इस रूप से पूंजीगत व्यय, में वृद्धि से मिली है। परंतु पिछले 05 वर्षों में आर्थिक समृद्धि एक प्रकार से असंतुलित रही है। अधिक संवृद्धि ऐसे क्षेत्र में दर्ज हुई है जिसने की एक वर्ग विशेष के लिए ही नौकरियां सृजित की हैं। पिछले 10 वर्षों में विकास का पैटर्न ऐसा रहा है जिसमें समाज के निचले वर्ग के लिए रोजगार सृजन कम हुआ है। हालांकि निर्माण क्षेत्र में हुई वृद्धि से आम मजदूरों को भी नौकरियां मिली हैं, जो कि काफी सकारात्मक है, परंतु विनिर्माण का गिरता हिस्सा चिंताजनक है। देश के सकल मूल्य वर्धन में कृषि और संबद्ध क्षेत्र, विनिर्माण, खनन, व्यापार, होटल, परिवहन और प्रसारण सेवाओं का योगदान पिछले 05 वर्षों में कम हुआ है; जबकि यही क्षेत्र आमजन के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार का सबसे अधिक सृजन करते हैं। जबकि वित्तीय सेवाएं, रियल स्टेट और वाणिज्यिक सेवाओं के हिस्से में वृद्धि हुई है। भारतीय अर्थव्यवस्था में घरेलू उत्पाद अर्थात जीडीपी वृद्धि के घटकों का विश्लेषण करने पर एक स्पष्ट विरोधाभास का पता चलता है।

समग्र आर्थिक विस्तार सराहनीय है, परन्तु निजी मांग या उपभोग में गिरावट गंभीर चिंता का विषय है। कमजोर ग्रामीण मांग के कारण उपभोग में वृद्धि सिर्फ लगभग 3.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है। यह 2002-03 के बाद से निजी खपत में सबसे धीमी वृद्धि है, जब यह घटकर 2.9 प्रतिशत रह गई थी, सिवाय कोविड महामारी (2020-21) के, इसमें 5.3 प्रतिशत की गिरावट देखी गई थी। 07-08 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को बनाए रखने के लिए, खपत बढ़नी चाहिए क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था में इसकी हिस्सेदारी 55 प्रतिशत है। उपभोग में सुस्ती भारतीय परिवारों में गंभीर वित्तीय तनाव का संकेत देता है। धनी और संपन्न परिवारों को किसी भी समर्थन की आवश्यकता नहीं है और गरीबों का ध्यान मुफ्त राशन से लेकर मुफ्त आवास और सीधे नगद हस्तांतरण तक सामाजिक कल्याण योजनाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से किया जा रहा है। यहां मध्यम आय वाले परिवारों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है।  वे न तो कर से बच सकते हैं, न ही आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों की मार से!  स्टिकी मुद्रास्फीति, सुस्त नौकरियों के बाजार और व्यययोग्य आय में धीमी वृद्धि के मिश्रित प्रभाव से स्वयं को बचाने के लिए उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। इससे उनकी वस्तुओं और सेवाओं की मांग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और बदले में निजी उपभोग की वृद्धि पर असर पड़ रहा है। गरीबों की क्रय-शक्ति में सुधार से भोजन और कपड़े जैसी आवश्यक वस्तुओं की मांग को समर्थन मिलेगा। लेकिन यह पर्याप्त नहीं होगा।

यह अपेक्षाकृत समृद्ध मध्यम आय वाले परिवार हैं जो उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुएं, शिक्षा, स्वास्थ्य और मनोरंजन सेवाओं और घरों जैसी उच्च मूल्य वाली विवेकाधीन वस्तुओं की मांग को बढ़ाते हैं। मांग या उपभोग में गिरावट को केवल कर कटौती और पीएलआई सब्सिडी जैसे आपूर्ति पक्ष के उपायों से नहीं निपटा जा सकता है। मध्यम वर्ग को आय कर में छूट देकर, विवेकाधीन वस्तुओं पर जीएसटी कम करके और आयात बाधाओं में वृद्धि के बजाय निर्यात को बढ़ाने के उपाय करके आवश्यक मांग पक्ष को समर्थन दिया जा सकता है, जिसकी उसे सख्त जरूरत है। अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ावा देने के लिए नौकरियां पैदा करना सबसे प्रभावी तरीका है और यह मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देकर ही बड़े पैमाने पर हो सकता है, जो कि बड़ी कंपनियां की तुलना में अधिक श्रम गहन होते हैं।

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हालाँकि, वे लगातार बढ़ती फाइलिंग और रिपोर्टिंग आवश्यकताओं के कारण अनुपालन की बढ़ती लागत से पीड़ित हैं। इन मुद्दों पर भी सरकार को गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता होगी। हम अपनी बढ़ती हुई श्रम शक्ति का लाभ तभी प्राप्त कर सकते हैं, जब उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, प्रशिक्षण और उत्पादक रोजगार प्राप्त हो। पिछले 10 वर्षों में सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य पर ऐसा कुछ भी गंभीरता पूर्वक कार्य नहीं किया है जोकि  इसके लिए पर्याप्त हो। सरकार ने नई शिक्षा नीति के माध्यम से आमूल चूल परिवर्तन की बात अवश्य की है,अनुसंधान पर जोर दिया है लेकिन बढ़ते हुए कार्य बल को देखते हुए यह नितांत अपर्याप्त है। शिक्षा की गुणवत्ता को सिर्फ बाजार के भरोसे छोड़ देने से पूरी अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षमता में वृद्धि नहीं हो सकती और तब अर्थव्यवस्था हमेशा ही असमान विकास का शिकार रहेगी।

 डॉ. उमेश प्रताप सिंह

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