Sunday, December 22, 2024
spot_img
spot_img
spot_imgspot_imgspot_imgspot_img
Homeदेशसोशल मीडिया पर जज पारदीवाला की सख्त टिप्पणी, बोले- कानून बनाने की...

सोशल मीडिया पर जज पारदीवाला की सख्त टिप्पणी, बोले- कानून बनाने की जरूरत

शिक्षक

नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस जेबी पारदीवाला ने रविवार को कहा कि मीडिया लक्ष्मण रेखा को लांघ रही है और इसीलिए संसद को डिजिटल और सोशल मीडिया (digital and social media) के लिए समुचित कानून बनाने पर विचार करना चाहिए। जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि डिजिटल मीडिया ट्रायल के कारण न्याय व्यवस्था की प्रक्रिया में अनुचित हस्तक्षेप होता है। उन्होंने इसके कई उदाहरण बताए। जस्टिस पारदीवाला सुप्रीम कोर्ट की उस अवकाश पीठ का हिस्सा थे, जिसने पैगंबर मुहम्मद पर विवादित टिप्पणी करने वाली पूर्व भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा को कड़ी फटकार लगाई थी।

एचआर खन्ना मेमोरियल राष्ट्रीय संगोष्ठी में वोक्स पॉपुली बनाम कानून का नियम: भारत का सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस पारदीवाला ने कहा, डिजिटल और सोशल मीडिया (digital and social media) का विनियमन विशेष रूप से संवेदनशील विचाराधीन मामलों के संदर्भ में जरूरी हैं। इस संबंध में उपयुक्त विधायी और नियामक प्रावधानों को पेश करके संसद द्वारा विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ट्रायल अनिवार्य रूप से अदालतों द्वारा की जाने वाली एक प्रक्रिया है। डिजिटल मीडिया द्वारा किया जाने वाला ट्रायल न्याय प्रक्रिया में एक अनुचित हस्तक्षेप है। ऐसा करने में मीडिया कई बार लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन करती है।

जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि आधे-अधूरे सत्य को सामने रखने वाले और न्यायिक प्रक्रिया पर बारीक नजर बनाए रखने वाले लोगों का एक वर्ग कानून के शासन के माध्यम से न्याय देने की प्रक्रिया के लिए एक वास्तविक चुनौती बन गया है। आजकल सोशल और डिजिटल मीडिया (digital and social media) पर जजों के निर्णय पर रचनात्मक आलोचनात्मक मूल्यांकन के बजाय उनके खिलाफ व्यक्तिगत राय व्यक्त की जा रही है। उन्होंने कहा, देश में कानून और हमारे संविधान को बनाए रखने के लिए डिजिटल और सोशल मीडिया को अनिवार्य रूप से विनियमित करने की आवश्यकता है। न्यायाधीशों पर उनके निर्णयों के लिए हमले एक खतरनाक माहौल को जन्म देते हैं।

जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि भारत को अब भी एक पूर्ण और परिपक्व लोकतंत्र के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। यहां कानूनी और संवैधानिक मुद्दों का राजनीतिकरण करने के लिए सोशल और डिजिटल मीडिया का अक्सर उपयोग किया जाता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सोशल मीडिया पर अर्ध-सत्य की जानकारी रखने वाले और कानून के शासन, साक्ष्य, न्यायिक प्रक्रिया और इसकी अंतर्निहित सीमाओं को नहीं समझने वाले लोग हावी हो गए हैं। गंभीर अपराधों के मामलों का हवाला देते हुए जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि सोशल और डिजिटल मीडिया की शक्ति का सहारा लेकर मुकदमा खत्म होने से पहले ही आरोपी की गलती या बेगुनाही को लेकर धारणा पैदा कर दी जाती है।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)

सम्बंधित खबरें
- Advertisment -spot_imgspot_img

सम्बंधित खबरें