लखनऊ: यदि हम विचार करें तो हमारा जीवन भी एक नाटक है। ईश्वर ने हमें जो चरित्र दिया है, उसके साथ हमें सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करना चाहिए। एक पात्र बड़ा या छोटा नहीं होता, उसका प्रदर्शन बड़ा या छोटा हो सकता है। इसलिए आपको अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए तैयार रहना चाहिए। उक्त बातें उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने लखनऊ में गुरुवार से शुरू हुए दस दिवसीय नाट्य महोत्सव में कहीं।
उत्तर प्रदेश की प्रसिद्ध नाट्य संस्था ‘दर्पण’ की हीरक जयंती के अवसर पर नाटक महोत्सव का आयोजन संगीत नाटक अकादमी के संत गाडगेजी महाराज सभागार में प्रस्तुति दी गई। उन्हें समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। इस अवसर पर दर्पण के संस्थापक प्रो. सत्यमूर्ति के नाम पर सम्मान भी दिया गया। सम्मानित होने वालों में मुंबई के गीतकार रामगोविंद, वीसी गुप्ता, विमल बनर्जी, विजय बनर्जी और विद्या सागर गुप्ता शामिल हैं, जो संस्था की स्थापना के समय से जुड़े हुए हैं।
नाटक की कहानी
समारोह के पहले दिन ‘स्वाहा’ नाटक का मंचन किया गया। दर्पण लखनऊ द्वारा प्रस्तुत नाटक ‘स्वाहा’ का लेखन व निर्देशन शुभदीप राहा ने किया है। कहानी की शुरुआत में दिखाया गया कि रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर एसपी के घर एक महिला का फोन आता है। वह बांग्लादेश की रहने वाली हैं, जो खुद एक पत्रकार हैं। वह फोन पर आर्मी ऑफिसर से कहती हैं कि आपने ’71 की जंग में हमारी जान बचाई थी। हम अभी भारत आए हैं और आपको धन्यवाद देना चाहते हैं।
दूसरे सीन में एसपी और उनके साथी के.के. बता दें, शिखा बांग्लादेश से आ रही हैं। लेकिन यह उनके बेटे मंदार के लिए उनके सेवा नियम के खिलाफ था, जो एक रॉ अधिकारी हैं, उनके घर किसी का आना। उसे और उसके गुरु जस्सी को शक है कि महिला कहीं और आईएसआई एजेंट है…
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नाटक की कहानी आगे बढ़ती है और नाटक एक नया मोड़ लेता है। अंत में, पत्रकार होने का दावा करने वाली महिला शिखा वास्तव में एक रॉ अधिकारी है और जस्सी उसका समर्थन करता है। रॉ ऑफिसर होने का दावा करने वाला मंदार असल में आईएसआई का एजेंट है। शिखा और जस्सी को पहले से ही मंदार पर शक था, उन्होंने मंदार को निशाना बनाया। यह जानकर पूर्व मेजर को बड़ा झटका लगता है और वह अपने बेटे को गोली मार देता है। यह नाटक का चरमोत्कर्ष बन जाता है। नाटक के मुख्य पात्र डॉ अनिल रस्तोगी, विकास श्रीवास्तव और दिव्या भारद्वाज थे। ज्ञात हो कि प्रो. सत्यमूर्ति ने वर्ष 1961 में कानपुर में दर्पण की स्थापना की थी।
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