Thursday, November 21, 2024
spot_img
spot_img
spot_imgspot_imgspot_imgspot_img
Homeअन्यज्ञान अमृतमहाशिवरात्रि का सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक महत्व

महाशिवरात्रि का सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक महत्व

पर्व एवं त्योहार भारतीय संस्कृति की पहचान हैं। ये केवल हर्ष एवं उल्लास का माध्यम नहीं हैं, अपितु यह भारतीय संस्कृति के संवाहक भी हैं। इनके माध्यम से ही हमें अपनी गौरवशाली प्राचीन संस्कृति के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है। महाशिवरात्रि (Mahashivratri) भी संस्कृति के संवाहक का ऐसा ही एक बड़ा त्योहार है।

शिवरात्रि प्रत्येक मास की अमावस्या से एक दिन पूर्व अर्थात कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है, जबकि महाशिवरात्रि वर्ष में एक बार आती है। यह फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। शिव पुराण की ईशान संहिता में कहा गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए थे-

फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि। शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:॥

माना जाता है कि इसी दिन प्रलय आएगा, जब प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तृतीय नेत्र की ज्वाला से नष्ट कर देंगे। इसीलिए शिवरात्रि को कालरात्रि भी कहा जाता है।

सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्त्व

महाशिवरात्रि धार्मिक एवं सांस्कृतिक रूप से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। महाशिवरात्रि के सन्दर्भ में अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार अग्निलिंग के उदय के साथ इसी दिन सृष्टि प्रारंभ हुई थी। एक पौराणिक कथा के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर भगवान शिव सर्वप्रथम शिवलिंग के स्वरूप में प्रकट हुए थे। इसीलिए इस दिवस को भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के प्रकाट्य पर्व को प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।

एक अन्य कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव का देवी पार्वती के साथ विवाह सम्पन्न हुआ था। यह उनके विवाह की रात्रि है। उन्होंने वैराग्य त्याग कर गृहस्थ जीवन अ पना लिया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने समुद्र मंथन के समय निकले कालकूट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। इससे उनका कंठ नीला हो गया था। इसीलिए उन्हें नीलकंठ नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इस घातक विष के कारण भगवान शिव को ताप चढ़ गया था। इसे उतारने के लिए उनके मस्तक पर बेल पत्र रखा गया, क्योंकि बेल पत्र शीतल गुण वाला होता है। इससे उन्हें संतुष्टि प्राप्त हुई। तभी से शिवलिंग पर बेल पत्र चढ़ाने की परंपरा आरंभ हुई। एक कथा के अनुसार इस रात्रि भगवान शिव ने संरक्षण एवं विनाश के नृत्य का सृजन किया था। इसलिए भी यह रात्रि विशेष है।

महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्त्व

महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्व है। माना जाता है कि इस रात्रि ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मानव की आंतरिक ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाती है। मान्यता है कि यह ऊर्जा मनुष्य को आध्यात्मिक शिखर तक ले जाने में सहायक सिद्ध होती है। इसलिए इस रात्रि में भगवान शिव की पूजा- अर्चना करने का अत्यंत महत्त्व है। पूजा के समय भक्त सीधा बैठता है तथा उसकी रीढ़ की हड्डी सीधी होती है। इसके कारण उसकी ऊर्जा उसके मस्तिष्क की ओर जाती है। इससे उसे शारीरिक ही नहीं, अपितु मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति भी प्राप्त होती है। भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय है। यह मंत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इस मंत्र का संबंध पंच महाभूतों भूमि, गगन, वायु अग्नि एवं नीर से माना जाता है। इस मंत्र का निरंतर जाप करने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। इससे मनुष्य का आत्मबल बढ़ता है।

धर्म ग्रंथों के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा- अर्चना करने से वे प्रसन्न होकर अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं। शिवरात्रि का महोत्सव एक दिवस पूर्व ही प्रारंभ हो जाता है। भगवान शिव के मंदिरों में रात्रि भर पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त रात्रिभर जागरण करते हैं एवं सूर्योदय के समय पवित्र स्थलों पर स्नान करते हैं। नदी तटों विशेष कर गंगा के तटों पर भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। स्नान के पश्चात भगवान शिव के मंदिरों में पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त शिवलिंग की परिक्रमा करते हैं।

तत्पश्चात भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। शिवलिंग का जलाभिषेक अथवा दुग्धाभिषेक भी किया जाता है। शिवलिंग पर जल से जो अभिषेक जाता है, उसे जलाभिषेक कहा जाता है। इसी प्रकार शिवलिंग पर दुग्ध से जो अभिषेक किया जाता है, उसे दुग्धाभिषेक कहा जाता है। मधु से भी शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। इसके अतिरिक्त शिवलिंग पर सिंदूर लगाया जाता है एवं सुगंधित धूप जलाई जाती है। दीपक भी जलाया जाता है। उस पर फल, अन्न एवं धन चढ़ाया जाता है। उस पर बेल पत्र एवं पान के पत्ते चढ़ाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त वे वस्तुएं भी भगवान शिव को चढ़ाई जाती हैं, जो उन्हें प्रिय हैं।

इनमें धतूरा एवं धतूरे के पुष्प सम्मिलित हैं। मुक्तिदायिनी गंगा के जल का भी विशेष महत्व है, क्योंकि गंगा देवलोक से सीधी भगवान शिव की जटा पर ही उतरी थी। इसके पश्चात ही वह पृथ्वी लोक में उतरी एवं प्रवाहित हुई। इसलिए सभी नदियों में गंगा का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। भक्तजन महाशिवरात्रि के दिन उपवास भी रखते हैं। कुछ लोग निर्जल रहकर भी उपवास करते हैं। उपवास से तन एवं मन दोनों ही शुद्ध होते हैं। शुद्ध मन में ही तो भगवान वास करते हैं। कई स्थानों पर भगवान शिव की बारात भी निकाली जाती है। इसमें कलाकार शिव एवं पार्वती का रूप धारण करते हैं। बारात में सम्मलित लोग शरीर पर भस्म लगाए हुए होते हैं। वे नाचते गाते हुए शिव एवं पार्वती के रथ के पीछे चल रहे होते हैं। भक्तजन इसमें भाग लेते हैं।

महिलाओं के लिए विशेष है शिवरात्रि

शिवरात्रि का महिलाओं के लिए विशेष महत्व है। विवाहित महिलाएं व्रत रखकर अपने पति की दीर्घायु एवं सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं, जबकि अविवाहित युवतियां भगवान शिव से अपने लिए सुयोग्य वर मांगती हैं। भगवान शिव को आदर्श पति के रूप में माना जाता है। इसलिए युवतियां सुयोग्य वर के लिए सोलह सोमवार का व्रत भी करती हैं। मान्यता है कि सोलह सोमवार का व्रत करने से सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।

भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग

महाशिवरात्रि पर ज्योतिर्लिंग पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग हैं अर्थात प्रकाश के लिंग हैं। ये स्वयम्भू के रूप में जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है स्वयं उत्पन्न। ये बारह स्थानों पर ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं। इनमें उत्तराखंड में हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तर प्रदेश के ही काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, बिहार के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग, गुजरात के काठियावाड़ में स्थापित सोमनाथ शिवलिंग, मध्यप्रदेश के उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, मध्यप्रदेश के ही ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर स्थापित ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग, गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र के नासिक के समीप त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र के ही औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गांव में स्थापित घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग, चेन्नई में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित श्री शैल मल्लिकार्जुन शिवलिंग एवं चेन्नई में ही रामेश्वरम् त्रिचनापल्ली समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग सम्मिलित हैं। शिवरात्रि एवं महाशिवरात्रि आर यहां भक्तजनों का तांता लग जाता है। वे ज्योतिर्लिंग के दर्शन करके आध्यात्मिक लाभ अर्थात पुण्य प्राप्त करते हैं।

यह भी पढ़ेंः-कर्नाटक के डिप्टी CM डीके शिवकुमार को SC से बड़ी राहत, निरस्त हुआ मनी लॉड्रिंग मामला

पुराणों के अनुसार आध्यात्मिक जीवन की पूर्णता प्राप्त करने के लिए भगवान शिव के इन बारह ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने अति आवश्यक हैं। मान्यता है कि इन सभी बारह स्थानों पर भगवान शिव ने स्वयं प्रकट होकर दर्शन दिए थे। इसीलिए यहां ये ज्योतिर्लिंग उत्पन्न हुए हैं।

भारत के अतिरिक्त उन देशों में भी शिवरात्रि का पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाता है, जहां हिन्दू लोग निवास करते हैं। भगवान शिव मोक्षदायिनी माने जाते हैं। इसलिए यह त्योहार भी मनुष्य को पुण्य कर्मों के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है।

-डॉ. सौरभ मालवीय
(लेखक- लखनऊ विश्वविद्यालय में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में एसोसिएयट प्रोफेसर)

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)

सम्बंधित खबरें
- Advertisment -spot_imgspot_img

सम्बंधित खबरें