शर्म अल-शेखः ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप-27) में मंगलवार को कड़ी कार्रवाई पर बल दिया गया। गरीब देशों ने धनी राष्ट्रों और तेल कम्पनियों को ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि प्रदूषकों को जलवायु परिवर्तन के लिए उन्हें भुगतान करना होगा। साथ ही उन्होंने ग्लोबल कार्बन टैक्स लगाने की भी मांग की। एक बयान में कहा गया कि एक तरह से तेल कम्पनियां और अमीर देश मुनाफा कमा रहे हैं, वहीं छोटे द्वीपीय राष्ट्रों की हालत खराब होती जा रही है। इन राष्ट्रों ने कहा कि अमीर राष्ट्र उनके अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं। अफ्रीकी राज्यों ने इसके लिए और अधिक अंतरराष्ट्रीय फंड की भी मांग की।
बारबाडोस के प्रधानमंत्री मिया मोटले जैसे नेताओं ने कहा कि यह समय जीवाश्म ईंधन कम्पनियों द्वारा जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान को लेकर गरीब देशों को आर्थिक योगदान करने का है। वहीं, हाल के महीनों में कार्बन मुनाफे पर अप्रत्याशित कर के विचार ने तेल और गैस की बड़ी कम्पनियों की भारी कमाई के बीच तनाव उत्पन्न कर दिया है, जबकि उपभोक्ताओं को रोजमर्रा के जीवन में तेल के दाम चुकाने में कमर टूटी जा रही है।
उन्होंने आगे कहा कि अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन में ऐसा पहली बार है कि जब प्रतिनिधि विकासशील देशों की इस मांग पर चर्चा कर रहे हैं कि सबसे अमीर, सबसे प्रदूषणकारी देश पर्यावरण को क्षति पहुंचाने के लिए ज्यादा जिम्मेदार हैं। इसलिए धनी और विकसित देशों को इसके लिए मुआवजे का भुगतान करना चाहिए। उधर, लंदन में भी पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने मंगलवार को इंग्लैंड के सबसे व्यस्त राजमार्ग पर यातायात अवरुद्ध कर जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को समाप्त करने की मांग की।
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने सोमवार को अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की प्रगति की सराहना की। फ्रांस, भारत, दक्षिण अफ्रीका, सेनेगल और इंडोनेशिया नवीकरणीय ऊर्जा की ओर आगे बढ़ रहे हैं। मैक्रों ने गहरे समुद्र में खनन पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया और कहा कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के कारण ऊर्जा और खाद्य संकट के बावजूद जलवायु को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।