Himachal Pradesh, शिमला: हिमाचल प्रदेश की खराब आर्थिक स्थिति को लेकर काफी हंगामा मचा हुआ है। विपक्षी दल भाजपा से लेकर हर कोई इस मुद्दे पर लगातार सत्तारूढ़ सुक्खू सरकार को घेर रहा है। इस बीच मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने राज्य की खराब वित्तीय स्थिति पर दिए अपने बयान से पलटी मार ली है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि हिमाचल प्रदेश में कोई आर्थिक संकट नहीं है और राज्य सरकार ने पहले दिन से ही राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में काम किया है, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं।
सरकार उठा रही बड़े कदम
मुख्यमंत्री सुक्खू ने रविवार को शिमला में एक कार्यक्रम के दौरान पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में कहा कि राज्य सरकार 70 वर्ष से अधिक आयु के 27 हजार पेंशनरों के बकाए का भुगतान कर रही है और सरकारी कर्मचारियों को 7 प्रतिशत की दर से महंगाई भत्ता दिया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल प्रदेश को आत्मनिर्भर और समृद्ध राज्य बनाने के लिए सरकार सुधारात्मक कदम उठा रही है। जब सुधार किए जाते हैं, तो ऐसे फैसले थोड़े समय के लिए बाधा उत्पन्न करते हैं।
इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य में आर्थिक संकट है। हम व्यवस्थित रूप से वित्तीय व्यवस्था को ठीक कर रहे हैं और वित्तीय अनुशासन का पालन करते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि जो बिजली का बिल दे सकता है, उसे मुफ्त बिजली बिल क्यों दिया जाए? जो पानी का बिल दे सकता है, उसे मुफ्त पानी क्यों दिया जाए। सुक्खू ने कहा कि भाजपा प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर लोगों से झूठ बोल रही है और विधानसभा में भी हर रोज अनावश्यक हंगामा कर रही है। मुख्यमंत्री ने भाजपा को इस मुद्दे पर थोड़ा अध्ययन करने की सलाह भी दी है।
पहले ही दो महीने का वेतन-भत्ते छोड़ने का ऐलान कर चुके हैं मुख्यमंत्री
दरअसल, तीन दिन पहले शिमला में विधानसभा के चल रहे मानसून सत्र के दौरान मुख्यमंत्री सुक्खू ने प्रदेश की खराब वित्तीय स्थिति का हवाला देते हुए अपने और मंत्रियों तथा मुख्य संसदीय सचिवों के वेतन-भत्ते दो महीने के लिए टालने का ऐलान किया था। इस पर सियासी बवाल मचा हुआ है। विपक्षी दल भाजपा इस मुद्दे पर सुक्खू सरकार पर आक्रामक है। नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने भी सरकार पर कर्मचारियों के जीपीएफ को गिरवी रखकर कर्ज लेने का बड़ा आरोप लगाया है।
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अब मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का नया बयान आया है कि हिमाचल प्रदेश में कोई वित्तीय संकट नहीं है बल्कि एक अनुशासित और सुधारात्मक कदम के रूप में उन्होंने अपना, मंत्रियों और सीपीएस का वेतन और भत्ते रोकने का फैसला किया था और इसका राजनीतिकरण किया जा रहा है।
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