मोक्ष प्रदायी है चार धाम यात्रा

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Gangotri Shrine

Char Dham Yatra, देवभूमि उत्तराखण्ड भारत का एक प्रमुख पर्यटक और दर्शनीय स्थल है, यहां पर प्रति वर्ष लाखों की संख्या में लोग घूमने के लिए आते हैं। इसके अलावा उत्तराखण्ड धार्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण स्थल है। उत्तराखण्ड में गंगोत्री, यमुनोत्री, बदरीनाथ, केदारनाथ धाम स्थित है। इन चारों धामों की पवित्रता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इनकी यात्रा को मोक्ष प्रदायी बताया गया है। हिंदू धर्म का अनुसरण करने वाले सभी लोग अपने जीवन में एक न एक बार चारों धामों की यात्रा अवश्य करना चाहते हैं। यहां की यात्रा करने से न सिर्फ समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है, बल्कि मोक्ष का द्वार भी आपके लिए खुल जाता है।

उत्तराखण्ड भारत का ऐसा राज्य है, जहां पर ऊंची-ऊंची पर्वत श्रृंखलाएं, नदियां व झरने प्राकृतिक सुषमा का दीदार कराते हैं और इसकी खूबसूरत वादियां देखकर आपको लगेगा कि आप स्वर्ग में आ गए हैं। उत्तराखण्ड, जिसे अक्सर अपनी लुभावनी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व के कारण “देवताओं की भूमि” कहा जाता है, भारत का एक उत्तरी राज्य है। राजसी हिमालय पर्वतों में बसा उत्तराखण्ड विविध परिदृश्यों, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों का स्थान है। ऊंची चोटियों, हरे-भरे जंगलों और प्राचीन नदियों सहित इसकी अनूठी भौगोलिक विशेषताओं ने सदियों से यात्रियों, तीर्थयात्रियों और साहसिक उत्साही लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है।

गंगोत्री तीर्थ

चारों ओर वनाच्छादित पर्वतों से घिरी गंगा के तेज कल-कल, छल-छल से मुखरित गंगोत्री का सौन्दर्य भारतीयों को ही नहीं, विदेशी पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां प्रति वर्ष हजारों पर्यटक आते हैं, लगभग 3,140 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गंगोत्री ही वह स्थल है, जहां से हिमराशि पिघल कर गंगा-नदी के रूप में पर्वतमालाओं के गहन मार्गों से होकर बहती है। अत्यधिक ऊंचाई होने के कारण गंगोत्री में सर्दी अधिक पड़ती है। नवम्बर से यहां बर्फ जमने लगती है, जो अप्रैल में ही पिघल पाती है। अतः गंगोत्री के पर्यटन के लिए अप्रैल से जून तक का मौसम अच्छा रहता है। जुलाई-अगस्त में वर्षा अधिक होती है, फिर सितंबर से अक्टूबर तक का समय भी पर्यटन के लिए उपयुक्त है। गंगोत्री में प्राकृतिक सुषमा के साथ-साथ अनेक मंदिर तथा कुण्ड भी हैं। कुण्डों के नाम सूर्य, विष्णु, ब्रह्मा आदि देवताओं के नाम पर रखे गए हैं। कुछ प्रमुख दर्शनीय स्थल इस प्रकार हैं। हरी-भरी रमणीय प्रकृति के मध्य स्थित है गंगा देवी का मंदिर। एक किवदंती के अनुसार, पांडवों ने महाभारत की समाप्ति पर प्रायश्चित स्वरूप इस मंदिर का निर्माण कराया था।

एक अन्य मतानुसार शंकराचार्य ने यहां गंगा देवी की मूर्ति स्थापित की थी, बाद में 18वीं सदी में एक गोरखा अधिकारी ने वहां मंदिर बनवा दिया था। आजकल इस मंदिर की देखरेख स्थानीय पंडों द्वारा की जाती है। गंगा देवी के मंदिर के निकट ही भैरव नाथ मंदिर है। कहा जाता है कि भागीरथ ने यहीं बैठकर कठोर तपस्या की थी। मंदिर में एक शिला है, जिसे ‘‘भागीरथ शिला’’ कहते हैं, यहां अनेक लोग ‘‘पिंड दान’’ करने आते हैं। भागीरथ शिला से कुछ ही दूरी पर रुद्र शिला है। पौराणिक कथाओं के आधार पर शिव ने यहां प्रकृति से भरपूर सौंदर्य बिखेर रखा है। यहां से बलखाती गंगा का प्राकृतिक सौन्दर्य देखते ही बनता है।

रुद्र शिला के समीप गंगा केदार गंगा से मिलती है। आगे जाकर यह धारा एक पत्थर के बीच से होकर लगभग 15 मीटर नीचे प्रपात के रूप में गिरती है, यह ‘‘गौरी कुण्ड’’ कहलाता है। गंगा की धारा एक शिवलिंग के ऊपर प्रपात के रूप में गिरती है। संभव है कि इसी प्राकृतिक दृश्य को देखकर किसी सहृदय ने शिव द्वारा अपनी जटाओं में गंगा धारण की कल्पना की हो, कुछ लोग गंगा का उद्गम इसी को मान लेते हैं। मां गंगा का वास्तविक उद्गम गौरीकुण्ड से 18 किलोमीटर और ऊपर श्रीमुख पर्वत पर बने गौमुख के आकार के एक कुण्ड से होता है। गौमुख को धारा देखते ही बनती है। यहां एक ग्लेशियर वर्ष भर तैरता रहता है। कहा जाता है कि इसी ग्लेशियर की बर्फ पिघल कर गंगा की क्षीण धारा में बदल जाती है। इसके आस-पास चीड़ व देवदार के वृक्ष हैं, जिनसे इस स्थल का सौन्दर्य देखते ही बनता है।

गंगोत्री जाने वाले पर्यटकों को अपने साथ उचित मात्रा में गर्म कपड़े, कुछ आम बीमारियों की दवाइयां, थर्मस, उबले पानी की बोतल आदि जरूर ले जाना चाहिए। चार्ट, कंबल भी रखना न भूलें। गंगोत्री जाने का निकटतम हवाई अड्डा ‘जौलीग्रांट’’ है, जो ऋषिकेश से 18 किमी दूर है। ऋषिकेश से मिनी बस, बस या टैक्सी से गंगोत्री पहुंचा जा सकता है। ऋषिकेश से गंगोत्री 249 किमी की दूरी पर स्थित है। ऋषिकेश के लिए देश के मुख्य नगरों से रेल सेवाएं उपलब्ध हैं। गंगोत्री सड़क मार्ग द्वारा उत्तर काशी, टेहरी तथा ऋषिकेश से जुड़ा हुआ है। वहां से देश के अन्य मार्गों में आसानी से जाया जा सकता है। गंगोत्री में पर्यटकों के ठहरने के लिए समुचित व्यवस्था नहीं है। यहां एक ट्रेवलर्स लाॅज है, जिसमें सीमित स्थान है। अतः पर्यटकों को रास्ते में पड़ाव जैसे रुद्रप्रयाग, गौरी कुण्ड आदि में ही डालना चाहिए।

यमुनोत्री तीर्थ

समुद्र तल से 3,291 मीटर की ऊंचाई पर बंदरपूंद नामक उन्नत शिखर के पश्चिमी किनारे पर यमुनोत्री तीर्थ स्थित है। यह शिखर सदैव बर्फ से ढका रहता है। ठण्डे, गर्म पानी के अनेक कुण्डों से सुशोभित यमुनोत्री को यमुना नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। शायद इसी कारण इस क्षेत्र का नाम यमुनोत्री पड़ा है। यमुनोत्री भ्रमण के लिए मई-जून का समय अनुकूल होता है। इन दिनों यहां गुलाबी सर्दी पड़ती है। अतः हल्के ऊनी कपड़ों से काम चल जाता है, किंतु सितंबर से अक्टूबर के बीच यहां भारी ऊनी वस्त्रों की जरूरत पड़ती है। जुलाई-अगस्त में यहां वर्षा के कारण भ्रमण करना उचित नहीं है। इसी प्रकार नवम्बर से अप्रैल तक यहां बर्फ जमी रहने के कारण पर्यटन करना ठीक नहीं है। इन दिनों मार्ग भी प्रायः अवरुद्ध रहता है। केदारनाथ, गंगोत्री, ऋषिकेश, मंसूरी, बदरीनाथ, देहरादून, कोटद्वार, नैनीताल आदि स्थानों से यमुनोत्री के लिए बसें चलती हैं। बसें हनुमान चट्टी पर पर्यटकों को उतारती हैं। हनुमान चट्टी से पर्यटकों को 13 किलोमीटर पैदल चलकर यमुनोत्री पहुंचना पड़ता है। हनुमान चट्टी और यमुनोत्री के बीच लगभग 07 किलोमीटर के अंतराल पर जानकीबाई चट्टी से यमुनोत्री का भ्रमण करके उसी दिन लौटा जा सकता है। जानकी बाई चट्टी में ट्रेवलर्स लॉज और लोक निर्माण विभाग के निरीक्षण भवन में ठहरा जा सकता है। जो यात्री यमुनोत्री में ही ठहर कर पर्यटन का आनंद लेना चाहते हैं, वे यमुनोत्री में धर्मशालाओं या वन विभाग के विश्राम गृह को अपना आवास बना सकते हैं।

यमुनोत्री के प्राकृतिक सौन्दर्य का केन्द्र है यमुना नदी का उद्गम स्थल। इस स्थल पर हमेशा बर्फ जमी रहती है। हनुमान गंगा तथा टोंस नदियों का जल निर्गम क्षेत्र भी यही है। हिमाच्छादित ऊंचे-ऊंचे पर्वतों का अपना अलग ही आकर्षण है। यमुनोत्री में यमुना देवी का मंदिर भी है। मंदिर के निकट गरम पानी के कई स्रोत हैं। यह पानी विभिन्न कुण्डों में चला जाता है। मुख्य मंदिर में यमुना देवी के रूप में मूर्ति प्रतिष्ठित है। यमुनोत्री के समस्त कुण्डों में सूर्य कुण्ड का विशिष्ट स्थान है। इन कुण्डों का पानी अपेक्षाकृत अधिक गरम रहता है। अनेक पर्यटक चावल, आलू आदि कपड़े में बांधकर इसमें उबाल लेते हैं। पर्यटकों के लिए यह आनंददायक अनुभव होता है। जानकी बाई कुण्ड का पानी गुनगुना है। इस कुण्ड के जल में स्नान करने से यात्रियों की थकान पूरी तरह उतर जाती है।

केदारनाथ तीर्थ

चार धाम यात्रा शुरू पहले दिन रिकॉर्ड 32 हजार श्रद्धालुओं ने केदारनाथ के दर्शन किए थे, जिसके बाद से लगातर श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला जारी है। केदारनाथ के कपाट खुलने के बाद पुष्कर सिंह धामी अपनी पत्नी के साथ दर्शन के लिए पहुंचे। इन चारों धामों पर दिन का तापमान 0 से 3 डिग्री दर्ज किया जा रहा है, वहीं रात में पारा माइनस में पहुंच रहा है। इसके बावजूद केदारनाथ धाम से 16 किमी पहले गौरीकुंड में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। यहां करीब 1,500 कमरे हैं, जो भरे हुए हैं। रजिस्टर्ड 5,545 खच्चर बुक हो चुके हैं। हरिद्वार और ऋषिकेश में 15 हजार से ज्यादा यात्री पहुंच चुके हैं। चार धाम यात्रा के लिए अब तक 22.15 लाख से ज्यादा श्रद्धालु पंजीकरण करा चुके हैं। पिछले साल रिकॉर्ड 55 लाख लोगों ने दर्शन किए थे। केदारनाथ पर्यटन के लिए सबसे अच्छा मौसम मई-जून और सितम्बर-अक्टूबर के महीनों में रहता है। केदारनाथ मंदिर एक शिव मंदिर है। यह मंदिर मंदाकिनी घाटी के सिरे पर बना है। केदारेश्वर व नंदी के अतिरिक्त इस मंदिर में पार्वती, गणेश, पांडव, कुंती आदि की मूर्तियों में भी शिल्पकला का सौन्दर्य देखा जा सकता है।

केदारनाथ धाम स्थित मंदाकिनी घाटी की सुंदरता बरबस ही पर्यटकों को मुग्ध कर देती है। यह घाटी केदारनाथ मंदिर के निकट ही है। केदारनाथ धाम में गांधी सरोवर नामक विशाल तालाब है। प्राचीनकाल में इसे चेरावादी तालाब कहते थे, किंतु 1948 में महात्मा गांधी की राख को इसी तालाब में विसर्जित किया गया था। तब से इसे गांधी सराबर की संज्ञा दी जाने लगी है। इसी सरोवर से मंदाकिनी नदी का उद्गम हुआ है। वासुकि ताल झीलनुमा ताल है। यह केदारनाथ से लगभग 04 किमी की दूरी पर स्थित है। इसका प्राकृतिक सौन्दर्य पर्यटकों को लुभाने में सक्षम है। केदारनाथ तक केवल सड़क मार्ग से ही पहुंचा जा सकता है। ऋषिकेश, हरिद्वार, कोटद्वार, काठगोदाम, बद्रीनाथ, नैनीताल, गंगोत्री आदि स्थानों से बसे गौरीकुण्ड तक ले जाती हैं। इसके आगे की 14 किमी की दूरी पर्यटकों को पैदल तय करनी पड़ती है। यह चढ़ाई दुर्गम तथा कष्टदायक होने के बावजूद यहां के सुखद और स्वच्छ वातावरण के कारण पर्यटक आसानी से तय कर लेते हैं, वैसे इस यात्रा के लिए किराए की डंडी या घोड़े का उपयोग किया जा सकता है।

केदारनाथ दिल्ली से 346 किमी रुद्रप्रयाग से 84 किमी तिलवाड़ा से 61 किमी दूरी पर स्थित है। केदारनाथ में पर्यटकों के ठहरने के लिए होटल, लाॅज तथा धर्मशालाओं की पर्याप्त व्यवस्था है। केदारनाथ जाने के लिए देहरादून में जॉली ग्रांट एयरपोर्ट सबसे नजदीक एयपोर्ट है। यह केदारनाथ से लगभग 239 किमी दूर स्थित है। ट्रेन के माध्यम से यहां जाने के लिए आपको हरिद्वार जाना होगा। यहां हरिद्वार से सड़क मार्ग या फिर हेलीकॉप्टर के माध्यम से आप केदारनाथ धाम पहुंच सकते हैं। बस या सड़क मार्ग से जाने के लिए आप हरिद्वार से रूद्रप्रयाग और फिर रूद्रप्रयाग से केदारनाथ जा सकते हैं। अगर आप अपनी कार, टैक्सी या बाइक से केदारनाथ जाना चाहते हैं, तो आप दिल्ली से कोटद्वार पहुंचकर रूद्रप्रयाग पहुंचे, यहां से आप केदारनाथ दर्शन करने आ सकते हैं।

बदरीनाथ तीर्थ

अलकनंदा और ऋषिगंगा नामक नदियों के संगम पर स्थित बदरीनाथ नर और नारायण पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ है। आज यह एक पर्यटन स्थल के रूप में काफी प्रसिद्ध है। यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य पर्यटकों के मन को मोह लेता है। बदरीनाथ जाने से पूर्व पर्यटकों को हैजे का टीका अवश्य लगवा लेना चाहिए और उसका प्रमाण पत्र अपने पास रखना चाहिए। बदरीनाथ पर्यटन के लिए मई-जून तथा सितंबर-अक्टूबर का समय अच्छा रहता है। इन दिनों यहां का सुहावना मौसम रहता है। गर्मियों में भी ऊनी वस्त्र अवश्य ले जाने चाहिए। बदरीनाथ का निकटतम हवाई अड्डा जौली ग्रांट है, जो बदरीनाथ से 315 किमी दूर है। यहां से बदरीनाथ जाने के लिए बस तथा टैक्सियां मिलती हैं। इसके अतिरिक्त देहरादून और हरिद्वार तक रेल मार्ग द्वारा पहुंच कर सड़क मार्ग से बदरी मार्ग पहुंच सकते हैं। बदरीनाथ दिल्ली-ऋषिकेश तथा इस क्षेत्र के अन्य केंद्रों के साथ सड़क मार्ग से जुड़ा है। ऋषिकेश से बदरीनाथ के लिए नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं। बदरीनाथ का मुख्य आकर्षण है बदरीनाथ मंदिर।

यह मंदिर अलकनन्दा नदी के बाएं तट पर स्थित है। बदरीनाथ मंदिर के ठीक सामने अलकनंदा नदी के दाएं किनारे पर गरम पानी का एक झरना है, इसे तृप्त कुण्ड कहते हैं। बदरीनाथ के ठण्डे वातावरण में इस झरने के गरम पानी से स्नान करना सुखद प्रतीत होता है। वासुधारा काफी ऊंचाई से गिरने वाला एक रमणीय झरना है। यह बदरीनाथ से कुछ ही दूरी पर स्थित है। यहां से भारत की सीमा पर स्थित माणा गांव केवल चार-पांच किमी दूर ही रह जाता है। व्यास गुफा माणा गांव में स्थित है। मान्यता है कि महर्षि व्यास ने विभिन्न पुराणों की रचना इसी गुफा में की थी। पर्यटन की दृष्टि से हेमकुण्ड का प्राकृतिक सौन्दर्य अनुपम है। यह हरे-भरे वृक्षों से घिरी एक झील है। झील का शांत और स्वच्छ जल देखकर वहां से हटने की इच्छा नहीं होती। सिक्ख लोग हेमकुण्ड को अपना पवित्र तीर्थ स्थल मानते हैं। पर्वतारोही फ्रैंक स्मिथ ने फूलों की घाटी की खोज की थी। जून से सितम्बर तक यह घाटी नाना प्रकार के रंग-बिरंगे फूलों से भरी रहती है। घाटी के एक ओर स्थित घोर घुंगी पर्वतमालाएं और आकाश में भूरे-भूरे बादलों के मनोहारी दृश्य देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। यह घाटी लगभग 30 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली है। तेजी से बहता पुष्पावती झरना इस घाटी को दो भागों में बांटता है।

फूलों की यह अद्भुत घाटी देखने के लिए प्रति वर्ष हजारों पर्यटक आते हैं। यह घाटी केवल भारतीय पर्यटकों के लिए ही नहीं, विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केन्द्र रही है। इस घाटी के लिए गोविंदघाट से रास्ता जाता है। गोविंद घाट से लगभग 14 किमी दूर घंघरिया से करीब एक किमी आगे जाकर यह रास्ता दो भागों में बंट जाता है, इसके बाएं रास्ते से फूलों की घाटी पहुंचा जा सकता है और दाएं रास्ते से हेमकुण्ड। बदरीनाथ में पर्यटकों के आवास के लिए मंदिर समिति का अतिथि गृह, लोक निर्माण विभाग का निरीक्षण गृह, डी.जी.बी.आर का विश्रामगृह, बिड़ला अतिथिशाला आदि के अलावा होटलों और धर्मशालाओं की कमी नहीं है। आप अपनी सुविधानुसार कहीं भी ठहर सकते हैं। हाँ, सरकारी आवासों में असुविधा से बचने के लिए पहले ही आरक्षण करा लेना अच्छा रहता है।

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चार धाम जाने से पहले ये बातें हैं आपके लिए महत्वपूर्ण
. चार धाम अप्रैल से नवंबर की शुरुआत तक, केवल छह महीने के लिए खुलता है और अगले छह महीने तक बंद रहता है।
. मानसून के मौसम (जुलाई-अगस्त) के दौरान यात्रा करने से बचने की कोशिश करें क्योंकि भारी बारिश से सड़क के अवरुद्ध होने और भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती है।
. यात्रा के दौरान गर्म और ऊनी कपड़े साथ रखें क्योंकि इस क्षेत्र का मौसम हमेशा ठंडा रहता है और ऊंचाई पर तो ठंड ज्यादा बढ़ जाती है।
. हमेशा अपना मूल पहचान पत्र वोटर आईडी कार्ड, आधार कार्ड ड्राइविंग लाइसेंस (इनमे से कोई एक) साथ रखें। अपनी प्राथमिक चिकित्सा किट ले जाएं।
. उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रो में सूर्यास्त के बाद ड्राइविंग की अनुमति नहीं है, अतः सूर्यास्त के बाद ड्राइविंग करने से बचें।
. प्रस्थान के कम से कम एक या दो महीनों पूर्व अपना चार धाम होटल्स या पैकेज को प्री-बुक कर लें।
. चार धाम यात्रा मार्ग पर लगभग सभी होटल बुनियादी हैं और केवल कुछ एक डीलक्स श्रेणी के हैं। सभी होटलों ने उचित स्वच्छता बनाए रखी है और मूलभूत सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हैं लेकिन यह सलाह दी जाती है कि इन होटलों की किसी भी स्टार श्रेणी से तुलना न करें।
. पहाड़ियों पर पॉलीबैग के उपयोग और प्रकृति को गन्दा करने से बचें। चार धाम मंदिर, विशेष रूप से केदारनाथ धाम सभी ऊंचाई पर स्थित हैं और धाम तक जाना एक बहुत ही परीक्षण और शारीरिक रूप से भीषण कार्य माना जाता है।
. चारधाम यात्रा से पहले उचित स्वास्थ्य जांच करा लें।

ज्योतिप्रकाश खरे

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