Sunday, November 24, 2024
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Homeअन्यनयी सरकार की आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियाँ

नयी सरकार की आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियाँ

एनडीए केंद्र में ऐतिहासिक तीसरी बार सत्ता में लौटा है, नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन भाजपा खुद 272 के बहुमत के निशान से कम हो गई है। इसका अर्थ है कि पुनः वास्तविक अर्थों में एक गठबंधन सरकार होगी। एग्ज़िट पोल में जिस तरह से भाजपा और एनडीए को भारी बहुमत से जीतने का अनुमान था,शेयर मार्केट भी बूम बूम कर गया, क्योंकि आर्थिक (economic) सुधारों को व्यापक स्तर पर आगे बढ़ाए जाने की संभावना बढ़ गयी थी। लेकिन जैसे ही परिणाम आने पर इंडिया को तीन सौ से कम सीटें और भाजपा को बहुमत से काफी कम सीटें मिलती दिखाई दीं बाजार क्रैश कर गया, 4 जून को बाजार में 8 प्रतिशत तक की ऐतिहासिक गिरावट आई।

तो सरकार अब आने वाले समय में सुधारो को उस गति से और उस शक्ति से लागू नहीं कर सकती है ! साथ ही कुछ और प्रभावी लोक लुभावन उपाय सरकार द्वारा किए जाएंगे। तो क्या राजकोषीय स्थिरता और पूंजीगत व्यय में थोड़ा सा धीमापन आ सकता!

मोदी सरकार ने अब तक लोकलुभावन उपायों को संतुलित किया है। परन्तु क्या गठबंधन सरकार अब बड़े पैमाने पर ग्रामीण खपत को बढ़ावा देने की दिशा में करने को बाध्य होगी, जो सुस्त हो गया है! इससे आधारिक संरचना पर होने वाले व्यय पर असर पड़ने की संभावना व्यक्त की जा रही है। यह निजी कैपेक्स को भी मंद कर सकता है। परंतु इस तरह की संभावना बहुत कम है कि सरकार अपने पिछले प्रोजेक्ट्स पर चलने में किसी प्रकार की सुस्ती बरतेगी। अभी मोदी ने कहा है कि आने वाले समय में सुधारो को आर्थिक क्षेत्र से आगे बढ़कर जीवन के हर क्षेत्र में लागू करने की आवश्यकता है। तो निश्चित ही आने वाली सरकार इस बार और मजबूती से सुधारों की दिशा में आगे बढ़ेगी और उन क्षेत्रों में सुधारो को मजबूती से बढ़ाया जाएगा जोकि 1991 के बाद तमाम प्रयासों के बावजूद पीछे छूट गए थे। सुधार तेजी से बढ़ेंगे, ज्यादा व्यापक होंगे और तेज होंगे। लेकिन सारे सुधारो का मूल्यांकन इस आधार पर होना चाहिए कि इसका लाभ जनसंख्या के निचले 50 प्रतिशत तक कितना पहुंचता है।

मजबूत आर्थिक परिदृश्य

मध्य पूर्व के टकराव, वित्तीय संकट, लगातार ऊंची मुद्रा स्पीति की दर और घटते हुए व्यापार के कारण अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष विश्व बैंक तथा अन्य वैश्विक रेटिंग एजेंसियां वैश्विक आर्थिक समृद्धि दर में गिरावट की तस्वीर सामने रख रहे हैं। वहीँ एस-पी ग्लोबल रेटिंग ने भारत की आर्थिक स्थिति को उन्नत करके ‘स्थिर’ से ‘सकारात्मक’ कर दिया है। अभी 1 जून को भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्रिटेन में रखा हुआ अपना 100 टन सोना भारत लाया है, इससे भारत में सोने की कुल मात्रा बढ़ाकर 408 टन हो गई।

नरेंद्र मोदी सरकार का दसवां वर्ष इस मायने में शानदार रहा है कि विभिन्न संस्थाओं के अनुमानों से कहीं बढ़कर वित्तीय वर्ष 2023-24 में आर्थिक समृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रही। यह 1961- 62 के बाद मात्र नवीं बार है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की आर्थिक समृद्धि दर 8 प्रतिशत से ऊपर रही है। यह दुनिया के प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है। हालांकि अभी भी कोरोना संकट के कारण अर्थव्यवस्था को जो झटका लगा था उसकी भरपाई पूरी तरह नहीं हो पाई है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती स्थिति को दर्शाती हैऔर इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि यह तो अभी सिर्फ ट्रेलर है।

नई सरकार के लिए भारत की अर्थव्यवस्था का वर्तमान आर्थिक परिदृश्य  बहुत ही आशावाद से भरा है। भारत में वर्तमान समष्टि आर्थिक स्थितियां वास्तव में स्वस्थ हैं और मजबूत विकास गति को बनाए रखने में सक्षम हैं।आज भारत उस तरह के आर्थिक विस्तार को प्राप्त करने के लिए अच्छी तरह से तैयार है, जिसकी आवश्यकता दशक के अंत तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए है। अर्थव्यवस्था पिछले तीन वर्ष में लगातार 7 प्रतिशत या इससे ज्यादा की दर से आगे बढ़ी है। साथ ही सरकार के राजकोषीय घाटे को भी नियंत्रित करने में सफलता प्राप्त की है। कर संग्रह में अच्छी बढ़त के कारण वित्त वर्ष 2023-24 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 5.6 प्रतिशत पर है, जोकि अनुमान से बेहतर है। महंगाई के मोर्चे पर हालत में थोड़ा सुधार हो रहा है, हालांकि समग्र महंगाई दर अब भी भारतीय रिजर्व बैंक के लक्ष्य से ऊपर है। बैंकों और कंपनियों का बहीखाता मजबूत दिख रहा है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी लबालब भरा है, जो बाह्य मोर्चे पर स्थिरता प्रदान करता है। कई वर्षों में व्यापक आर्थिक स्थिरता को बढ़ाने के नीतिगत प्रयास सफल रहे हैं। यह इसलिए भी  महत्वपूर्ण है कि अभी कुछ समय पूर्व ही भारत भुगतान संकट से बाल-बाल बचा है और भारतीय अर्थव्यवस्था के कई तरह के दबावों से जूझ रही थी।

भारतीय रिजर्व बैंक भारत सरकार को लाभांश के तौर पर 2.11 लाख करोड़ रुपये की राशि दे रहा है, जोकि उम्मीद से बहुत ज्यादा है। 2023-24 निजी बैंकों के लिए बेहतर और सरकारी क्षेत्रों के लिए शानदार रहा। बैंकों के समस्त फंसे हुए ऋण (जीएनपीए) में तेजी से कमी आई, शुद्ध एनपीए में भी कमी आई है। वित्त वर्ष 2024 में 26 सूचीबद्ध बैंकों की शुद्ध गैर-निष्पादित संपत्तियां (छच्।) एक प्रतिशत से भी कम दर्ज की गई हैं। इन बैंकों में 14 निजी, 7 सार्वजनिक क्षेत्र के और 5 लघु वित्त बैंक हैं। इस सूची में देश के शीर्ष तीन बैंक- भारतीय स्टेट बैंक (0.57 प्रतिशत), एचडीएफसी बैंक (0.33प्रतिशत) और आईसीआईसीआई बैंक (0.45प्रतिशत) भी शामिल हैं। छोटे वित्त बैंकों समेत सभी सूचीबद्ध बैंकों ने वित्त वर्ष 24 में 3.20 लाख करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ दर्ज किया है, जो एक वर्ष पहले की अपेक्षा 38.5 प्रतिशत अधिक है। बैंकों का यह अब तक का सबसे अधिक लाभ है। सबसे अधिक लाभ में एसबीआई रहा, जिसने 61,077 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा दर्शाया।  देश का सकल जीएसटी संग्रहण मई 2024 में 10 प्रतिशत बढ़कर 1.73 लाख करोड़ रुपये हो गया। यह अप्रैल, 2024 में 2.10 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। इस वर्ष देश में मॉनसून की बारिश सामान्य से अधिक होगी, इससे कृषि उत्पादन बढ़ने की संभावना है। ऊंचे उत्पादन से स्वाभाविक रूप से खाद्य महंगाई पर नियंत्रण पाने में मदद मिलेगी।

कुल मिलाकर देखें तो अगली सरकार को संभवतः अब तक का सबसे अच्छा आर्थिक प्रारंभिक बिंदु मिलेगा, लेकिन उसके लिए चुनौती इसे बनाए रखने की होगी ताकि देश का तीव्र और संतुलित आर्थिक विकास हो सके।

पूंजीगत निवेश पर फोकस बना रहेगा

एनडीए सरकार के बुनियादी ढांचे के विकास पर केंद्रित अपने फोकस को कम करने की संभावना नहीं है। भाजपा के घोषणापत्र में कहा गया है कि किसान कल्याण, स्वास्थ्य, जीवन की गुणवत्ता में सुधार, उद्यमिता, स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण और विनिर्माण और बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जायेगा। पिछले दशक के दौरान, केंद्र द्वारा वित्त पोषित और राज्यों द्वारा समर्थित बुनियादी ढांचा पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) आर्थिक विकास का मुख्य चालक रहा है। इसमें सड़क, रेलवे, बिजली, दूरसंचार, हवाई अड्डे और बंदरगाह शामिल हैं, निश्चित रूप से, सड़कों के लिए एक बड़ा हिस्सा विभाजित किया जा रहा है।

विशेषकर मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में पूंजीगत व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जिससे सड़क निर्माण, रक्षा स्वदेशीकरण, रेलवे का आधुनिकीकरण, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं के माध्यम से विनिर्माण को मजबूत किया गया और बिजली ग्रिडों, बिजली संयंत्रों का इष्टतम उपयोग किया गया।वित्त वर्ष 2024 तक एक दशक में सड़कों और राजमार्गों के आवंटन में 500 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, मोदी के दूसरे कार्यकाल में वंदे भारत ट्रेनों और रेल नेटवर्क में वृद्धि पर ध्यान केंद्रित किया गया। इससे अब निजी निवेश में भी वृद्धि का पूरा वातावरण तैयार है।

निजी पूंजीगत व्यय चक्र में तेजी सतत संवृद्धि के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण आवश्यकता है। विनिर्माण क्षेत्र में क्षमता उपयोग 75 प्रतिशत (दीर्घावधि औसत के करीब) और बैंक व कंपनियों की बैलेंस शीट अच्छी स्थिति में होने से पूंजीगत व्यय में सुधार की जमीन तैयार है। निजी क्षेत्र निवेश करने के बढ़ते इरादे दिखा भी रहा है। मध्यम अवधि के लिए निजी निवेश में वृद्धि अर्थव्यवस्था में वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण होगी  और अगली सरकार को इस पर विशेष जोर देना चाहिए। हालांकि, कमजोर निजी खपत निजी निवेश में अड़चन बन सकती है, खासकर जब निर्यात या विदेशी मांग भी अपेक्षाकृत कमजोर रहने का अनुमान है। हालांकि,इसके लिए नीतिगत निश्चितता और वैश्विक और घरेलू आर्थिक स्थिरता में विश्वास आवश्यक होगा। निजी निवेश के सार्थक रूप से गति पकड़ने के लिए उपभोग मांग में वृद्धि भी महत्वपूर्ण है। निजी क्षेत्र द्वारा क्षमता विस्तार किए जाने से पूंजी निर्माण और जीडीपी अनुपात में सुधार होने की संभावना है। सरकार के पीएलआई कार्यक्रमों से आने वाले वर्षों में विनिर्माण की हिस्सेदारी को बढ़ावा मिलने की भी उम्मीद है।

गांव, गरीब और रोजगार पर फोकस

मोदी सरकार का समष्टि आर्थिक मोर्चे पर प्रबंधन और नीतियां तथा उसका क्रियान्वयन काफी बेहतर रहा  है, परन्तु  पिछले  दस वर्षों में पूंजी निर्माण और रियल एस्टेट में चक्रीय पुनरुद्धार को छोड़कर भारतीय अर्थव्यवस्था में वास्तव में बहुत अधिक संरचनात्मक परिवर्तन नहीं हुआ है। बेरोजगारी और महंगाई ने जनता को प्रभावित किया है और चुनाव में यह मुद्दे जमीनी स्तर पर हावी रहे। देश की जनसँख्या का एक बड़ा हिस्सा उच्च और लंबे समय तक मुद्रास्फीति का दंश झेल रहा है, उससे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की इसका कारण क्या है और यह विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से कम है। नए जीडीपी के आंकड़ों में भी ग्रामीण उपभोग में धीमापन और कृषि आय में कमी स्पष्ट दिख रही है। संपूर्ण रूप में देखे तो कृषि क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्र की आय में वृद्धि बहुत मामूली है। तो चुनौती स्पष्ट है; सरकार गांव, गरीब और रोजगार पर फोकस करे।

मोदी जी पहले भी कहते रहे, अब भी कह रहे हैं कि भारत एक युवा राष्ट्र है, जोकि  एक संयोग है, और अवसर भी, इसका पूरा लाभ उठाना है। परंतु अपेक्षित रोजगार ना बढ़ा पाना, रोजगार का अधिक गुणवत्ता युक्त और उत्पादक ना होना या युवाओं को रोजगार के अनुरूप कुशल और प्रशिक्षित ना बना पाना, अवसर को गवाना है। सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकता दुनिया की सबसे युवा आबादी के जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाने पर ध्यान केंद्रित करना होना चाहिए। इसके लिए कृषि अर्थव्यवस्था के बाहर रोजगार के अवसरों में सुधार, युवाओं के कौशल बढ़ाने और समग्र श्रम शक्ति भागीदारी, विशेष रूप से महिलाओं की, बढ़ाने की आवश्यकता है। चुनावों से यह संकेत भी गया है कि हमें अधिक समावेशी विकास की आवश्यकता है।

शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च को प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण है, क्योंकि उच्च विकास की निरंतरता के लिए श्रम बल की गुणवत्ता में महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है। भारत में स्वास्थ्य और शिक्षा पर सामान्य सरकारी व्यय, सकल घरेलू उत्पाद का क्रमशः 1.8प्रतिशत और 3.1प्रतिशत, है जोकि चीन जैसी अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कम है।  श्रम की गुणवत्ता में सुधार और श्रम बल में भागीदारी से समग्र श्रम उत्पादकता, आय स्तर और उपभोग मांग को बढ़ाने में मदद मिलेगी। विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के भीतर, मध्यम एवं लघु उद्यम रोजगार पैदा करने में मदद कर सकते हैं।

कृषि क्षेत्र में उत्पादकता के स्तर को बढ़ाना बहुत आवश्यक है, इससे खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने में मदद मिलेगी और ग्रामीण उपभोग में भी वृद्धि होगी। फसल विविधीकरण, कृषि क्षेत्र के बुनियादी ढांचे में निवेश और एक आधुनिक आपूर्ति श्रृंखला बुनियादी ढांचे का विकास आवश्यक है इससे किसानों को अपनी उपज का अधिक बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद मिलेगी।साथ ही असंगठित क्षेत्र में रोजगार की स्थिति में सुधार भी महत्वपूर्ण होगा।

समुचित राजकोषीय प्रबंधन

समुचित राजकोषीय प्रबंधन के लिए जरूरत इस बात की है कि सरकार देश में कर-जीडीपी अनुपात को बढ़ाए। यह वस्तु एवं सेवा कर को सुव्यवस्थित करने से हो सकता है। अपरिपक्व तरीके से दरों में कटौती और कई स्लैब होने के कारण जीएसटी प्रणाली अभी भी कमजोर है। प्रत्यक्ष कर सुधार के विचार पर भी नए सिरे से विचार होना चाहिए। मध्य वर्ग को कर राहत भी आवश्यक है। सरकार के सुधारों की मार सबसे अधिक मध्य वर्ग पर ही पड़ती है। राजकोषीय स्थिति को मजबूत करने के लिए सरकार ने विशुद्ध रूप से यदि सबसे अधिक भार किसी वर्ग पर डाला है, तो वह मध्य वर्ग ही है।

कोविड महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में सुधार काफी हद तक ऊंचे सरकारी व्यय से हुआ है सर्कार बजट में राजकोषीय मजबूती पर आगे बढ़ते हुए इसे जीडीपी के 3 प्रतिशत या कम पर लाने का एक संशोधित क्रमिक मार्ग पेश करे। इससे बाजार का भरोसा बढ़ेगा और निजी निवेश में सुधार लाने में मदद मिलेगी। सरकार के लिए एक बड़ी आर्थिक नीतिगत चुनौती यह होगी कि भारत की विदेशी प्रतिस्पर्धात्मकता में किस तरह से सुधार किया जाए। इसके लिए व्यापार नीति सहित कई स्तरों पर नीतियों की समीक्षा और बदलाव की जरूरत होगी। निर्यात में लगातार ऊंची वृद्धि निवेश बढ़ाने, अत्यधिक जरूरी नौकरियों के सृजन में मदद कर सकती है और इससे कुल मिलाकर गुणवत्तापूर्ण वृद्धि में सुधार होगा। इस संबंध में भारत भू-राजनीतिक बदलावों का फायदा उठा सकता है और चीन प्लस वन जैसे बदलाव का प्रमुख हिस्सा बन सकता है।

निजी उपभोग में वृद्धि

अर्थव्यवस्था में निजी उपभोग में 2023-24 में 3.8 प्रतिशत की कमजोर वृद्धि हुई है। यह पिछले दो दशकों में सबसे धीमी वृद्धि दर है ( कोरोना वर्ष के संकुचन को छोड़कर)। निवेश में 9 प्रतिशत की अच्छी वृद्धि हुई है, जिसमें मुख्य योगदान सरकार का है। केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय 2023-24 में 28 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि अप्रैल-फरवरी में कुल राज्य पूंजीगत व्यय लगभग 33 प्रतिशत बढ़ा है। जबकि निजी क्षेत्र में निवेश वृद्धि के संकेत भी मिल रहे हैं। भारत की अर्थव्यवस्था का तीसरा स्तंभ निर्यात कमजोर वैश्विक वृद्धि के कारण मंद पड़ा है।

विकास की गति को बनाए रखने के लिए, सबसे महत्वपूर्ण पहलू निजी व्यय में सुधार होगा। जबकि उच्च आय वर्ग व्यय  कर रहा है, निम्न आय वर्ग उच्च मुद्रास्फीति और कम मजदूरी वृद्धि के बीच सतर्क बना हुआ है। पिछले साल कमजोर मानसून के कारण ग्रामीण मांग भी कमजोर रही थी। इस साल सामान्य मानसून की उम्मीद के साथ, हम ग्रामीण व्यय या उपभोग की मांग में सुधार की उम्मीद कर सकते हैं। ग्रामीण मांग में सुधार के कुछ संकेत दीख भी रहे हैं। इस सन्दर्भ में मानसून की स्थिति को देखना महत्वपूर्ण होगा। खाद्य मुद्रास्फीति में कमी ग्रामीण उपभोग को पुनरूद्धार के लिए एक अन्य शर्त होगी। रोजगार परिदृश्य में सुधार भी उपभोग को पुनर्जीवित करने में  महत्वपूर्ण होगा।

नई सरकार के पास राजकोषीय समेकन की दिशा में आगे बढ़ते हुए उच्च आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिए एक लंबा काम होगा। नई सरकार को जिस सबसे महत्वपूर्ण चुनौती का सामना करना चाहिए, वह है पूंजीगत व्यय की अगुवाई में निजी निवेश में वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करते हुए व्यापक आधार पर निजी उपभोग में वृद्धि सुनिश्चित करना। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाना प्राथमिकता होनी चाहिए। सतत उपभोग वृद्धि और सरकार द्वारा उच्च पूंजीगत व्यय से निजी पूंजीगत व्यय चक्र को बढ़ाने में मदद मिलेगी। आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए, नई सरकार के लिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होगा कि उच्च विकास का लाभ निम्न आय वर्गों तक पहुंचे।

सुधारों में उत्पादन के सभी कारकों – भूमि, श्रम, पूंजी और प्रौद्योगिकी – को शामिल करने की आवश्यकता है, साथ ही कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों से उच्च उत्पादकता वाले क्षेत्रों में संसाधनों का पुनः आवंटन किया जाना चाहिए। नई सरकार को समष्टि आर्थिक स्थिरता बढ़ाने के लिए राजकोषीय बफर को और मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। घरेलू मांग के साथ-साथ माल निर्यात को पूरा करने के लिए विनिर्माण आधार को और विकसित करना महत्वपूर्ण है। स्वास्थ्य और शिक्षा पर सरकारी खर्च बढ़ाया जाना चाहिए। कृषि अर्थव्यवस्था से बाहर रोजगार के अवसर पैदा किए जाने चाहिए और कौशल को बढ़ाया जाना चाहिए। कुल साधन उत्पादकता में वृद्धि को बढ़ाने के लिए, नई वैश्विक प्रौद्योगिकियों को अपनाने और प्रसार को सुविधाजनक बनाने, अनुसंधान और विकास पर खर्च बढ़ाने और नवाचार को मजबूत करने के उपायों की आवश्यकता भी है।

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अल्पावधि में, सभी की नजर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कराधान में बदलाव, एमएसपी नीति और मनरेगा भुगतान के लिए जुलाई के बजट पर रहेगी। हालांकि दीर्घावधि में सरकार का मुख्य जोर बुनियादी ढांचा विकास, कृषि कानूनों, कौशल विकास और विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार सृजन पर रहेगा। नौकरियों के सृजन के लिए अगली सरकार को बुनियादी ढांचे के विकास और ढांचागत सुधारों पर ध्यान जारी रखने की जरूरत है। श्रम और भूमि बाजार की कार्यक्षमता में सुधार जरूरी है। भारत को विनिर्मित उत्पादों के प्रमुख निर्यातक बनने की कवायद तेज करने और वैश्विक मूल्य श्रृंखला से इसे जोड़ने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन भी एक बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा है। कार्बन इंटेंसिटी कम करने के लिए नीतियां बनाना, शहरी योजना में सुधार और स्वास्थ्य व शिक्षा में निवेश बढ़ाना भी अहम है।

डॉ. उमेश प्रताप सिंह

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