जगदलपुर: कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित कोटमसर गुफा अपनी अनोखी प्राकृतिक संरचनाओं और रहस्यमयी जीवों के कारण पर्यटकों (Tourists) को अपनी ओर आकर्षित करती है। पहले बारिश और फिर विवाद के चलते इस बार कोटमसर गुफा करीब एक माह देरी से खोली गई है। इस बीच यहां पहुंचने वाले पर्यटकों को निराशा हाथ लग रही थी, लेकिन वन विभाग और ग्रामीणों के बीच कोटमसर गांव में एक घंटे का ठहराव दिए जाने के निर्णय के आधार पर ग्रामीणों ने भी गुफा खोलने पर सहमति जताई। कोटमसर गुफा खुलने के एक सप्ताह के भीतर यहां एक हजार से अधिक पर्यटक पहुंच चुके हैं।
रहस्यों को देख दंग रह जाते हैं Tourists
आज रविवार को भी यहां 52 जिप्सियों की बुकिंग हुई। इधर, कोटमसर गुफा न खुलने के कारण प्रबंधन ने कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में स्थित अन्य गुफाओं में पर्यटन बढ़ने की बात कही थी। कोटमसर में ग्रामीणों से विवाद के चलते प्रबंधन ने कैलाश गुफा में सुविधाएं विकसित करना शुरू कर दिया था। इसके चलते पिछले एक माह में करीब पांच हजार पर्यटक कैलाश गुफा पहुंच चुके हैं, अब प्रबंधन यहां और सुविधाएं विकसित करने का प्रयास कर रहा है।
उल्लेखनीय है कि कोटमसर गुफा में प्रवेश करते ही पर्यटक इन प्राकृतिक चमत्कारों को देखकर दंग रह जाते हैं। इस गुफा में स्थित अंधे कुएं पर चोट करने से जो खोखली आवाज आती है, वह यहां आने वाले पर्यटकों को एक अनोखा अनुभव देती है। साथ ही यहां पाई जाने वाली अंधी मछलियां और अन्य सरीसृप इस गुफा को और भी रहस्यमयी बना देते हैं।
कोटमसर गुफा में प्रकृति ने अद्भुत संरचनाओं का किया है निर्माण
कोटमसर गुफा को प्रकृति ने अद्भुत संरचनाओं से सजाया है, यहां स्टैलेक्टाइट और स्टैलेग्माइट स्तंभों की बहुतायत है। गुफा का प्रवेश द्वार केवल पांच फीट ऊंचा और तीन फीट चौड़ा एक छोटा सा मार्ग है। गुफा में पांच विशाल कक्ष हैं, जिनमें कई अंधे कुएं भी हैं। चट्टान से ढके अंधे कुएं पर चोट करने पर खोखली आवाज सुनाई देती है। गुफा के अंदर का रास्ता 330 मीटर लंबा और 20 मीटर से 72 मीटर चौड़ा है।
गुफा में कई सरीसृप, मकड़ी, चमगादड़ और झींगुर मौजूद हैं। यहां अंधी मछलियां पाई जाती हैं, जो गुफा की जैव विविधता को दर्शाती हैं। गुफा के पिछले हिस्से में चूना पत्थर से बना शिवलिंग पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। जहां प्रकृति ने आकर्षक रहस्य समेटे हैं, वहीं अब यह पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र बन गया है।
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स्थानीय लोगों को मिलेंगे रोजगार
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के प्रबंधक चूड़ामणि सिंह ने बताया कि कोटमसर गांव बस्तर की अनूठी धुर्वा जनजाति का घर है। यह जनजाति राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र के आसपास ही निवास करती है। इससे अब पर्यटकों को धुर्वा जनजाति की संस्कृति और परंपरा को देखने और समझने का अवसर मिलेगा। कोटमसर के ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने के साथ ही सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पार्क प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है। यहां पर्यटक धुर्वा जनजाति के पारंपरिक नृत्य का आनंद लेने के साथ ही बस्तर के पारंपरिक भोजन का स्वाद भी ले सकेंगे।
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