Lucknow : विद्युत विभाग अंडरग्राउंड नेटवर्क से निर्बाध बिजली आपूर्ति के दावे करता है। हालांकि, बीते दिनों के आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। लेसा में बीते करीब 100 दिनों के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो भूमिगत लाइनों में करीब 900 फाल्ट हो चुके हैं। ऐसे में शहर में भूमिगत बिजली केबल नेटवर्क के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। भूमिगम बिजली केबल नेटवर्क को प्राथमिकता देने के पीछे आंधी-पानी के दौरान बिजली न गुल होने की कही जाने वाली बात भी इन आंकड़ों के सामने बेमानी लगती है।
मई से अगस्त माह के बीच माल उपकेंद्र चार बार ठप हुआ। इसके पीछे की वजह रहीमाबाद ट्रांसमिशन सबस्टेशन से जुड़ी भूमिगत केबल में फाल्ट रही, वहीं चिनहट के शिवपुरी उपकेंद्र के 11 केवी मटियारी फीडर में बीते तीन माह में दो बार फाल्ट आया। दोनों ही बार भूमिगत केबल का बॉक्स जिसे ज्वाइंट किट कहते हैं, वह दग गया। यही नहीं बालाघाट उपकेंद्र की 11 केवी लाइन में इतने फाल्ट हुए कि स्टोर ने बॉक्स देने से ही इनकार कर दिया। ये महज उदाहरण हैं, आलम यह है कि मई से अगस्त माह के प्रथम सप्ताह तक लेसा में भूमिगत केबल में 900 बार से अधिक फाल्ट हुए हैं। 11 केवी में एक बार फाल्ट होने से दो से 2,500 और 33 केवी लाइन में फाल्ट आने से 12,000 से अधिक उपभोक्ताओं की बिजली आपूर्ति प्रभावित होती है।
जानकारी के अनुसार, भूमिगत बिजली केबल नेटवर्क पर ओवरहेड नेटवर्क के मुकाबले ढाई गुना से अधिक खर्च आता है। इतने खर्च के बाद भी समस्या बरकरार है। 11 केवी भूमिगत केबल में आए फाल्ट को ठीक करने में 14 से 17 हजार रुपए तक का खर्च आता है। इसी प्रकार 33 केवी भूमिगत केबल में आए फाल्ट को ठीक करने में 17 से 20 हजार रुपए तक का खर्च आता है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि बीते तीन महीनों में हुए 11 केवी व 33 केवी फाल्ट को ठीक करने में कितना पैसा खर्च हुआ होगा। 11 केवी के एक किमी भूमिगत बिजली केबल नेटवर्क को तैयार करने में करीब 14 से 17 लाख रुपए खर्च होते हैं, वहीं 33 केवी के एक किमी भूमिगत बिजली केबल नेटवर्क को तैयार करने में 33 से 35 लाख रुपए का खर्च आता है।
समय पर मेंटीनेंस न करने से होती है समस्या
जानकारों की मानें तो तय समय पर मेंटीनेंस न होने से भूमिगत बिजली केबल नेटवर्क में फाल्ट आता है। तय समय पर लाइन, ट्रांसफार्मर, बॉक्स और उपकेंद्र के सिस्टम का मेंटीनेंस न करने से ही भूमिगत केबल में फाल्ट की समस्या आती है। इस समस्या को दूर करने के लिए ओवरलोडिंग दूर की जाए और बेहतर गुणवत्ता वाले केबल किट का इस्तेमाल किया जाए, वहीं भूमिगत केबल को सही करने में लापरवाही से भी समस्या हो रही है। ज्वाइंट केबल में बॉक्स लगाने के बाद अर्थिंग जाली से उसे कवर किया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा किया नहीं जाता। इससे केबल में दोबारा फाल्ट आने पर उसे खोजने में दिक्कतें आती हैं। एसडीओ व जेई के मेंटीनेंस के दौरान उपस्थित न रहने से यह समस्या होती है।
स्मार्ट प्री-पेड मीटर का कोई खर्च नहीं वहन करेंगे उपभोक्ता
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद की लंबे समय से चल रही लड़ाई अंततः रंग लाई। बिजली कंपनियों की तरफ से दाखिल आरडीएसएस योजना के खर्च अनुमोदन की याचिका पर उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार व सदस्य संजय कुमार सिंह ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कहा कि स्मार्ट प्रीपेड मीटर योजना पर होने वाले किसी भी खर्च की कोई भी भरपाई प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं से किसी भी रूप में नहीं की जाएगी। चाहे वह वार्षिक राजस्व आवश्यकता एआरआर का मामला हो या बिजली दर का मामला हो या ट्रू अप का मामला हो, किसी रूप में भी आम जनता पर इस खर्च को पासऑन नहीं किया जाएगा। गौरततलब है कि केंद्र सरकार ने पहले ही कह दिया था कि विद्युत नियामक आयोग इस खर्च को आम जनता पर ना पड़ने दे और इसके संबंध में एक आदेश जारी किया था। अब विद्युत नियामक आयोग ने भारत सरकार के फैसले के क्रम में अपना फैसला सुना दिया है।
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विद्युत नियामक आयोग लगातार इस पूरी योजना को आत्मनिर्भर योजना मानकर चल रहा है। बिजली कंपनियां अपनी कलेक्शन एफिशिएंसी और दक्षता के आधार पर इसकी भरपाई स्वयं करें। उत्तर प्रदेश विद्युत नियमाकर द्वारा सुनाए गए फैसले के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार व सदस्य संजय कुमार सिंह से मुलाकात कर प्रदेश के उपभोक्ताओं के पक्ष में सुनाए गए फैसले पर उनका आभार व्यक्त किया और कहा विद्युत नियामक आयोग उपभोक्ताओं की आवाज को सुनकर संवैधानिक निर्णय दिया है, जो स्वागतयोग्य कदम हैं।
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