दीनों के बंधु, सूर्य के समान तेजवान, आनंदकंद कौशल, शिव, शेष और मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाले, दानव और दैत्यों का नाश करने वाले, जन-जन के आराध्य कोशलाधीश भगवान श्रीरामलला अपने दिव्य व भव्य मंदिर में विराजित हो गए हैं। आध्यात्म रामायण, श्रीमद्वाल्मीकि रामायण, श्रीरामचरिमानस तथा आलवन्दार स्तोत्र में वर्णित श्रीराम की शास्त्रसम्मत शोभा के अनुरूप दिव्य आभूषणों व वैष्णव मंगल चिन्ह- शंख, पद्म, चक्र और मयूर से सुशोभित बालक रूप रामलला की अनुपम छवि हर किसी के हृदय को आह्लादित कर रही है। प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा हेतु द्वादश अधिवास का आयोजन हुआ।
जिसमें 16 जनवरी को प्रायश्चित्त और कर्मकूटि पूजन, 17 जनवरी को मूर्ति का परिसर प्रवेश, 18 जनवरी को तीर्थ पूजन, जल यात्रा, जलाधिवास और गंधाधिवास, 19 जनवरी को औषधाधिवास, केसराधिवास, घृताधिवास, 19 जनवरी को धान्याधिवास, 20 जनवरी को शर्कराधिवास, फलाधिवास, पुष्पाधिवास व 21 जनवरी को मध्याधिवास तथा शय्याधिवास संपन्न हुआ। समारोह के अनुष्ठान की सभी प्रक्रियाओं का समन्वय, समर्थन और मार्गदर्शन 121 आचार्यों ने किया। गणेशवर शास्त्री द्रविड़ सभी प्रक्रियाओं की निगरानी, समन्वय और दिशा-निर्देशन कर रहे थे और काशी के लक्ष्मीकांत दीक्षित मुख्य आचार्य की भूमिका में थे।
प्राण प्रतिष्ठा में विशिष्ट अतिथि के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मौजूद रहे। समारोह में भारतीय आध्यात्मिकता, धर्म, संप्रदाय, पूजा पद्धति, परंपरा के सभी विद्यालयों के आचार्य, 150 से अधिक परंपराओं के संत, महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, श्रीमहंत, महंत, नागा सहित 50 से अधिक आदिवासी, गिरिवासी, तातवासी, द्वीपवासी आदिवासी परंपराओं के प्रमुखों तथा भारत के इतिहास में पहली बार पहाड़ों, वनों, तटीय क्षेत्रों, द्वीपों आदि के वासियों और शैव, वैष्णव, शाक्त, गाणपत्य, पात्य, सिख, बौद्ध, जैन, दशनाम शंकर, रामानंद, रामानुज, निम्बार्क, माध्व, विष्णु नामी, रामसनेही, घिसापंथ, गरीबदासी, गौड़ीय, कबीरपंथी, वाल्मीकि, शंकरदेव (असम), माधव देव, इस्कॉन, रामकृष्ण मिशन, चिन्मय मिशन, भारत सेवाश्रम संघ, गायत्री परिवार, अनुकूल चंद्र ठाकुर परंपरा, ओडिशा के महिमा समाज, अकाली, निरंकारी, नामधारी (पंजाब), राधास्वामी और स्वामीनारायण, वारकरी, वीर शैव इत्यादि कई सम्मानित परंपराओं ने सहभाग किया।
समारोह में विभिन्न राज्यों के लोगों ने जल, मिट्टी, सोना, चांदी, मणियां, कपड़े, आभूषण, विशाल घंटे, ढोल, सुगंध इत्यादि भेंट किए। इसके अतिरिक्त प्राण प्रतिष्ठा समारोह में मां जानकी के मायके द्वारा भेजे गए भार (एक बेटी के घर स्थापना के समय भेजे जाने वाले उपहार) जो जनकपुर (नेपाल) और सीतामढ़ी (बिहार) के ननिहाल से अयोध्या लाए गए थे।
रायपुर, दंडकारण्य क्षेत्र स्थित प्रभु के ननिहाल से भी विभिन्न प्रकार के आभूषणों आदि के उपहार भेजे गए थे। 22 जनवरी के पूजन की शुरूआत नित्य पूजन-हवन पारायण से हुई। इसके बाद देवप्रबोधन, प्रतिष्ठापूर्वकृत्य, देवप्राण प्रतिष्ठा, महापूजा, आरती, प्रासादोत्सर्ग, उत्तरांगकर्म, पूर्णाहुति, आचार्य को गोदान, कर्मेश्वरार्पणम, ब्राह्मणभोजन, प्रैषात्मक पुण्याहवाचन, ब्राह्मण दक्षिणा दानादि संकल्प, आशीर्वाद और फिर कर्मसमाप्ति की विधि पूर्ण की गई। तत्पश्चात पौष माह के द्वादशी तिथि को अभिजीत मुहूर्त, इंद्र योग, मृगशिरा नक्षत्र, मेष लग्न एवं वृश्चिक नवांश में दीनानाथ प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा शास्त्रोत विधि से हुए पूजन-अर्चन के साथ संपन्न हो गई।
श्रीराम जन्मभूमि पर हुए प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दिन देश के विभिन्न राज्यों से आए 50 से अधिक मनमोहक वाद्ययंत्रों द्वारा लगभग दो घंटे तक निकाली गई ‘मंगल ध्वनि’ ने हर किसी को सम्मोहित कर लिया। इस भव्य मंगल वादन के डिजाइनर और आयोजक अयोध्या के यतींद्र मिश्र रहे, जिनका सहयोग केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली ने किया। भगवान श्रीराम के सम्मान में विविध परंपराओं को एकजुट किया गया था। जिसमें दिल्ली से शहनाई, उत्तर प्रदेश से पखावज, बांसुरी और ढोलक, राजस्थान से रावणहत्था, ओडिशा से मर्दल, मध्य प्रदेश से सन्तूर, कर्नाटक से वीणा, मणिपुर से पुंग, पंजाब से अलगोजा, असम से नगाड़ा व काली, महाराष्ट्र से सुन्दरी, छत्तीसगढ़ से तम्बूरा, पश्चिम बंगाल से श्रीखोल व सरोद, तमिनाडु ये नागस्वरम्, तविल व मृदंगम्, आन्ध्र प्रदेश से घटम, झारखण्ड से सितार, गुजरात से सन्तार, बिहार से पखावज तथा उत्तराखण्ड से लाए गए हुड़का वाद्य यंत्रों की सुमधुर ध्वनियों ने कोशलाधीश प्रभु श्रीराम का स्वागत अपने ढंग से किया।
500 वर्षों की गहन तपस्या हुई साकार
मंगल ध्वनि के बीच लाल कपड़े पर रखे चांदी का छत्र लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 84 सेकंड के अभिजीत मुहूर्त के भीतर संकल्प लेकर श्रीरामलला के प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान पूरा किया। समारोह शंखनाद और हेलीकॉप्टर द्वारा मंदिर पर फूलों की वर्षा के बीच पूरा हुआ। आखिरकार राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा पूरी हुई और 500 साल का सपना साकार हुआ। प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान के समापन के बाद मोदी ने 11 दिवसीय उपवास तोड़ा। उन्होंने अपना उपवास तोड़ने के लिए चरणामृत का एक घूंट लिया। चरणामृत में पांच मुख्य सामग्रियां दही (दही), दूध, शहद, तुलसी दल और घी मिली हुई थीं। प्राण प्रतिष्ठा समारोह से पहले प्रधानमंत्री ने 11 दिनों का कठोर उपवास किया था।
इस दौरान उन्होंने सिर्फ नारियल पानी पिया और फर्श पर सोए। प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान कार्यक्रम के संपन्न हो जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों और दुनिया के सभी रामभक्तों को इस शुभ घड़ी की बधाई देते हुए कहा कि सदियों के अभूतपूर्व धैर्य, अनगिनत बलिदान, त्याग, तपस्या और प्रतीक्षा के बाद हमारे प्रभु राम आ गए हैं और अब हमारे रामलला टेंट में नहीं, इस दिव्य मंदिर में रहेंगे। आज का ये अवसर उत्सव का क्षण तो है ही, लेकिन इसके साथ ही ये क्षण भारतीय समाज की परिपक्वता के बोध का भी क्षण है। हमारे लिए ये अवसर सिर्फ विजय का नहीं, बल्कि विनय का भी है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस क्षण को आलौकिक और पवित्रतम बताते हुए कहा कि रामलला के इस मंदिर का निर्माण, भारतीय समाज के शांति, धैर्य, आपसी सद्भाव और समन्वय का भी प्रतीक है। हम देख रहे हैं, ये निर्माण किसी आग को नहीं, बल्कि ऊर्जा को जन्म दे रहा है। पीएम ने कहा कि राम भारत की आस्था हैं, राम भारत का आधार हैं, राम भारत का विचार हैं, राम भारत का विधान हैं, राम भारत की चेतना हैं, राम भारत का चिंतन हैं, राम भारत की प्रतिष्ठा हैं। राम मंदिर पर विवाद खड़ा करने वाले विरोधियों को जवाब देते हुए मोदी ने कहा कि वे आज उन लोगों से आह्वान करेंगे कि महसूस कीजिए और अपनी सोच पर पुनर्विचार कीजिए, राम विवाद नहीं समाधान है, राम आग नहीं, राम ऊर्जा हैं।
राम सिर्फ हमारे नहीं हैं, राम तो सबके हैं। राम वर्तमान ही नहीं, राम अनंतकाल हैं। उन्होंने कहा कि वो भी एक समय था, जब कुछ लोग कहते थे कि राम मंदिर बना तो आग लग जाएगी। ऐसे लोग भारत के सामाजिक भाव की पवित्रता नहीं जान पाए। उनका पक्का विश्वास और अपार श्रद्धा है कि जो घटित हुआ है, इसकी अनुभूति देश के, विश्व के कोने-कोने में रामभक्तों को हो रही होगी। ये क्षण आलौकिक है, ये पल पवित्रतम है। उन्होंने कहा कि आज इस ऐतिहासिक समय में देश उन व्यक्तित्वों को भी याद कर रहा है, जिनके कार्य और समर्पण की वजह से आज हम ये शुभ दिन देख रहे हैं। राम के इस काम में कितने ही लोगों ने त्याग और तपस्या की पराकाष्ठा करके दिखाई है। उन अनगिनत रामभक्तों के, उन अनगिनत कारसेवकों के और उन अनगिनत संत-महात्माओं के हम सब ऋणी हैं। प्रधानमंत्री ने प्रभु श्रीराम से माफी मांगते हुए यह भी कहा कि मैं आज प्रभु श्रीराम से क्षमा याचना भी करता हूं।
हमारे पुरुषार्थ, त्याग और तपस्या में कुछ तो कमी रह गई होगी कि हम इतनी सदियों तक ये कार्य कर नहीं पाए। आज वो कमी पूरी हुई है। मुझे विश्वास है कि प्रभु राम आज हमें अवश्य क्षमा करेंगे। न्यायपालिका के प्रति आभार जताते हुए और भारतीय संविधान की बात करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत के संविधान की पहली प्रति में भगवान राम विराजमान हैं। संविधान के अस्तित्व में आने के बाद भी दशकों तक प्रभु श्रीराम के अस्तित्व को लेकर कानूनी लड़ाई चली। मैं आभार व्यक्त करूंगा भारत की न्यायपालिका का, जिसने न्याय की लाज रख ली। न्याय के पर्याय प्रभु राम का मंदिर भी न्यायबद्ध तरीके से ही बना। ये मंदिर, मात्र एक देव मंदिर नहीं है। ये भारत की दृष्टि का, भारत के दर्शन का, भारत के दिग्दर्शन का मंदिर है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत ने कहा कि आज आनंद का क्षण है। आज अयोध्या में रामलला के साथ भारत का ’स्व’ लौटकर आया है। सम्पूर्ण विश्व को त्रासदी से राहत देने वाला नया भारत खड़ा होकर रहेगा, इसका प्रतीक आज है। इस आनंद का वर्णन कोई अपने शब्दों में नहीं कर सकता है। हमारे दूरदर्शन के माध्यम से इस कार्यक्रम को दूर-दराज के लोग देखकर भाव-विभोर हो रहे हैं। दुनिया देख रही है। मोहन भागवत ने कहा कि आज हमने सुना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कठोर व्रत किया। जितना कठोर कहा गया था, उससे ज्यादा कठोर व्रत किया है। उन्हें हम पहले से जानते हैं। वे कठोर व्रती हैं। वे अकेले व्रत करेंगे तो हम क्या करेंगे ? राम बाहर क्यों गए थे। इस पर विचार कीजिए।
अयोध्या में कभी कलह नहीं थी। कलह के कारण बन गए। 14 वर्षों तक बाहर रहकर दुनिया की कलह को समाप्त कर वापस आए थे। आज एक बार फिर राम जी वापस आए हैं। आज के दिन का इतिहास जो-जो सुनेगा, वह राष्ट्र कार्य को समर्पित होगा और खुद का कल्याण करेगा। प्रधानमंत्री ने तप किया। अब हमें भी तप करना है। मानस की चैपाइयों को सुनाते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि राम राज्य का जो वर्णन किया गया है, उस भारत माता की हम संतानें हैं। कलह को विदाई देनी होगी। छोटे-छोटे कलह को छोड़कर हमें आगे बढ़ना होगा। भगवान राम के चरित्र को अपनाना होगा। उन्होंने कहा कि कठिन भाषण बहुत हो सकता है। युगानुकूल आचरण देखना होगा। सत्य कहता है कि सब घट में राम हैं। हमें यह जानकार आपस में समन्वय करके चलना होगा। रामलला के विराजित होने पर भाव-विभोर नजर आए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हमें संतोष है कि मंदिर वहीं बना है, जहां बनाने की सौगंध ली थी। रामकाज का साक्षी बनना सौभाग्य की बात है। उन्होंने कहा कि 500 वर्षों के सुदीर्घ अंतराल के बाद आए प्रभु श्रीरामलला के विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा के ऐतिहासिक और अत्यंत पावन अवसर पर आज पूरा भारत भाव-विभोर और भाव विह्वल है। श्री अवधपुरी में श्री रामलला का विराजना भारत में ’रामराज्य’ की स्थापना की उद्घोषणा है।
’सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती’ की परिकल्पना साकार हो उठी है। 500 वर्षों के लबे अंतराल के उपरान्त आज के इस चिरप्रतीक्षित मौके पर अंतर्मन में भावनाएं कुछ ऐसी हैं कि उन्हें व्यक्त करने को शब्द नहीं मिल रहे। मन भावुक है, भाव विभोर है, भाव विह्वल है। निश्चित रूप से आप सब भी ऐसा ही अनुभव कर रहे होंगे। उन्होंने कहा कि आज इस ऐतिहासिक और अत्यंत पावन अवसर पर भारत का हर नगर-हर ग्राम अयोध्याधाम है। हर मार्ग श्रीरामजन्मभूमि की ओर आ रहा है। हर मन में राम नाम हैं। हर आंख हर्ष और संतोष के आंसू से भीगा है। हर जिह्वा राम-राम जप रही है। रोम-रोम में राम रमे हैं। पूरा राष्ट्र राममय है। ऐसा लगता है हम त्रेतायुग में आ गए हैं। आज रघुनंदन राघव रामलला, हमारे हृदय के भावों से भरे संकल्प स्वरूप सिंहासन पर विराज रहे हैं। आज हर रामभक्त के हृदय में प्रसन्नता है, गर्व है, संतोष के भाव हैं। उन्होंने कहा कि आखिर भारत को इसी दिन की तो प्रतीक्षा थी। भाव-विभोर कर देने वाली इस दिन की प्रतीक्षा में लगभग पांच शताब्दियां व्यतीत हो गईं, दर्जनों पीढियां अधूरी कामना लिए इस धराधाम से साकेतधाम में लीन हो गईं, किन्तु प्रतीक्षा और संघर्ष का क्रम सतत जारी रहा। श्रीरामजन्मभूमि, संभवतः विश्व में पहला ऐसा अनूठा प्रकरण रहा होगा, जिसमें किसी राष्ट्र के बहुसंख्यक समाज ने अपने ही देश में अपने आराध्य के जन्मस्थली पर मंदिर निर्माण के लिए इतने वर्षों तक और इतने स्तरों पर लड़ाई लड़ी हो।
योगी ने कहा कि सन्यासियों, संतों, पुजारियों, नागाओं, निहंगों, बुद्धिजीवियों, राजनेताओं, वनवासियों सहित समाज के हर वर्ग ने जाति-पांति, विचार- दर्शन, उपासना पद्धति से ऊपर उठकर राम काज के लिए स्वयं का उत्सर्ग किया। आज वह शुभ अवसर आ ही गया कि जब कोटि-कोटि सनातनी आस्थावानों के त्याग और तप को पूर्णता प्राप्त हो रही है। आज संतोष इस बात का भी है कि मंदिर वहीं बना है, जहां बनाने का संकल्प लिया था। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष गोविंद देव गिरि जी महाराज ने कहा कि आज अयोध्या अत्यंत उल्लास, समाधान और कृतज्ञता से भरा हुआ है। संपूर्ण राष्ट्र नहीं, पूरे विश्व में भगवान श्रीराम की प्रतिष्ठा से आलोकित होने का पर्व आरंभ हो चुका है। यह केवल एक मंदिर में एक मूर्ति की प्रतिष्ठा नहीं है। यह देश की अस्मिता, स्वाभिमान और आत्मविश्वास की प्रतिष्ठा है। 500 वर्षों की प्रतीक्षा के बाद यह संभव हो सका है। अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के बाद गोविंद दे गिरि जी महाराज ने रामभक्तों को सम्बोधित करते हुए कहा कि कारण तो अनेक होते हैं लेकिन अनेक कारण मिलते-मिलते आखिर वे एक विशिष्ट स्तर तक पहुंच जाते हैं। उस स्तर पर कोई महापुरुष हम लोगों को उपलब्ध होता है। उस विभूति के कारण युग परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार का परिवर्तन लाने के लिए अपने जीवन को साधना पड़ता है। इस प्रकार जीवन साधने वाले हमारे इस देश की परंपरा के अनेक महान रत्नों में आज हम लोगों को समय, युग और सनातन की आवश्यकता के रूप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्राप्त हुए हैं। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के गोविंद देव गिरि जी महाराज ने कहा कि यह देश ही नहीं विश्व का सौभाग्य है कि एक राजर्षि हम लोगों को प्राप्त हुआ।
आम लोगों की सहभागिता ने कार्यक्रम को बनाया अद्वितीय
रामनगरी अयोध्या में भगवान श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरा देश राममय था। इस चिर-प्रतीक्षित आयोजन का साक्षी बनने के लिए देश का हर रामभक्त किसी न किसी तरह से अपने आपको इससे जोड़ने में लगा हुआ था, जिसने इस समारोह को कई मायनों में अद्वितीय व अनोखा बना दिया। देश के लगभग हर हिस्से से रामभक्तों ने ऐसी-ऐसी भेंट भेजी, जिसने कीर्तिमान रच दिया। महाराष्ट्र के कोल्हापुर से आई 1,400 किलो वजनी कड़ाही में चर्चित शेफ विष्णु मनोहर ने एक साथ डेढ़ लाख भक्तों के लिए 7,000 किलो राम हलवा तैयार किया था। रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के दिन देश भर के 05 लाख मंदिरों में एक साथ भजन-कीर्तन व भंडारे का आयोजन किया गया। राम मंदिर की शोभा बढ़ाने के लिए जलेसर से अष्टधातु से निर्मित 2,100 किलो का घंटा अयोध्या धाम पहुंचा, जिसे तैयार करने में दो वर्ष से अधिक का समय लगा था। इसी तरह गुजरात से पहुंची 108 फीट लंबी व 3,610 किलोग्राम की अगरबत्ती को प्रज्वलित किया गया, जो कि दो महीने से अधिक रामनगरी को सुगंधित करती रहेगी।
इसी तरह गुजरात के दरियापुर से सोने-चांदी की परत चढ़ा हुआ 500 किलो का नगाड़ा पहुंचा, जिसका निर्माण डबगर समाज ने किया है। तालानगरी अलीगढ़ से राम लला मंदिर के लिए पीतल और स्टील से बना चार सौ किलो का ताला पहुंचा। जिसके चाबी का वजन 30 किलोग्राम है और यह तीन फुट चार इंच लंबी भी है। नेपाल के जनकपुर में सीताजी की जन्मभूमि से भगवान राम के लिए 3,000 से अधिक उपहार लगभग 30 वाहनों के जरिए अयोध्या पहुंचे। महाकाव्य रामायण में वर्णित अशोक वाटिक से एक शिला लेकर श्रीलंका का एक प्रतिनिधिमंडल भी अयोध्या पहुंचा। इसी तरह लखनऊ के सब्जी विक्रेता अनिल कुमार साहू ने राम मंदिर को आठ देशों का समय बताने वाली घड़ी भेंट की। जो भारत के साथ टोक्यो (जापान), मॉस्को (रूस), दुबई (यूएई), बीजिंग (चीन), सिंगापुर, मेक्सिको सिटी (मेक्सिको), वाशिंगटन डीसी और न्यूयॉर्क (अमेरिका) का समय दर्शाती है।
सूरत के हीरा व्यापारी अरविंदभाई मंगलभाई पटेल ने 5,000 अमेरिकी हीरे और दो किलोग्राम चांदी का उपयोग करके राम मंदिर की थीम पर हार राम मंदिर को भेंट किया। जिसे चालीस कारीगरों ने 35 दिनों में तैयार किया था। गुजरात से अयोध्या 5,500 किलोग्राम के ध्वजदंड पहुंचे। जिसे अहमदाबाद में शास्त्रोक्त रूप से भरतभाई मेवाड़ा और उनकी टीम अंबिका इंजीनियरिंग वक्र्स ने पीतल का तैयार किया था। हैदराबाद के 64 वर्षीय चल्ला श्रीनिवास शास्त्री ने सोने की परत चढ़े खड़ाऊं राम मंदिर को भेंट की और इसके लिए शास्त्री ने लगभग 8,000 किमी की पैदल दूरी भी तय की थी। इसी तरह अयोध्या में जलाया गया दुनिया का सबसे बड़ा दीया भी प्रज्वलित किया गया। जिसमें 21 हजार लीटर तेल और 125 किलो रूई का इस्तेेमाल हुआ।
श्रीरामजन्म तीर्थ भूमि ट्रस्ट के महासचिव एवं विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के अंतर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय ने अयोध्या में श्रीराम के भव्य-नव्य मंदिर निर्माण में मिले देशभर से योगदान की भी जानकारी दी। चंपत राय ने बताया कि देशभर से स्वर्ण, चांदी समेत बहुत कुछ मिला है। उन्होंने बताया कि एटा के जलेसर से 24 कुंतल का विशाल घंटा स्वेच्छा से भेजा है। गुजरात के दमगर समाज ने विशाल नगाड़ा भेंट किया है। जनकपुर यानि मिथिला सीतामणी बक्सर और रामजी के ननिहाल छत्तीसगढ़ से बड़े थाल ’भार’ आए हैं। भार का अर्थ संत आदि समझते हैं। भार में अनाज, चैवड़ा, सोना-चांदी, फल, मेवा, वस्त्र हैं। जोधपुर के एक महंत ने छह कुंतल घी बैलगाड़ियों से लाया गया है। ट्रस्ट के महासचिव ने बताया कि युगों-युगों तक श्रीराम मंदिर के निर्माण की जमीन को मजबूत करने और नींव में मध्यप्रदेश के छतरपुर से गिट्टी आई है। राख रायबरेली से लाई गई है।
तेलांगाना और कर्नाटक से ग्रेनाइट आया है। मंदिर में राजस्थान के भरतपुर का पत्थर है। सेफद रंग मार्बल राजस्थान के मकराना का है। मंदिर के दरवाजों की लकड़ी महाराष्ट्र के वल्लार शाह की है। उस पर चढ़ा सोना मुम्बई के एक डायमंड के व्यापारी ने भेंट किया है। भगवान की मूर्ति जिस पत्थर से बनी है वह कर्नाटक का है। इसे मैसूर के कारीगर अरूण योगीराज ने बनाई है। यह प्रभु श्रीराम के बाल्यकाल अव्यस्था का स्वरूप है। मंदिर की सीढ़ियों पर दो गज, सिंह, एक जगह हनुमान और गुरूड़ आदि राजस्थान के मूर्तिकार ने ने बनाए हैं। लकड़ी के दरवाजों की नक्काशी का कार्य हैदराबाद के कारीगारों ने किया है। ये सारे कारीगर तमिलनाडु के थे। मार्बल के काम में राणा मार्बल के कारीगरों ने सम्पन्न किया है। भगवान के वस्त्र कपड़े दिल्ली के कारीगर मनीष त्रिपाठी अपने हाथ से अयोध्या में ही तैयार किए हैं। भगवान के आभूषण लखनऊ के एक व्यापारी राजस्थान से बनवाकर लाए हैं।
प्रभु श्रीराम के आगमन में देश भर में जली रामज्योति
सदियों की प्रतीक्षा, संघर्ष, तप, धैर्य व आस्था की परिणति जब राम मंदिर के रूप में करोड़ों रामभक्तों को मिली, तो भावना से भरे हृदय भाव-विभोर हो उठे। 22 जनवरी 2024 दिन सोमवार यह भारत के इतिहास का एक ऐतिहासिक दिन बन गया। अयोध्या में रामलला विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा की गई, जिसका उत्सव पूरे देश ने मनाया। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के पावन पर्व पर पूरे भारतवर्ष में दीपावली मनाई गई। घरों में रंगोली बनाकर व रंग-बिरंगी झालरों से अपने भवन को सजाकर सभी ने दीपों की श्रृंखलाएं प्रज्वलित कीं और सुंदर कांड पाठ के साथ-साथ भजन-कीर्तन कर अपने आराध्य को याद किया। इसी तरह रामनगरी अयोध्या में भी दीपावली जैसा उत्सव दिखा। अयोध्या में सरयू घाट पर दीप जलाकर प्राण प्रतिष्ठा का जश्न मनाया गया। राम मंदिर, राम की पैड़ी, कनक भवन, हनुमान गढ़ी, गुप्तार घाट, सरयू घाट, लता मंगेशकर चैक, मणिराम दास छावनी सहित 100 मंदिरों व प्रमुख चैराहों और सार्वजनिक स्थानों पर 10 लाख से अधिक दीयों को प्रज्वलित किया गया।
उल्लास के वातावरण में चहुंओर श्रद्धा और आस्था की हिलोरों के बीच उमड़ा सैलाब दीपोत्सव का साक्षी बनने के लिए आतुर दिखा। श्रद्धालुओं में आतुरता का वेग सरयू की लहरों के समानांतर दिखा तो आस्था का आवेग आकाश को स्पर्श करता प्रतीत हुआ। जैसे सैकड़ों वर्ष पहले त्रेतायुग में वनवास काटकर लौटे रामजी के अयोध्या वापसी में दीपावली मनाई गई थी, वैसे ही प्राण प्रतिष्ठा पर देश भर में दीपोत्सव मना, वह भी रामजी के घर वापसी पर। सरयू तट पर जब रामज्योति प्रकाशमान हुई, तब अविस्मरणीय व अलौकिक दृश्य साकार हुआ। शाम होते ही जैसे ही रामज्योति प्रकाशमान हुई और इस अलौकिक छटा को जिसने भी देखा, वह निहाल हो उठा। इसके साक्षी बनने वाले प्रत्येक व्यक्ति ने स्वयं को धन्य मान लिया। जगमगाहट ऐसी मानो तेल और बाती में परंपरा की थाती सहेजे दीपों के रूप में धरती पर उतर आए हों सितारे। दीपों की कतार देख लगा कि टिमटिम करते अनगिनत दीपों का सतरंगा चंद्रहार। इसे जिसने भी देखा, बस निहारता रह गया। मुंह खोले, लेकिन सुंदरता का वर्णन करने को शब्द मौन रह गया।
विद्युत झालरों की प्रकाश में रामज्योति की झलक मात्र से मन विभोर और तन विह्वल हो उठा। दीपों की जगमग और फूलों की महमह। सरयू घाट की सीढ़ियां दीपों की रोशनी से जगमगा उठी। गंगा आरती पूजन के बाद निर्मल गंगा की लहरों के बीच इठलाते-बहते दीप अलौकिक छटा बिखेर रहे थे। हजारों लोग अद्भुत नजारे का गवाह बने। अद्भुत नजारे को आंखों में समा लेने के लिए सैकड़ों लोग घाट पर जमा हुए। दीपोत्सव से अयोध्या धाम की आभा निखर उठी। घाट पर रोशन हजारों दीयों की जुगलबंदी लोगों को एक अनूठा अहसास करा रही थी। यह लोक उत्सव आज अपनी अलौकिक आभा के चलते प्रिय उत्सव बन गया। घाट पर जलते हजारों दीयों की रोशनी ने मां गंगा के गले में झिलमिल चंद्रहार दमकने का आभास कराया, वहीं विद्युत झालरों और हाइलोजन बल्बों की सजावट सतरंगी इंद्रधनुष का आभास करा रही थी। इस मौके पर गंगा तट पर जमकर आतिशबाजी भी हुई। इससे आकाश झिलमिल रंग-बिरंगी रोशनियों से जगमगा उठा।
ये हस्तियां बनीं ऐतिहासक क्षण की गवाह
श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के आयोजन में बड़ी संख्या में सिनेमा, खेल, राजनीति, कारोबारी, आध्यात्मिक सहित विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियां शामिल रहीं। आध्यात्मिक जगत से जुड़े कई साधु-संतों भी इस दौरान रामलला के भव्य प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का हिस्सा बनें, जिनमें श्री श्री रविशंकर, मोरारी बापू, योग गुरु बाबा रामदेव, बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, जगद्गुरू स्वामी रामभद्राचार्य, साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती सहित कई अन्य संत शामिल रहे। इस भव्य ऐतिहासिक आयोजन के दौरान फिल्मी हस्तियों में अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन, रजनीकांत, चिरंजीवी, रामचरण, माधुरी दीक्षित, डॉ. श्रीराम नेने, कंगना रनौत, रणबीर कपूर, आलिया भट्ट, अनुपम खेर, रणदीप हुड्डा, लिन लैशराम, विक्की कौशल, कैटरीना कैफ, विवेक ओबरॉय, आयुष्मान खुराना, अभिनेता व राजनेता पवन कल्याण, कवि कुमार विश्वास, कवि शैलेश लोढ़ा, गायक सोनू निगम, हरिहरन, शंकर महादेवन, कैलाश खेर, संगीतकार अनु मलिक, निर्देशक-निर्माता सुभाष घई, राजकुमार हिरानी, रोहित शेट्टी, सेफ संजीव कपूर, गजेंद्र चैहान और मधुर भंडारकर सहित अन्य लोग शामिल हुए।
यह भी पढ़ेंः-प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में प्रशासन की भूमिका
इसके साथ ही दिग्गज उद्योगपति व रिलायंस ग्रुप के मालिक मुकेश अंबानी और उनकी पत्नी नीता, अनिल अंबानी, बिड़ला समूह के मालिक कुमार मंगलम बिड़ला, एयरटेल के मालिक सुनील भारती मित्तल भी प्राण प्रतिष्ठा समारोह का हिस्सा बने। कारोबारी मुकेश अंबानी अपने दामाद आनंद पीरामल, बेटी ईशा, पत्नी नीता, बेटे आकाश, बहू श्लोका, छोटे बेटे अनंत और उनकी होने वाली पत्नी राधिका मर्चेंट के साथ प्राण प्रतिष्ठा समारोह में पहुंचे थे। खेल जगत से वेंकटेश प्रसाद अपनी पत्नी जयंती, मिताली राज, साइना नेहवाल, सचिन तेंदुलकर, अनिल कुंबले अपनी पत्नी चेतना रामतीर्थ और रवीन्द्र जडेजा अपनी पत्नी व भाजपा विधायक रिवाबा जडेजा के साथ मौजूद रहे। आयोजन का केन्द्र गर्भगृह में स्थापित रामलला की प्रतिमा बनाने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज रहे, जिन्होंने कहा कि वर्तमान में वह दुनिया के सबसे भाग्यशाली व्यक्ति हैं। कार्यक्रम में शामिल होने से पहले अनुपम खेर ने हनुमानगढ़ी में दर्शन करते हुए कहा कि प्रभु राम के पास जाने से पहले हनुमान जी के दर्शन करना बहुत जरूरी है। हिंदू धर्म में ऐसा माहौल पहले कभी नहीं देखा। यह ऐतिहासिक है।
(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)