लखनऊः स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित हो रही राजधानी का जैसे-जैसे विस्तारीकरण हो रहा है, वैसे-वैसे यहां पर जमीनों की खरीद-फरोख्त का गोरखधंधा भी जोरों पर चल रहा है। अधिकारियों की सुस्ती का नतीजा है कि यहां पर भू-माफिया सरकारी जमीनों की भी प्लाटिंग कर उसे बेच दे रहे हैं। जब मामला उच्च स्तर तक पहुंचता है, तभी इनके खिलाफ कार्रवाई की जाती है। ऐसे में राजधानी में अपने आशियाने का सपना देखने वाले आम लोग लुटने को मजबूर हैं।
शहर में नगर निगम और लखनऊ विकास प्राधिकरण की कई ऐसी कार्रवाइयां हुई हैं, जिनके बारे में पूर्व में भी जोन प्रभारियों को जानकारी थी लेकिन वह इसे अनसुना करते रहे। जमीन पर जब पूरी तरह से कब्जा हो गया और उच्चाधिकारियों ने कार्ययोजना में जरूरत पड़ने पर पड़ताल कराई तो खुलासा हुआ कि अमुक भूमि पर प्लाटिंग हो चुकी है। बेचने वाले ने खसरा-खतौनी कहीं और की दिखाई और बेंच दिया सरकारी जमीन। मजेदार बात यह है कि लिखा-पढ़ी में ऐसी व्यवस्था नहीं है, जिसके जरिए फर्जीवाड़ा पकड़ा जा सके। निगम और एलडीए की जो प्रक्रिया है, वह बेहद कठिन है। इसके जरिए पड़ताल में अधिकारी भी मदद नहीं करते हैं। किसी दूसरे क्षेत्र के व्यक्ति को यह पता भी नहीं होता है कि वह जिस जमीन को खरीद रहा है, वह कितनी साफ-सुथरी है।
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अधिकारियों की उदासीनता का एक यह भी उदाहरण है, जिसमें बीते दिनों प्राधिकरण भवन के कमेटी हॉल में प्राधिकरण दिवस का आयोजन किया गया। यहां अपर सचिव ज्ञानेन्द्र वर्मा लोगों की समस्याओं को सुन रहे थे। महानगर विस्तार निवासी स्मिता अग्रवाल ने बसंत कुंज योजना के सेक्टर-ओ में आवंटित भूखण्ड की रजिस्ट्री के सम्बंध में प्रार्थना पत्र दिया। ओमप्रकाश यादव ने गोमती नगर विस्तार के सेक्टर-6 में भूखंड की रजिस्ट्री के लिए आवेदन किया। नेहरू इन्क्लेव के पी-22 निवासी आयुष मेहरोत्रा ने ऊपर के फ्लोर में रहने वाले लोगों द्वारा छत पर अवैध निर्माण की शिकायत की। मोहम्मद सुहैल ने आजाद नगर योजना में भूखंड के म्यूटेशन के सम्बंध में प्रार्थना पत्र दिया। बैठक में कुल 18 शिकायतें आईं, लेकिन इनमें केवल 04 का निस्तारण किया गया था। अभी हाल में ही 18 मई को नगर निगम की 06 करोड़ से अधिक की भूमि हुई कब्जा मुक्त कराई गई। इस तरह का अभियान निगम लगातार चला रहा है।
तहसील सदर क्षेत्र में नगर निगम की करीब 0.430 हेक्टेयर जमीन कब्जा मुक्त कराई गई। यह मामला ग्राम जेहटा का है। यहां भूमि जिसकी खसरा संख्या 1263/2263 है, इसका बाजार मूल्य करीब 6,94,02,000 रूपए है। इस भूमि पर सत्येन्द्र अग्निहोत्री नाम के व्यक्ति ने प्लाटिंग व बाउंड्रीवाल कर रखी थी। खसरा संख्या 1263/2263 अभिलेखों में नवीन परती दर्ज है। यह नगर निगम में निहित है। बताया जाता है कि इस भूमि को अधिकारियों ने कब्जा मुक्त करा लिया, लेकिन सवाल यह है कि इसकी शिकायत तो प्लाटिंग के शुरूआती दिनों में की गई थी, तो तभी कार्रवाई क्यों नहीं की गई थी ? इसी तरह से अमौसी ग्राम में 13 बीघा व 26 बीघा जमीन को मुक्त कराने में भी सफलता मिली है।
काफी लोगों ने अपनी मेहनत की कमाई यहां प्लाट खरीदने में लगाई थी। जिस तरह से कार्रवाई की गई है, उसमें पैसा लगाने वालों को न्याय की उम्मीद कम ही है। ऐसी समस्या नगर निगम में शामिल उन क्षेत्रों में ज्यादा है, जहां पर अभी हाल में ही निगम के चुनाव हुए हैं। इन क्षेत्रों में 2019 से ही अस्थिरता शुरू हो चुकी थी। जब से निगम में शामिल करने की बात सामने आई थी, पंचायत के चुनाव भी नहीं कराए गए थे। ग्राम प्रधानों का कार्यकाल समाप्त होते ही उन्होंने इस भूमि की जिम्मेदारी से हाथ खींच लिया और वह सरकारी भूमि ग्राम पंचायत क्षेत्र से नजूल की बताई जाने लगी। न निगम के अधिकारियों ने इसकी निगरानी की और न ही किसी राजस्व अधिकारी ने।
लेखपालों को तो पूरी जानकारी थी, लेकिन उन्होंने सरकारी जमीन पर कब्जेदारी पर कार्रवाई कराने में होने वाले जोखिमों के चलते रिस्क नहीं लिया। चर्चा तो यह भी है कि लेखपालों की मिलीभगत से ही यह खेल खेला गया। इसमें कई विभागों के लोग मोटा मुनाफा ले चुके हैं। इस धांधली में यदि किसी का नुकसान हुआ है, तो वह हैं खरीददार। अभी निगम के उन क्षेत्रों की काफी जमीन लापता है, जहां पर हाल में ही पहली बार निगम के चुनाव कराए गए। कुछ लोगों ने इस जमीन पर धार्मिक स्थल भी बना रखा है। कृष्णानगर और पंडितखेड़ा में शुरूआती दिनों में कई बार शिकायत करने पर कार्रवाई नहीं की गई थी। मामला बढ़ने पर कहीं एलडीए ने सीलिंग की, तो कहीं निगम ने नोटिस दिया है।
कांशीराम तिराहा पर तो सड़क किनारे लगाए गए स्थान सूचक बोर्ड को एक कॉमर्शियल इमारत बनाने के दौरान इमारत के अंदर कर लिया गया था। तमाम शिकायतों के बाद केवल एक फुट छज्जा काटने के लिए कहा गया था। अब यह इमारत सड़क से सटाकर तैयार है और इसमें दुकानें भी चल रही हैं। यहीं पास में ही दो बिल्डिंग पर सीलिंग की कार्रवाई एलडीए ने की है। दोनों ही इमारतें कॉमर्शियल हैं। एक को सील किया गया और मुक्त किया गया। दूसरी बार फिर सील किया गया और अब यह फिर सीलिंग से मुक्त है। इसमें दुकानें लगभग तैयार हैं। आखिर ऐसा भी मानक क्या, जो बिल्डिंग बनने के बाद पूरी हो जाती हैं।
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