लखनऊः बाढ़ और सूखे का सामना करना किसानों की आदत बन गई है। ऐसे में किसान अब ऐसी फसलों को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं, जो उनको हर हाल में मुनाफा देकर ही जाए। इस बार राजधानी के सैकड़ों किसानों ने अपने खेतों में तिल की बुवाई की है। किसानों का मानना है कि दो दशक पहले की तरह ही यदि इसे खेतों में जगह दी गई, तो तिल से अच्छी कमाई होगी।
तिल की मांग लगातार बढ़ रही है।
खरीफ सीजन के दौरान इस फसल का रकबा अगर देखना है, तो लखनऊ के सिसेंडी, उन्नाव के पुरवा और रायबरेली के सेमरी क्षेत्र पहुंचना होगा। यहां इस बार खेतों में तिल ही तिल दिख रहा है। यह एक ऐसी बेल्ट है, जो तीन जिलों को जोड़ती है। पूरा भौगोलिक क्षेत्र खेती से सम्बंधित है। नौकरी पेशेवर कम हैं, लेकिन खेती में ज्यादा लोग पूरी तन्मयता से समय खपा रहे हैं। इस क्षेत्र में पानी के संसाधन भी प्रोत्साहित करने वाले नहीं हैं, इसलिए लोगों को बारिश के पानी पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ता है। दिसम्बर में भी लोग बारिश के लिए आसमान निहारने लगते हैं। सर्दियों के दिनों में गेहूं जैसी फसल को सींचने और बोने के लिए ज्यादा किसान बारिश की इच्छा रखते हैं। यदि एक बार भी इस फसल के लिए बारिश हो जाती है, तो सिंचाई में खर्च होने वाला पैसा बच जाता है।
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बारिश में काफी किसान धान लगाना चाहते हैं। ऐसे भी किसान बड़ी संख्या में हैं, जो गन्ना उत्पादन में रूचि रखते हैं लेकिन इन फसलों के लिए ज्यादा पानी की जरूरत होती है। फसल से आने वाली रकम तो सिंचाई में ही चली जाती है, इसलिए इनसे किसानों की दूरियां बढ़ गई हैं। अब धीरे-धीरे तिल की खेती में फिर से किसानों का विश्वास जगा है। तमाम ऐसी सड़कें हैं, जिनसे गुजरते समय खेतों में केवल तिल के पौधे ही दिखते हैं। शफीपुर उन्नाव के किसान दवींद्र और केदारनाथखेड़ा के किसान आनंदकंद कहते हैं कि तिल की खेती का भी अपना मजा है। इसमें लागत कम लगती है। यदि यह घास से बच जाए और फलियां अच्छी तरह से खिलें, तो आमदनी भी काफी होती है। तिल की खेती अनुपजाऊ जमीन में की जाती है। हल्की रेतीली और दोमट मिट्टी उत्पादन के लिए सही होती है। किसानों का कहना है कि अगली बार इसमें अरहर, मक्का एवं ज्वार सहफसली के रूप में बोया जाएगा। जुलाई में बोई जाने वाली फसल की खेती में पानी की तो कम जरूरत पड़ती ही है, साथ ही इससे पशुओं के लिए चारा भी उपलब्ध हो जाता है।
- शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट
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