राष्ट्रमंडल खेलों में कामयाबी के लिहाज से ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और कनाडा के बाद भारत का नंबर आता है। खेल जगत में ओलंपिक और एशियाड के बाद कॉमनवेल्थ गेम्स की अहमियत है। बर्मिंघम में हुए इन खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने खूब पदक जीते। हमारा प्रदर्शन आशा के अनुरूप ही कहा जाएगा। कुल 61 पदक हासिल कर पदक तालिका में हम चौथे स्थान पर रहे। सर्वोच्च स्थान पर हर बार की तरह ऑस्ट्रेलिया का कब्जा बरकरार रहा। कंगारू देश का इसमें हमेशा वर्चस्व रहा है। अब तक हुए 21 कॉमनवेल्थ गेम्स में ऑस्ट्रेलिया जहां पदक तालिका में 13 बार पहले स्थान पर रहा, वहीं इंग्लैंड की टीम 7 बार शीर्श स्थान पर रही। सिर्फ एक बार कनाडा चोटी पर रहा है। बर्मिंघम में ऑस्ट्रेलिया ने कुल 178 पदक जीते, जिसमें 67 तो स्वर्ण पदक हैं। इसके बाद मेजबान इंग्लैंड का नंबर है, जिसने 176 पदकों पर कब्जा जमाया। कनाडा तीसरे स्थान पर है, जिसके खिलाड़ियों ने 92 पदकों पर हाथ साफ किया। इसके बाद भारत का नंबर है। हमारे खिलाड़ियों ने 22 स्वर्ण, 16 रजत और 23 कांस्य पदक अपनी झोली में डाले। दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स- 2010 में 101 पदकों के साथ भारत दूसरे स्थान पर था। पिछले कॉमनवेल्थ गेम्स ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट शहर में 2018 में हुए थे, जिसमें भारत ने 66 पदक जीते थे। इस तरह बर्मिंघम में पदकों की संख्या कुछ कम रही, लेकिन यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि इस बार निशानेबाजी को इन खेलों से हटा दिया गया था। यदि यह इवेंट भी शामिल रहता, तो भारत के पदकों की संख्या और बढ़ जाती। हमारे खिलाड़ी निशानेबाजी में दो-चार पदक अवश्य लाते। यह भारत का पसंदीदा खेल है। अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हमारे शूटर बेहतर प्रदर्शन करते हैं। खैर, अब जो नहीं हुआ उस पर माथापच्ची के बजाय आइए देखते हैं बर्मिंघम में भारत ने किन खेलों में डंका बजाया और किन खिलाड़ियों ने सुर्खियां बटोरी।
पहलवानों ने विपक्षियों को चटाई धूल
कुश्ती भारत का परंपरागत और लोकप्रिय खेल है। सबसे बड़ी बात यह कि हमारा कोई भी पहलवान चाहे वह पुरुष हो या महिला, खाली हाथ नहीं लौटा। सभी ने कोई न कोई पदक अवश्य जीता। इस तरह कुश्ती में भारत को कुल 12 पदक मिले। जब भारत के दिग्गज पहलवान मुकाबले के लिए उतरे, तो पदकों की झड़ी लग गई। बजरंग पूनिया, दीपक पुनिया और साक्षी मलिक ने स्वर्ण पदक जीत कर देशवासियों को खुश कर दिया। अंशु मलिक को पदार्पण करते हुए रजत पदक मिला, जबकि दिव्या काकरान और मोहित ग्रेवाल को कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा। टोक्यो ओलंपिक में बजरंग स्वर्ण जीतने से चूक गए थे, उन्हें वहां कांस्य पदक मिला था लेकिन राष्ट्रमंडल खेलों में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। बजरंग का 65 किलो वर्ग में इतना दबदबा रहा कि उन्होंने अपने सभी मुकाबले एकतरफा अंदाज में जीत लिए। वैसे कुश्ती में पदकों का खाता खोला महिला पहलवान अंशु मलिक ने। उन्होंने 57 किग्रा फ्रीस्टाइल स्पर्धा में रजत पदक जीता। अंशु फाइनल में नाइजीरिया की ओडुनायो से हार गईं, इसलिए उनके हाथ सिल्वर ही लगा। बजरंग के बाद सोना जीतने की बारी थी साक्षी मलिक की। साक्षी ने 62 किग्रा के फाइनल मुकाबले में कनाडा की गोंजालेस को चित कर दिया, उस रात तीसरा स्वर्ण दीपक पूनिया ने फाइनल में पाकिस्तान के पहलवान मोहम्मद ईनाम को पटखनी देकर हासिल किया। अगले दिन हमारे तीन और पहलवानों ने भी सोने का तमगा हथिया लिया यानी कुल 06 स्वर्ण पदक कुश्ती में आ गए। टोक्यो ओलंपिक के रजत पदक विजेता रवि दहिया, विनेश फोगाट और नवीन कुमार ने अपने प्रतिद्वंदियों को चित करके स्वर्ण पदक ले लिया। पूजा गहलोत, पूजा सिहोर और दीपक नेहरा ने कांस्य पदक जीते। इस तरह कुश्ती की स्पर्धा में हमारे पहलवानों ने निराश नहीं किया। यह बताता है कि इस खेल में भारत का दबदबा आगे भी रहेगा।
मुक्केबाजों ने पदकों पर लगाए पंच
भारत के मुक्केबाजों ने भी जोरदार पंच लगा कर पदक बटोरे। अमित पंघाल ने 51 किग्रा वर्ग, निकहत जरीन ने 50 किग्रा और नीतू गंघास 48 किग्रा वर्ग में स्वर्णिम सफलताएं दिलाईं। अमित और नीतू ने फाइनल में मेजबान देश इंग्लैंड के प्रतिद्वंदी को एकतरफा मुकाबले में हरा दिया। 26 साल के अमित पंघाल ने पिछले कॉमनवेल्थ गेम्स में रजत पदक जीता था, लेकिन इस बार उन्होंने पदक का रंग बेहतर कर दिया। पहली बार राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा ले रही 22 साल की नीतू ने इन्हें यादगार बना दिया। हरियाणा की मुक्केबाज ने फाइनल में विश्व चैम्पियनशिप 2019 की कांस्य पदक विजेता डेमी जेड को सर्वसम्मत फैसले में 5-0 से पराजित कर दिया। निकहत जरीन हाल ही में विश्व चैंपियन बनी हैं। उन्होंने एकतरफा फाइनल मुकाबले में उत्तरी आयरलैंड की कार्ली मैकनोला को 5-0 से हरा कर सोना जीत लिया। महिला बॉक्सर जैसमीन सेमीफाइनल में इंग्लैंड की रिचर्ड्सन से हार गईं, इसलिए उन्हें कांस्य पदक मिला। टोक्यो ओलम्पिक में कांस्य पदक जीतने वाली लवलीना बारगोहेन के हाथ निराशा हाथ लगी, उन्हें कोई पदक नसीब नहीं हुआ।
भारोत्तोलक चानू ने दिलाया पहला स्वर्ण
भारोत्तोलन एक ऐसा इवेंट है, जिसमें भारत ने कई दिग्गज पैदा किए हैं। महिला और पुरुष दोनों ही वर्ग में हमारे खिलाड़ियों ने पदक जीते। टोक्यो ओलम्पिक में रजत पदक जीतने वाली मीराबाई चानू ने कॉमनवेल्थ गेम्स में देश को पहला स्वर्ण पदक दिलाया। चानू का इन खेलों में यह लगातार तीसरा पदक है। उन्होंने कुल 201 किलो वजन उठा कर रिकॉर्ड बनाया। मीरा को खुद पर इतना भरोसा था कि उन्होंने पहले ही कह दिया था कि ‘मेरा मुकाबला सिर्फ मुझसे है, पीला तमगा मिलना तय है।’ उन्होंने गोल्ड कोस्ट में भी गोल्ड जीता था। महाराष्ट्र के सांगली में पान की दुकान चलाने वाले भारोत्तोलक संकेत महादेव ने रजत पदक जीता। गुरुराजा को कांस्य पदक मिला। अगले दिन युवा जेरेमी लालरिननुंगा ने भी स्वर्ण और बिंदिया रानी ने रजत पदक जीत लिया। भारत के एक और खिलाड़ी लवप्रीत सिंह ने कुल 355 किग्रा का वजन उठा कर कांस्य पदक हासिल किया। पैरा पावर लिफ्टिंग में सुधीर ने भी सोना जीत लिया। इस तरह हमारे वेट लिफ्टरों ने 03 स्वर्ण सहित कुल 09 पदक जीते।
लॉन बॉल्स में रच दिया इतिहास
यह एक कम जाना-पहचाना खेल है, लेकिन इस बार कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत की महिला टीम ने स्वर्ण पदक जीत कर इतिहास रच दिया। भारत का लॉन बॉल्स के किसी भी स्पर्धा में यह 12 साल में पहला पदक है। भारतीय महिला टीम पहली बार इसके फाइनल में पहुंची और सोना भी हथिया लिया। भारत की अगुवाई करने वाली लवली चौबे झारखंड पुलिस में कांस्टेबल है। हमारी पुरुष टीम भी पीछे नहीं रही। उसने इस इवेंट में रजत पदक जीत लिया। भारत ने सेमीफाइनल में इंग्लैंड को हराकर 13-12 से हरा कर रजत पदक पक्का कर लिया था। यह आउटडोर खेल है। इसका एक प्राचीन रूप मिस्र में खेला जाता है। अब यह यूरोपीय देशों में काफी प्रचलित है। हालांकि, यह ओलम्पिक में शामिल नहीं है।
हॉकी में फिर मिली ऑस्ट्रेलिया से पराजय
भारत की पुरुष हॉकी टीम से देश को बड़ी उम्मीद थी, मगर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से हार कर सोने का तमगा नहीं जीत पाई। उसे रजत पदक से संतोष करना पड़ा। हमारे खिलाड़ियों ने पूरे टूर्नामेंट में बेहतरीन खेल दिखाया, लेकिन फाइनल मुकाबले में कंगारूओं का किला नहीं भेद पाए और 7-0 से मैच गंवा दिया। इतनी करारी हार की कल्पना किसी ने नहीं की थी। दिल्ली में 2010 के कॉमनवेल्थ की कहानी फिर दोहराई गई, वहां ऑस्ट्रेलिया ने भारत को फाइनल में 8-0 से हराया था। कॉमनवेल्थ में भारत को अभी तक हॉकी का स्वर्ण पदक नहीं मिल पाया है। इसमें सबसे बड़ी बाधा ऑस्ट्रेलिया ही रहती है। जहां तक महिला टीम की बात है, उसने भी बढ़िया खेल दिखाया। सविता पूनिया की कप्तानी में भारतीय टीम ने कॉमनवेल्थ गेम्स में 16 साल का पदक का सूखा खत्म किया। भारत ने न्यूजीलैंड को पेनाल्टी शूटआउट में 2-1 से हरा कर कांस्य पदक हासिल किया। महिला हॉकी टीम ने मेलबर्न-2006 में रजत और मैनचेस्टर-2002 में स्वर्ण जीता था।
महिला क्रिकेट ने किया प्रभावित, जीता रजत
कॉमनवेल्थ गेम्स में पहली बार टी-20 महिला क्रिकेट को शामिल किया गया था। भारत की टीम शानदार खेल दिखाते हुए फाइनल में पहुंच गई थी। उसने इंग्लैंड जैसी टीम को रोमांचक सेमीफाइनल मुकाबले में चार रन से हरा दिया, लेकिन हमारी महिला टीम फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को मात देने में फिर नाकाम रहीं। भारतीय टीम 09 रन से हार कर रजत पदक जीत सकी। कंगारू टीम ने 08 विकेट पर 161 रन बना कर भारत के सामने जीत का लक्ष्य रखा। 02 विकेट पर 90 रन बनाकर हमारी टीम अच्छी स्थिति में थी। लग रहा था कि 162 का लक्ष्य आसानी से पूरा हो जाएगा, मगर कप्तान हरमनप्रीत के आउट होने के बाद भारतीय टीम दबाव में आ गई फिर एक के बाद एक विकेट गिरते गए और हमारी टीम हार गई। कप्तान हरमनप्रीत कौर ने 43 गेंद में 65 रन बनाए। भारत की जीत आसान लग रही थी, पर सोना हाथ से फिसल गया। आपको बता दें क्रिकेट राष्ट्रमंडल खेलों का हिस्सा नहीं रहा है। क्वालालंपुर-1998 में हुए इन खेलों में पहली बार 50 ओवरों के क्रिकेट को शामिल किया गया था, लेकिन उसके बाद फिर इसे हटा दिया गया। चूंकि, इस खेल में समय ज्यादा लगता है, इसलिए इसे ओलम्पिक से भी बाहर रखा गया है, मगर टी-20 का प्रचलन शुरू होने के बाद इस बार कॉमनवेल्थ गेम्स में क्रिकेट को शामिल कर लिया गया है।
बैडमिंटन में बरसे पदक, सिंधु चमकीं
बैडमिंटन में भी भारत की झोली में खूब सोना बरसा। इस खेल में भारत ने अपना वर्चस्व साबित कर दिया और कुल 06 पदक मिले, जिसमें महिला एकल में पीवी सिंधु का स्वर्ण पदक तो कमाल का रहा। दुनिया की सातवें नंबर की खिलाड़ी सिंधु ने 13वें नंबर की कनाडा की मिशेल ली को 21-15, 21-13 से हरा कर ग्लासगो-2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स के सेमीफाइनल में उनसे मिली हार का बदला भी चुका दिया। पुरुष एकल के फाइनल में भारत के लक्ष्य सेन ने मलेशिया के खिलाड़ी को हरा कर स्वर्ण पदक जीता। लक्ष्य को एक और पदक टीम स्पर्धा में भी मिला, वहीं पर सात्विक साइराज और चिराग शेट्टी की जोड़ी ने पुरुष युगल में स्वर्ण जीत कर इतिहास रच दिया। यह पहला मौका था, जब बैडमिंटन के पुरुष युगल में भारत ने स्वर्ण पदक अपने नाम किया।
अन्य खेलों में भी छाए भारतीय
एथलेटिक्स की तमाम स्पर्धाओं में भी भारतीयों ने पदक जीत कर देश का मान बढ़ाया। ट्रैक एंड फील्ड में भारत को कुल 08 पदक मिले। ट्रिपल जम्प में भारत के दो एथलीटों ने पहले दो स्थान पर कब्जा करके इतिहास बना दिया। केरल के 25 वर्षीय एल्डोस पॉल सोना जीतने वाले पहले भारतीय बने। केरल के ही अब्दुल्ला ने रजत पदक जीता। उधर, तेजस्विन शंकर ऊंची कूद में कांस्य जीत कर इस खेल में पदक पाने वाले पहले भारतीय बन गए। राष्ट्रीय रिकॉर्ड धारी शंकर ने 2.22 मीटर की ऊंचाई पहले ही प्रयास में लांघ दी। आपको बता दें कि कोर्ट के दखल के बाद उन्हें भारतीय दल में शामिल किया गया था। इसी तरह श्रीशंकर ने लंबी कूद में देश को रजत पदक दिलाया। सौरव घोशाल ने स्क्वॉश स्पर्धा में कांस्य पदक जीता। वह इस इवेंट में व्यक्तिगत पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए। अनु रानी भाला फेंक में पदक जीतने वाली देश की पहली महिला एथलीट बनीं। संदीप कुमार ने 10 हजार मीटर पैदल चाल में कांस्य जीता। टेबल टेनिस में शरत कमल और जी सत्यन की जोड़ी को पुरुष युगल में रजत पदक नसीब हुआ।
आदर्श प्रकाश सिंह