नई दिल्ली: 19 जुलाई मंगलवार को गूगल ने भारतीय कवियत्री बालामनी अम्मा (Balamani Amma) का 113वां जन्मदिन डूडल के द्वारा मनाया। अम्मा को मलयालम साहित्य जगत में लोग प्यार से (अम्मा) मां और (मुथास्सी) दादी के नाम से जानते थे। अपने डूडल में गूगल ने बालामनी (Balamani Amma) को सफेद साड़ी में किताबों के बीच बैठकर लिखते हुए दिखाया है। बालामनी अम्मा को उनके साहित्य जगत में योगदान के लिए सरस्वती सम्मान और पद्म विभूषण सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है। 19 साल की उम्र में बालामनी की शादी वीएम नय्यर के साथ हुई, जो एक मलयालम समाचार पत्र मातृभूमि के प्रबंधक थे।
महिला किरदारों को दी नई रोशनी –
बालामनी को हिंदू पौराणिक कथाओं में विशेष रुचि थी। शुरुआत में वे कथाओं की महिला पात्रों को अपनी रचनाओं में मजबूती से गढ़कर उन्हें एक नई रोशनी दिखाती थीं, जिस वजह से उन्हें मातृत्व की कवियत्री के नाम से भी जाना जाता था। उन्होंने अपनी कविताओं में स्त्री किरदारों को मजबूत व्यक्तित्व के रूप में प्रदर्शित किया। बालामनी को उनकी रचनाओं अम्मा (1934) और मुथास्सी (1962) और मजुविंते कथा (1966) के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है।
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पहली कविता से मिली पहचान –
बालामनी अम्मा (Balamani Amma) को मलयालम साहित्य की दादी मां भी कहते हैं। उनका जन्म 1909 में नालापत में हुआ। उनका घर थरीस्सुर जिले के पुन्नायुर्कुलम में है। बालामनी कभी स्कूल नहीं गईं। उनकी शिक्षा घर पर ही उनके चाचा नालाप्पत नारायण मेनन के सानिध्य में हुई, जो खुद भी मलयाली कवि थे। बचपन से ही साहित्य में रुचि रखने वाली बालामनी ने समय के साथ अपने लेखन कला को निखारा और 1930 में केवल 20 वर्ष की आयु में अपनी पहली कविता कूप्पुकई की रचना की। उनकी पहली कविता से ही उन्हें कवियत्री के रूप में पहचान मिली और कोच्चि के पूर्व शासक परीक्षित थंपूरन ने उन्हें साहित्य निपुणा पुरस्कारम् से सम्मानित किया। बालामनी अम्मा ने अपनी कविताओं के द्वारा मलयालम साहित्य जगत को नई उंचाईयां दीं। 29 सितंबर 2004 को केरल के कोच्चि में 95 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली।
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