Friday, January 10, 2025
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कई बार यूपी की सत्ता पलट चुके हैं किसान, मुजफ्फरनगर हमेशा से रहा केंद्र

लखनऊः केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली से शुरू हुआ किसान आंदोलन अब सियासी शक्ल ले चुका है। किसान नेता राकेश टिकैत उन राज्यों में जाकर रैलियां कर रहे हैं जहां-जहां चुनाव नजदीक हों। 2022 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं इससे पहले ही किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले नेताओं ने प्रदेश में अपनी जमीन तलाशनी शुरू कर दी है। इससे पहले पश्चिम बंगाल में किसान नेता राकेश टिकैत ने लोगों ने ममता बनर्जी के पक्ष में वोट डालने की अपील की थी। अब उत्तर प्रदेश सहित देश के 5 राज्यों में चुनाव नजदीक हैं ऐसे मौके पर किसानों द्वारा मुजफ्फरनगर में महापंचायत करना उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के लिए बड़ा संकट बन सकता है। मुजफ्फरनगर में किसानों ने महापंचायत कर अब आंदोलन को सियासी शक्ल दे दी है। इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि पिछले तीन दशकों में मुजफ्फरनगर में महापंचायत के जरिए जब-जब किसानों ने जिस भी सरकार के खिलाफ हुंकार भरी है, उस सरकार को सत्त से हटना पड़ा है।

यूपी और केंद्र दोनों जगहों से हटी थी कांग्रेस

11 अगस्त 1987 में मुजफ्फरनगर के सिसौली एक महापंचायत बिजली, सिंचाई की दरें घटाने और फसल के उचित मूल्य सहित 35 सूत्री मांगों को लेकर महेंद्र सिंह टिकैत की अगुवाई में की गई थी। जिसमें बड़ी संख्या में किसान शामिल हुए। यहां पर किसानों की बात नहीं बनी तो दिल्ली के वोट क्लब में आकर धरना दिया गया था, जिसका खामियाजा कांग्रेस को 1989 में यूपी विधानसभा चुनाव और 1990 के लोकसभा में उठाना पड़ा। यूपी और केंद्र दोनों जगह कांग्रेस को किसानों की नाराजगी के चलते सत्ता से हटना पड़ा।

मायावती ने झेली किसानों की नाराजगी

4 फरवरी 2003 में जीआईसी के मैदान पर महेंद्र सिंह टिकैत के अगुवाई में भारतीय किसान यूनियन की मायावती सरकार के खिलाफ महापंचायत हुई थी। तत्कालीन भाकियू अध्यक्ष चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों के हितों से जुड़े तमाम मुद्दों को लेकर मुजफ्फरनगर के कलेक्ट्रेट में धरना दिया था, जिस पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया था। ऐसे में लाठीचार्ज के विरोध में 2003 में जीआईसी के मैदान महापंचायत बुलाई गई, जिसमें लाखों किसान एकजुट हुए थे। एक साल के बाद ही मायावती को सत्ता हटना पड़ गया। बसपा विधायकों ने बगावत कर सपा का दामन थाम लिया और मुलायम सिंह यादव ने आरएलडी के समर्थन से सरकार बना ली थी।

बसपा के खिलाफ टिकैत की पंचायत

साल 2008 में मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं। किसानों के मुद्दों को लेकर बिजनौर की एक सभा में भारतीय किसान युनियन के प्रमुख रहे महेंद्र सिंह टिकैत ने मायावती के खिलाफ जातिसूचक शब्द बोल दिया था। इस बात की खबर मायावती को लगी तो उन्होंने टिकैत की गिरफ़्तारी के आदेश दे दिए। लेकिन महेंद्र सिंह टिकैत की गिरफ्तारी लिए पुलिस को पूरी ताकत लगानी पड़ी 3 दिनों तक टिकैत समर्थक और पुलिस के बीत तनातनी रहने के बाद ये तय हुआ कि टिकैत सरेंडर करेंगे।

आठ अप्रैल 2008 को जीआईसी के मैदान में बसपा सरकार के खिलाफ बड़ी पंचायत हुई थी। इस पंचायत का आयोजन भारतीय किसान यूनियन ने किया था, जिसमें हजारों किसानों के बीच महेंद्र सिंह टिकैत ने बसपा और मायावती सरकार को सत्ता से बेदखल करने का ऐलान किया था। 2012 में चुनाव हुए और बसपा सत्ता से बाहर हो गई और अखिलेश यादव के अगुवाई में सपा की सरकार बनी।

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2017 में सत्ता से बाहर हुई सपा

मुजफ्फरनगर जिले में कवाल कांड के बाद भारतीय किसान युनियन के नेता राकेश टिकैत ने सात सितंबर 2013 को नंगला मंदौड में पंचायत बुलाई। हालांकि, यह महापंचायत किसानों के मुद्दों पर नहीं बल्कि जाट समुदाय के लिए बुलाई गई थी। पंचायत में तमाम बीजेपी और जाट समुदाय के नेता शामिल हुए थे, जिसके बाद जिले में हुए सांप्रदायिक दंगे ने भाकियू को व्यथित जरूर किया, लेकिन जाट और मुस्लिमों के बीच गहरी खाई हो गई। पश्चिम यूपी में जाट समुदाय के जनआक्रोश के चलते 2017 में सपा को हार का सामना करना पड़ा और 2017 में सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा सरकार में आ गई।

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