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भगवान भोलेनाथ की आराधना से पूरी होती हैं सभी मनोकामनाएं, भक्त जरूर करें इस व्रत कथा का पाठ

नई दिल्लीः आज श्रावण मास को दूसरा सोमवार है। श्रावण मास भगवान शिव को अतिप्रिय है। श्रावण मास के चार सोमवार को व्रत रखने और विधिपूर्वक पूजा अर्चना करने से भगवान भोलेनाथ अपने भक्त पर बेहद प्रसन्न होते हैं और जीवन में आ रही सभी बाधाओं को हर लेते हैं। सावन सोमवान को व्रत रखने से सौभाग्य की भी प्राप्ति होती है। इसके साथ ही व्रती की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। श्रावण मास के चार सोमवार को व्रत रखने से 16 सोमवार के बराबर फल की प्राप्ति होती है। व्रत रखने वाले को भक्त को सोमवार व्रत कथा अवश्य सुनना चाहिए।

सावन सोमवार की व्रत कथा बहुत समय पहले एक नगर में बहुत धनवान साहूकार रहता था। उस साहूकार के पास सभी भौतिक संसाधन मौजूद थे, परंतु संतान न होने के चलते वह बेहद दुखी रहते थे। साहूकार भगवान शिव के परम भक्त थे और शिवजी का व्रत और पूजन बड़े भी भक्तिभाव से करते थे। साहूकार की सच्ची आराधना देख माता पार्वती ने भगवान महादेव से कहा कि साहूकार आपका परम भक्त है। वह पूरी आस्था के साथ आपका व्रत एवं पूजन करता है। इसके बाद भी आप उसकी मनोकामना पूर्ण क्यों नहीं करते। यह सुन भगवान शिव ने कहा कि हे पार्वती, यह संसार व्यक्ति का कर्मक्षेत्र है। जो इस संसार में जैसा कर्म करत है। उसे उसके अनुसार ही फल की प्राप्ति होती है। यह बात सुनकर माता पार्वती ने भक्त साहूकार की प्रार्थना स्वीकार करने को महादेव से कहा। माता पार्वती की बात मानकर भगवान शिव ने साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। साथ ही यह भी कहा कि साहूकार का पुत्र अल्पायु होगा और 12 साल की आयु में उसकी मृत्यु हो जाएगी। भगवान शिव और माता पार्वती की यह बातें साहूकार ने सुनीं तो वह प्रसन्न भी हुआ और दुखी भी। एक समय के बाद साहूकार के घर में सुंदर पुत्र का जन्म हुआ। घर में सभी बेहद प्रसन्न थे किंतु साहूकार बेहद दुखी था। जब पुत्र 11वर्ष को हुआ तो साहूकार ने अपने पुत्र को उसके मामा के साथ काशी शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा। साथ ही अपने साले से कहा कि रास्ते में जिस भी स्थान पर पहुंचे, वहां यज्ञ तथा ब्राह्मणों को भोजन अवश्य करायें। साहूकार का पुत्र और उसका मामा यज्ञ और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए जा रहे थे। रास्ते में वह एक राजधानी पहुंचे जहां राजा की कन्या का विवाह हो रहा था। राजा की कन्या का विवाह जिस राजकुमार से हो रहा था वह काना था। इस बात को लेकर राजा बेहद चिंतित थे कि कहीं उनकी पुत्र राजकुमार को देखकर विवाह से इंकार न कर दें। तभी राजा की नजर साहूकार के सुंदर पुत्र पर पड़ी तो उन्होंने सोचा क्यों न इस लड़के को ही वर बना दिया जाए। राजा ने साहूकार के लड़के का विवाह अपनी पुत्री से कर दिया।

साहूकार के लड़के ने ईमानदारी दिखाते हुए राजकुमार की चुनरी पर दिया कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है। राजकुमार के साथ तुमको भेजेंगे वह एक ऑंख से काना है और मैं काशी पढ़ने जा रहा हूँ। राजकुमारी ने यह सच्चाई जानकर बारात के साथ जाने से इंकार कर दिया। वहीं साहूकार का पुत्र काशी पहुंचकर शिक्षा ग्रहण करने लगा। जब लड़के की आयु 12 वर्ष की हुई तो उस तबियत खराब हो गयी और कुछ ही देर में उसकी मृत्यु हो गयी। यह देख लड़के का मामा विलाप करने लगा। संयोगवश भगवान महादेव और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। तब लड़के के मामा को विलाप करते देख माता पार्वती का मन व्याकुल हो उठा। उन्होंने भगवान से कहा कि बालक को जीवनदान दे दें। माता पार्वती के आग्रह पर भगवान भोलेनाथ ने बालक को जीवित कर दिया।

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इसके बाद बालक अपने मामा के साथ घर की ओर चल दिय। रास्ते में राजा ने साहूकार के पुत्र और उसके मामा को देखकर पहचान लिया यह तो वहीं बालक है जिससे उनकी पुत्री का विवाह हुआ था। इसके बाद राजा ने अपनी पुत्री को साहूकार के पुत्र के साथ विदा कर दिया। जब लड़का अपने घर पहुंचा तो उसके माता-पिता घर की छत बैठे थे। उन्होंने प्रण कर रखा था कि अगर पुत्र नहीं लौटता है तो वह यहीं पर अपने प्राण त्याग देंगे। लेकिन जब उन्होंने अपने पुत्र को जीवित अवस्था में देखा तो बड़े ही आनंद के साथ उसका स्वागत किया और सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे। इसी तरह जो भी भक्त सोमवार को भगवान शिव का व्रत करता है और यह कथा सुनता है उसके सभी कष्ट भगवान महादेव दूर करते है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।