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पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित अजय मंडावी लौटे छत्तीसगढ़, गर्मजोशी के साथ हुआ स्वागत

धमतरी: दिल्ली से पद्मश्री सम्मान प्राप्त कर वापस कांकेर लौटते समय काष्ठ शिल्पकला के जादूगर अजय मंडावी कुछ समय के लिए धमतरी में रूके, तो उनके प्रशंसकों ने गर्म जोशी से स्वागत किया। इस दौरान पद्मश्री अजय मंडावी ने कहा कि पद्मश्री लेने का क्षण काफी अविस्मरणीय रहा।

काष्ठ शिल्पकला के जादूगर पद्मश्री अजय मंडावी नौ अप्रै्रैल को जब दिल्ली से होकर धमतरी पहुंचे, तो धमतरी शहर के एक मेडिकल के पास ठहरे। उनके धमतरी पहुंचने की खबर पाकर उनके प्रशंसक वहां पहले से ही उनके स्वागत व सम्मान के लिए एकत्र हो गए थे। धमतरी पहुंचते ही उनके प्रशंसकों ने फूलमाला पहनाकर गर्मजोशी से स्वागत किया। दिल्ली से लौटते वक्त उनके साथ उनकी पत्नी और स्मिता अखिलेश उनके साथ थे। स्वागत करने वालों में जिला साहित्य समिति के डुमन लाल धु्रव, कविता ध्रुव, किरण साहेब, राजेश साहू, सुरेश साहू, आकाश गिरी गोस्वामी, राम कुमार विश्वकर्मा, मन्नाम राणा, भूपेंद्र दास, सितलेश साहू,लक्ष्मण साहू, संतोष नेताम, लोकेश साहू, प्रेम शंकर चौबे, डा भूपेन्द्र साहू आदि मौजूद थे।

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काष्ठ शिल्पकला के जादूगर अजय मंडावी ने चर्चा करते हुए कहा कि वह कांकेर जिला के निवासी हैं। उनके काष्ठ कला और शिल्प से पूरे प्रदेश को नई पहचान मिली है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद वह पहला आदिवासी हैं, जिन्हें पद्मश्री प्राप्त हुआ है। गांव में नदी किनारे रेत पर नाव, भगवान गणेश की मूर्ति बनाने से उनकी कला यात्रा की शुरूआत हुई। कला काष्ठ सीखने कहीं प्रशिक्षण नहीं लिया न ही आर्थिक सहयोग लिया। अपने ही सीमित संसाधनों से उन्होंने कला के क्षेत्र में जिन उंचाईयों को छूआ, जो आज उन्हें पद्मश्री तक पहुंचा दिया, जो आने वाली पीढी के लिये निश्चित ही प्रेरणास्पद है।

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नक्सलियों को मुख्यधारा में जोड़ा –

अजय मंडावी कांकेर जेल में लंबे समय तक बंदियों को काष्ठ शिल्पकारी सिखाया। उनकी प्रेरणा से करीब 400 युवाओं ने अपराध और हिंसा का रास्ता छोड़कर शिल्पकला को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लिया। इनमें बहुत से माओवादी विचारों से प्रभावित कैदी भी शामिल है। 18 जनवरी 2018 का दिन कांकेर जेल के लिए एक ऐतिहासिक दिन रहा। जब यहां के बंदियों द्वारा बनाए गए काष्ठ-शिल्प को सम्मान मिला। अजय मंडावी के मार्गदर्शन में कुल नौ बंदियों ने दिन-रात मेहनत करते हुए 20 फीट चौड़ा, 40 फीट लंबी लकड़ी की तख्ती पर वन्दे मातरम राष्ट्रीय गीत को काष्ठशिल्प के रूप में उकेर दिया। इसके बाद इन्हीं बंदियों ने 40 कंबलों के उपर अपनी कला का प्रदर्शन किया। इस शिल्प को ऐतिहासिक अनुकृति (कल्ट) का दर्जा देते हुए गोल्डन बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड से नवाजा गया। उनकी कला यात्रा में गोल्डन बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड, लिम्का बुक आफ रिकार्ड सहित कामयाबी और शोहरत के बहुत से चमकीले और यादगार मुकाम आते रहे हैं।

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