Saturday, March 29, 2025
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जब अतीक की धमकियों से डर गया था उमेश पाल, पूर्व सीएम के कहने पर फिर दर्ज करायी थी एफआईआर

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प्रयागराजः उमेश पाल के 2006 में हुए अपहरण मामले में प्रयागराज की स्पेशल एमपी-एमएलए कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है। सुनवाई पूरी होने के बाद न्यायालय ने अपना निर्णय सुरक्षित रखा है और इस मामले में 28 मार्च को अपना फैसला सुनाएगी। उमेश पाल अपहरण मामले में माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को सजा मिलना लगभग तय माना जा रहा है।

उमेश पाल अपहरण कांड के सभी आरोपितों पर जो आरोप लगाए गए हैं, उनमें भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराएं शामिल हैं। अधिवक्ताओं का कहना है कि इस मामले में अधिकतम सजा फांसी या आजीवन कारावास तक हो सकती है। एक शासकीय अधिवक्ता ने बताया है कि इस मामले में अधिकतम सजा फांसी या आजीवन कारावास और जुर्माना की व्यवस्था है। आईपीसी की धारा 364ए और दंड का विधान जो कोई भी किसी व्यक्ति का अपहरण करता है या इस तरह के अपहरण के बाद किसी व्यक्ति को हिरासत में रखता है और ऐसे व्यक्ति को मौत या चोट पहुंचाने की धमकी देता है, या फिरौती के लिए मजबूर करने के लिए ऐसे व्यक्ति को चोट या मृत्यु का कारण बनता है, तो मौत की सजा या आजीवन कारावास और जुर्माना के लिए भी उत्तरदायी होगा। उमेश पाल अपहरण कांड में मंगलवार को फैसला सुनाया जाना है। इस मामले में अतीक अहमद का भाई पूर्व विधायक खालिद अजीम उर्फ अशरफ भी आरोपित है। अशरफ बरेली जेल में बंद है और उसे भी तलब किया गया है। अधिवक्ताओं के अनुसार हाईकोर्ट ने एक विशेष आदेश में अशरफ की सुरक्षा की कार्यवाही के लिए निर्देश जारी किए हैं।

उल्लेखनीय है कि, माफिया अतीक अहमद और उमेश पाल के बीच दुश्मनी 18 साल पुरानी है। इसकी शुरुआत 25 जनवरी, 2005 में बसपा विधायक राजू पाल के मर्डर के साथ हुई। उमेश पाल उस केस का चश्मदीद गवाह था। अतीक ने उमेश पाल को कई बार फोन कर बयान न देने और केस से हटने को कहा। ऐसा न करने पर जान से मारने की धमकी दी। उमेश पाल नहीं माना, तो 28 फरवरी 2006 को उसका अपहरण करा लिया। उमेश पाल ने करीब डेढ़ साल बाद 5 जुलाई 2007 में अतीक और उसके भाई अशरफ समेत 10 के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी। यहीं से उमेश पाल अतीक के आंख की किरकिरी बन गया। अतीक अहमद ने उमेश पाल को अपहरण के बाद अपने चकिया के ऑफिस में रखा था। उसे रात भर पीटा और टॉर्चर किया। इससे वह घबरा गया। उसे बिजली के शॉक भी दिए गए। अपनी आंख के सामने मौत का मंजर देखकर उमेश पाल टूट गया। इसके बाद उसने डर के मारे अगले दिन कोर्ट में अतीक के पक्ष में गवाही दे दी। हलफनामा भी दे दिया। लिखा कि उमेश पाल मर्डर के समय वह वहां मौजूद नहीं था और न ही कुछ वह जानता है।

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2007 में जब सरकार बदली। सपा को हार मिली और बसपा प्रमुख मायावती मुख्यमंत्री बनीं। मायावती अपने पार्टी के विधायक की हत्या से काफी नाराज थीं। उन्होंने मुख्यमंत्री बनते ही अतीक अहमद पर कार्रवाई शुरू कर दी। मायावती ने अतीक के दफ्तर पर बुलडोजर चलवा दिया। बताया जाता है कि मायावती ने उमेश पाल को लखनऊ बुलवाया। कहा कि, तुम गवाही दो, तुम्हारी सुरक्षा सरकार करेगी। इसके बाद उमेश पाल हिम्मत जुटाकर 5 जुलाई 2007 में अतीक, उसके भाई अशरफ सहित 10 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई। इसी अपहरण केस के बाद उमेश पाल अतीक अहमद के निशाने पर आ गया। उमेश पाल को पूरा भरोसा था कि योगी सरकार में उसका कुछ कोई नहीं बिगाड़ सकता। लेकिन गत 24 फरवरी को उमेश पाल की शूटरों ने गोली और बम मारकर हत्या कर दी। इसमें उमेश की सुरक्षा में लगे दो सरकारी गनर संदीप निषाद और राघवेंद्र की भी मौत हो गई थी।

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