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शौर्य और पराक्रम की अनूठी मिसाल थीं वीरांगना लक्ष्मीबाई, आजादी के लिए किया सर्वस्व न्यौछावर

नई दिल्लीः वीरांगना शब्द सुनते ही जो नाम हमारे दिमाग में सबसे पहले आता है वह हैं ‘झांसी की रानी लक्ष्मीबाई’। भारतीय वसुंधरा की वीर पुत्री जिसने आजादी की लड़ाई के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। रानी लक्ष्मीबाई का शौर्य और उनका बलिदान सभी भारतीयों के लिए प्रेरणास्त्रोत है। आज रानी लक्ष्मीबाई की जयंती है। रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को वाराणसी में हुआ था। उन्होंने सिर्फ 29 वर्ष की उम्र में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं। बताया जाता है कि सिर पर तलवार के वार से लक्ष्मीबाई शहीद हुई थी। अंग्रेजी अधिकारी जनरल ह्यूरोज ने कहा था कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक खतरनाक भी थी।

महज 15 साल की उम्र में हुआ था विवाह
रानी लक्ष्मीबाई का महज 15 वर्ष की आयु में झांसी के महाराजा गंगाधर राव से सन् 1850 में विवाह हुआ था और विवाह के एक वर्ष बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, लेकिन चार माह बाद ही पुत्र का निधन हो गया। पुत्र के निधन के शोक में लक्ष्मीबाई के पति गंगाधर राव भी अस्वस्थ हो गये और उनका भी 21 नवंबर 1853 को स्वर्गवास हो गया। पति और पुत्र के निधन की असहनीय पीड़ा को भी रानी लक्ष्मीबाई ने किसी के सामने जाहिर नहीं होने दिया और दत्तक पुत्र दामोदर राव को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। परंतु ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार ने दत्तक पुत्र को अस्वीकार कर दी। अंग्रेजों ने झांसी को अंग्रेजी राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी। जिस पर लक्ष्मीबाई ने साफ शब्दों में यह कह दिया कि मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी। यहीं से भारत की प्रथम स्वाधीनता क्रांति की शुरूआत हुई।

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तात्या टोपे के साथ लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से लिया लोहा
तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया। बाजीराव प्रथम के वंशज अली बहादुर द्वितीय ने भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया और रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें राखी भेजी थी इसलिए वह भी इस युद्ध में उनके साथ शामिल हुए। 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में अंग्रेजी सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई।

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