Maha kumbh 2025: प्रयागराज महाकुंभ की तैयारियां अब अंतिम चरण में हैं। अखाड़ों के छावनी में प्रवेश से लेकर संगम की पावन धरती पर कल्पवासियों और श्रद्धालुओं का आगमन जारी है। 13 जनवरी से शुरू हो रहे महाकुंभ में पुण्य के भागी बनने के लिए देश-दुनिया के कोने-कोने से नागा और अघोरी साधु भी पहुंच रहे हैं।
Maha kumbh 2025: अघोरी बाबा और नागा साधु के बीच अंतर
वैसे तो नागा और अघोरी साधु को एक ही माना जाता है। सनातन धर्म की अखाड़ा व्यवस्था में नागा साधुओं को धर्म का रक्षक माना जाता है, जबकि अघोरी साधु अपनी अद्भुत और रहस्यमयी साधनाओं के लिए जाने जाते हैं। हालांकि, दोनों की तपस्या, जीवनशैली, ध्यान और आहार-विहार के तरीके में अंतर है, लेकिन यह सच है कि दोनों ही शिव की आराधना में लीन रहते हैं। 12 साल की कठोर तपस्या नागा साधुओं और अघोरी बाबाओं को बेहद कठिन परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है।
साधु बनने के लिए उन्हें करीब 12 साल तक कठोर तपस्या करनी पड़ती है। अघोरी बाबा श्मशान में साधना करते हैं और उन्हें सालों तक वहीं समय बिताना पड़ता है। अघोरी और नागा साधुओं में एक बड़ा अंतर यह है कि नागा साधु ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और जीवित रहते हुए ही अपना अंतिम संस्कार कर देते हैं। वहीं दूसरी ओर अघोरियों में ब्रह्मचर्य का पालन करने की कोई बाध्यता नहीं होती।
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नागा साधु भीख मांगकर अपना गुजारा करते हैं और जो भी मिल जाता है, उसी में संतुष्ट रहते हैं। वहीं दूसरी ओर अघोरियों को चिता का मांस समेत कुछ भी खाने की स्वतंत्रता होती है। अघोरी बाबा भी भगवान शिव के उपासक होते हैं, लेकिन उनकी पूजा पद्धति थोड़ी अलग और डरावनी होती है। वे श्मशान में रहते हैं और अपने शरीर पर श्मशान की राख लगाते हैं। अघोरी बाबा शरीर के निचले हिस्से को जानवरों की खाल या किसी साधारण कपड़े से ढकते हैं।
अघोरी और नागा साधु बनने की प्रक्रिया
नागा साधु बनने के लिए अखाड़े में गुरु की आवश्यकता होती है, जबकि अघोरी बनने के लिए किसी गुरु की आवश्यकता नहीं होती। माना जाता है कि इनके गुरु स्वयं भगवान शिव हैं। उन्हें भगवान शिव का पांचवा अवतार माना जाता है और वे श्मशान घाट या किसी दुर्गम क्षेत्र में रहते हैं। जहां हर किसी का जाना संभव नहीं होता, क्योंकि ऐसी जगह उनकी साधना के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। आमतौर पर अघोरी साधु एकांत में रहते हैं और सार्वजनिक रूप से बहुत कम ही दिखाई देते हैं। वे सार्वजनिक रूप से केवल कुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों में ही दिखाई देते हैं।
नागा शब्द की उत्पत्ति व अर्थ
धर्म के रक्षक नागा साधु ‘नागा’ शब्द की उत्पत्ति के बारे में कुछ विद्वानों का मानना है कि यह संस्कृत के शब्द ‘नागा’ से आया है, जिसका अर्थ है ‘पहाड़’। नागा साधुओं का मुख्य उद्देश्य धर्म की रक्षा करना और शास्त्रों के ज्ञान में पारंगत होना है। वे अखाड़ों से जुड़े होते हैं और समाज की सेवा के साथ-साथ धर्म का प्रचार-प्रसार भी करते हैं। ये साधु अपनी कठोर तपस्या और शारीरिक शक्ति के लिए जाने जाते हैं। नागा साधु अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं। नागा साधु धर्म और समाज के लिए काम करते हैं।
Maha kumbh 2025: अघोरी शब्द की उत्पत्ति और अर्थ
संस्कृत में अघोरी शब्द का अर्थ है ‘प्रकाश की ओर’। इस शब्द को पवित्रता और सभी प्रकार की बुराइयों से मुक्ति के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। हालाँकि, अघोरियों की जीवनशैली और तरीके बिल्कुल इसके विपरीत प्रतीत होते हैं।
मानव खोपड़ी अघोरी साधुओं की विशेष निशानी है। संस्कृत में अघोरी शब्द का अर्थ है ‘प्रकाश की ओर’। इस शब्द को पवित्रता और सभी प्रकार की बुराइयों से मुक्ति के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। अघोरियों की जीवनशैली और तरीके बिल्कुल इसके विपरीत प्रतीत होते हैं। अघोरी साधु भगवान शिव के अनन्य भक्त माने जाते हैं। वे हमेशा अपने साथ मानव खोपड़ी रखते हैं, जो उनकी भक्ति का प्रतीक है।
भगवान दत्तात्रेय को अघोरी साधुओं का गुरु माना जाता है, जिन्हें शिव, विष्णु और ब्रह्मा का अवतार कहा जाता है। ये साधु दुनिया की आम परंपराओं से दूर रहते हैं और जीवन-मृत्यु के रहस्यों को समझने में लगे रहते हैं। अघोरी साधु अपनी साधना में लीन रहते हैं और केवल भगवान शिव की ही पूजा करते हैं। नागा साधुओं की तरह इनका समाज से ज्यादा लेना-देना नहीं होता।