Vat Savitri Vrat, Varanasi: ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर गुरुवार को धार्मिक नगरी काशी में सुहागिन महिलाओं ने अपने पति की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन के लिए वट सावित्री व्रत रखा। व्रती श्रद्धालु महिलाओं ने विधि-विधान से माता की पूजा-अर्चना की। पूजन के बाद महिलाओं ने बरगद (वट) और पीपल के वृक्ष की परिक्रमा कर मां सावित्री से अखंड सौभाग्य की कामना की। वट सावित्री की पूजा के लिए सुहागिन महिलाएं सुबह से ही अपने परिवार के साथ आसपास के बरगद और पीपल के वृक्ष के नीचे जुटने लगीं। नवविवाहित विवाहित महिलाओं में व्रत को लेकर काफी उत्साह दिखा। व्रती महिलाओं ने व्रत रखकर विधि-विधान से वट वृक्ष की पूजा-अर्चना की।
पति की दीर्घायु के लिए महिलाओं ने वट वृक्ष के तने को धागे से लपेटा और 108 बार परिक्रमा की। इसके बाद प्रसाद के रूप में हलवा, पूरी, खरबूजा आदि का भोग लगाया गया। धर्मकूप के मीरघाट स्थित वट सावित्री माता की पूजा के लिए भी महिलाओं की भारी भीड़ उमड़ी। इस दौरान सुहागिन महिलाओं ने अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखते हुए सोलह श्रृंगार की वस्तुएं, फल व प्रसाद चढ़ाया तथा बरगद के पेड़ के चारों ओर पवित्र धागा लपेटकर फेरे लिए तथा अखंड सौभाग्य का वरदान मांगा। पूरे जिले में महिलाओं ने श्रद्धा व उत्साह के साथ वट सावित्री पूजा की।
समाजसेवी व कर्मकांडी संजय पांडेय, प्रदीप पांडेय बताते हैं कि सनातन हिंदू धर्म में बरगद को दिव्य वृक्ष माना गया है। इसके मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में विष्णु व अग्र भाग में भगवान शिव का वास होता है। बरगद के पेड़ में देवी सावित्री का भी वास होता है। इसी बरगद के पेड़ के नीचे सावित्री ने अपने पति भक्ति से अपने मृत पति को जीवित किया था। तभी से पति की दीर्घायु के लिए वट सावित्री व्रत रखा जाता है। इस बार ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि बुधवार की शाम 7.54 मिनट पर लग गई थी। लेकिन पर्व सूर्योदय के समय मनाया गया।
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इसलिए मनाया जाता है वट सावित्री व्रत
पौराणिक मान्यता है कि भद्र देश के राजा की पुत्री सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण बचाने के लिए उनके शव को वट वृक्ष के नीचे रखकर पूजा की थी। जब यमराज उनके पति सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल दी। सावित्री की पतिभक्ति के आगे बेबस यमराज ने उनसे वरदान मांगने को कहा। इस पर सावित्री ने यमराज से पहले वरदान के रूप में अपने ससुराल वालों को नेत्र ज्योति और दूसरे वरदान के रूप में पुत्र की प्राप्ति मांगी। जब यमराज ‘तथास्तु’ कहकर सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे तो सावित्री उनके पीछे-पीछे चल दी। यमराज ने पलटकर देखा कि वरदान देने के बाद भी सावित्री उनके पीछे-पीछे चल रही है तो वे रुक गए और प्रश्नवाचक निगाहों से उनकी ओर देखने लगे। इस पर सावित्री ने कहा कि आप मेरे पति को लेकर जा रहे हैं तो मुझे पुत्र कैसे होगा। यह सुनकर यमराज को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने सत्यवान के प्राण लौटा दिए। ऐसा माना जाता है कि सावित्री ने अपने पति के शव को बरगद के पेड़ के नीचे रखकर उसकी पूजा करके उनके जीवन को वापस पाया था। इसी मान्यता के तहत वट सावित्री पूजा की जाती है।
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