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वट सावित्री व्रत का अध्यात्म के साथ ही है वैज्ञानिक महत्व, इस दिन पीपल वृक्ष की भी करें परिक्रमा

नई दिल्लीः पूरी दुनिया को अध्यात्म, संस्कृत और अनेकता में एकता का संदेश देने वाले भारत में पर्व-त्योहार एक से एक होते हैं। भारतीय महिलाएं सालों भर कोई ना कोई व्रत, पूजा, पर्व, त्यौहार के माध्यम से अपने पति, पुत्र, परिवार, समाज और देश के लिए मंगल कामना करते रहते हैं। इन्ही मंगलकामनाओं में एक है वट सावित्री व्रत। जिसमें ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को महिलाएं अपने पति के दीर्घायु के लिए कठिन व्रत कर पूजा अर्चना करती है। पूरे विधि विधान और सोलह सिंगार से सजी महिलाएं जब वट वृक्ष के नीचे पौराणिक काल से चली आ रही पूजा सामग्रियों के साथ आराधना करती हैं तो इससे एक ओर उनकी सभी कामना पूरी होती है तो इसका वैज्ञानिक तथ्य भी काफी रोचक है। सबको शीतल करने वाले बरगद के पेड़ में कोई पानी नहीं देता है और ज्येष्ठ मास की तपते उमस में जब वट वृक्ष की जड़ में पानी पड़ता है तो यह पर्यावरण को नई ऊर्जा देता है।

इस बार बन रहा सुखद संयोग
इस वर्ष वट सावित्री के अवसर पर कई दशक के बाद सुखद संयोग बन रहा है कि वट सावित्री का व्रत सोमवार को मनाया जाएगा। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी लग रहा है। सोमवार को वट सावित्री व्रत के दिन शनि जयंती के साथ सूर्योदय काल से सर्वार्थ सिद्धि योग शुरू होकर दोपहर 3.53 बजे तक रहेगा। इस विशेष योग में पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। इस दिन वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करने और रक्षा सूत्र बांधने से पति की आयु लंबी होती है तथा सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। क्योंकि वटवृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश निवास करते हैं।

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सोमवती अमावस्या होने के चलते पीपल की भी होगी आराधना
इस वर्ष सोमवारी अमावस्या के दिन वट सावित्री होने से महिलाओं को बरगद के साथ-साथ पीपल की भी पूजा करनी चाहिए। ऐसी जगह पर पूजा करें जहां बरगद एवं पीपल दोनों पेड़ साथ में हों। वट वृक्ष की पूजा के बाद जब महिलाएं पीपल में 108 बार परिक्रमा कर धागा बांधेगी तो दोगुना फल मिलेगा। क्योंकि बरगद में जहां तीनों देवता निवास करते हैं, वही पीपल का वृक्ष जीवनदायिनी होता है।

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