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परिवहन निगम में बकायाए ब्रेकडाउन का नहीं निकल सका हल, बीच रास्ते खराब हो रही बसें

लखनऊः उप्र राज्य सड़क परिवहन निगम इस वर्ष बकाया और ब्रेकडाउन की समस्या से बुरी तरह जूझता रहा। आलम यह रहा कि न तो परिवहन निगम के बकाए का समाधान हुआ और न ही बसों के ब्रेकडाउन की समस्या खत्म हो सकी। इन दोनों ही परिस्थितियों में नुकसान यूपी रोडवेज को ही उठाना पड़ रहा है। कोरोना की पहली लहर के दौरान अन्य प्रांतों से आने वाले यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने का काम रोडवेज बसों ने किया। मुख्यमंत्री के निर्देश पर ऐसे यात्रियों को रोडवेज ने मुफ्त सफर की सुविधा प्रदान कीए लेकिन कोरोना काल में संचालित की गईं रोडवेज बसों के 348 करोड़ के बकाए का भुगतान अभी तक नहीं हो सका। पंचायत चुनाव और बीते पांच सालों में रक्षाबंधन पर्व पर महिलाओं को मुफ्त सफर की सुविधा के बकाए का भी भुगतान नहीं हो सका।

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मेंटीनेंस के अभाव में रोडवेज की बसों के बीच रास्ते खराब होने का सिलसिला लगातार चलता रहा। साल के अंत में रोडवेज और यात्रियों के नजरिए से अच्छी खबर यह रही कि लग्जरी बसों का संचालन दोबारा से शुरू कर दिया गया। वहीं रोडवेज बस के बेड़े में 150 नई बसों को शामिल किए जाने की घोषणा भी इस वर्ष की उपलब्धि कही जा सकती है। बसों की कम संख्या के बावजूद बीते नवंबर माह में रोडवेज करीब 48 करोड़ रुपए के फायदे में रहा। साल दर साल नई बसें बेड़े में शामिल होती रहती तो यह आंकड़ा कहीं अधिक होता। ऐसे में इसे भी परिवहन निगम की एक खास उपलब्धि कहना गलत नहीं होगा।

544 करोड़ के बकाए का भुगतान नहीं

यूपी रोडवेज का शासन पर 544 करोड़ बकाया है। जिसके भुगतान की प्रतीक्षा परिवहन निगम कर रहा है। निगम को यह पैसा मिले तो नई बसों की खरीद के साथ अन्य काम पूरे हो सकें। इनमें कोरोना की पहली लहर के दौरान और रक्षाबंधन पर्व पर महिलाओं को फ्री यात्रा सेवा व पंचायत चुनाव में भेजी गई बसों का बकाया शामिल है।

पार्ट के अभाव में बसों का मेंटीनेंस प्रभावित

कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचाने में रोडवेज की बसें लगी रहीं। इसके चलते बसों का मेंटीनेंस नहीं हो सका। इस दौरान जरूरत के हिसाब से बसों के पार्ट न खरीदे जाने से वर्कशाप में इनकी भारी कमी हो गई। इसका असर यह रहा कि बीच रास्ते बसें खराब होने लगीं। आलम यह रहा कि लखनऊ रीजन की ही किसी न किसी बस के रोजाना खराब होने की खबरें सामने आने लगीं। दरअसलए पूरे प्रदेश में बसों के मेंटीनेंस के लिए सेंट्रल स्टोर हर माह करीब 12 करोड़ के सामान की खरीदारी करता थाए लेकिन इस बीच सेंट्रल स्टोर सिर्फ 6 करोड़ का सामान ही खरीद रहा था। इसके चलते वर्कशाप में जरूरी सामानों की भी कमी हो गई। जिसका नतीजा ये हुआ कि कि वर्कशाप में रोजाना खराब होने वाले पार्ट तक नहीं रहे।

150 नई बसों को मिली हरी झंडी

बीते कुछ सालों से यूपी रोडवेज नई बसों की खरीद नहीं कर रहा है। जबकि आयु पूरी कर चुकी बसों की नीलामी की जा रही थी। ऐसे में नई बसें न आने और पुरानी बसों की नीलामी किए जाने से रोडवेज का बस बेड़ा कम हो रहा है। रोडवेज बस बेड़े में हर साल एक हजार की संख्या में बसें शामिल की जानी चाहिए। हाल फिलहाल कुछ वर्षों में एक भी नई बस नहीं आ सकी थी। ऐसे में इस वर्ष 150 नई बसों को खरीदे जाने के प्रस्ताव को हरी झंडी मिल गई है।

ऑनलाइन व्यवस्था संभालेगी नई कंपनी

रोडवेज ने ऑनलाइन टिकट बुकिंग समेत अन्य व्यवस्था के लिए नई कंपनी के साथ अनुबंध किया है। इसके पूर्व रोडवेज में यह काम ट्राईमैक्स कंपनी के जिम्मे था। इसके अलावा पुरानी ईटीएम ;इलेक्ट्रॉनिक टिकटिंग मशीनद्ध की जगह नई ईटीएम मशीन की खरीद पर अंतिम मुहर लगी। रोडवेज की 12ए000 बसों के लिए 13ए000 ईटीएम मशीनें आएंगी। अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस इन मशीनों को टेस्टिंग के बाद क्षेत्रों में भेजा जाएगा। इन मशीनों के जरिए रोडवेज की कैशलेस व्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। इन मशीनों के जरिए स्मार्ट कार्ड से भुगतान की व्यवस्था आसान होगी।

48 करोड़ के प्रॉफिट से जगी उम्मीद

यूपी रोडवेज के निजीकरण की बयार के बीच नवंबर माह में 48 करोड़ के फायदे ने नई उम्मीद जगाई है। इस फायदे ने रोडवेज के निजीकरण पर विराम लगाने का काम किया है। वहीं प्रॉफिट.लॉस के फार्मूले पर फिर से वॉल्वो बसों का संचालन शुरू किया गया है। इनमें लखनऊ रीजन और गाजियाबाद रीजन में करीब 30 बसों का संचालन किया जा रहा है। इन बसों के संचालन से रोडवेज को फायदा होगा और आने वाले विधानसभा चुनाव से भी कुछ कमाई

पीपीपी मॉडल के बस अड्डों को नहीं मिले निवेशक

यूपी रोडवेज ने पीपीपी मॉडल पर बनने वाले 17 बस अड्डों के लिए टेंडर निकाला था। दोबारा निकाले गए टेंडर में भी निवेशकों ने दिलचस्पी नहीं दिखायी। पीपीपी मॉडल पर सिर्फ आलमबाग बस स्टेशन ही बन सका है। ऐसे में अन्य बस अड्डों के निर्माण के लिए निवेशकों के दिलचस्पी न लेने से इसके भविष्य पर खतरा मंडरा रहा है। देश स्तर पर प्रकाशित किए जाने वाले इन टेंडरों का खर्च ही लाखों रुपए है। ऐसे में निवेशकों के न आने के बाद टेंडर निरस्त किए जाने से रोडवेज को खासा नुकसान भी उठाना पड़ता है। सरकार की प्राथमिकता वाले कार्यों में भी निवेशकों के न आने से कई सवाल खड़े होते हैं।

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